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Saturday, 6 June 2015

पद्य - ‍१‍१० - तमघैला भरि – भरि अनलहुँ (कविता)


तमघैला भरि – भरि अनलहुँ (कविता)



मिथिला  देखए  गेल  छलहुँ,
हम  बहुते  मिथिला देखलहुँ ।
एक  सिक्का  लए  गेल रही,
तमघैला भरि – भरि अनलहुँ ।।


ब्राम्हण केर मिथिला हम देखल,
आ   हरिजन  केर   मिथिला ।
सिक्ख   ईसाई  मुसलमान केर,
बौद्ध – जैन   केर   मिथिला ।
पढ़ुआ केर मिथिला  हम देखल,
मुरूखक    देखल    मिथिला ।
गामक  मिथिला  अलगे भाखल,
शहरक     अलगे    मिथिला ।

भारत केर मिथिला सेहो देखल,
आ  नेपालक  सेहो  देखलहुँ ।
एक सिक्का लए गेल रही,
तमघैला भरि – भरि अनलहुँ ।।


बेतिया,   मोतीहारी,   वैशाली,
सीतामढ़ी    आ     शिवहर ।
दरिभंगा,  मधुबनी,  समस्ती –
पुर   दुहु   संग   मुजफ्फर ।
किशनगंज,  पुर्णिञा, अररिया,
बेगूसराय         खगड़िया ।
बीच  कौशिकी  अछि  सुपौल,
मधेपुराक   संग    सहरसा ।

कटिहारक   मिथिला   देखल,
हर घाटक पानिकेँ चिखलहुँ ।
एक सिक्का लए गेल रही,
तमघैला भरि – भरि अनलहुँ ।।


दानवीर   कर्णक  धरती  जे,
अंगक    क्षेत्र    रमणगर ।
ततहु देखल  मिथिला माएक,
आँचर  केर  छाँह  मनोहर ।
बाबाधाम  ओ आस-पास केर,
देखल   अलगे   मिथिला ।
मिथिलापुत्रक  संग   बसल,
अगनित  प्रवासमे मिथिला ।

भारत ओ विश्वक हर कोणा,
अलगे    मिथिला   देखलहुँ ।
एक सिक्का  लए गेल रही,
तमघैला भरि – भरि अनलहुँ ।।


मिथिला केर  हर रूप मनोहर,
सुन्नर    छवि    अभिराम ।
कहाँ केओ छल श्रेष्ठ आ दोसर,
दीन – हीन        सन्तान ।
जतऽ कतहु  जे  छथि मैथिल,
से  राखथु   अप्पन   मान ।
आ  प्रवास  केर  क्षेत्रक सेहो,
देथु     उचित    सम्मान ।

भारत  ओ  नेपालमे  अलगे,
मिथिला केर माँगकेँ देखलहुँ ।
एक सिक्का  लए  गेल रही,
तमघैला भरि – भरि अनलहुँ ।।



06 JUNE 2015 कऽ प्रकाशनार्थ मिथिला दर्शन केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।

मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍193म अंक (‍01 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक ‍193) मे प्रकाशित ।



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