भूकम्प - २
बूढ़ - पुरैनिञा
कहै छलथि,
ओ बड़का
छल जे भूकम्प ।
छओ महीना धरि थीर
ने धरती,
रहि - रहि होइ
छल कम्प ।।
हम अबोध, ओहि समय युवा जे,
मारए छलाह
ठहक्का ।
मैञा – बाबा
छथि भँसिआएल,
फेंकथि बड़का – बड़का ।।
आइ बुझै छी
मैञा – बाबा,
कहए छलाह
की तहिया ।
अप्रीलक बादो कँपैत
अछि,
धरती जहिया – जहिया ।।
बड़का भूकम्पक
कारण जे,
उपजल छोटका
भ्रंश ।
से सभ गऽड़ धरए रहि-रहि कऽ,
खन – खन होइए
कम्प ।।
आइ महीना दिन बीतल
अछि,
आयल मई पच्चीस ।
कए बेर धरती डोलि चुकल, आ
एखनहु मन भयभीत
।।
बीचमे सेहो बारह
मई कऽ,
बड़का धरती - कम्प ।
निन्न ने एखनो गाढ़ पहिल सनि,
काँपए मन
हड़कम्प ।।
कहुखन – कहुखन एना
लगैए,
देह जेना डोलइए ।
अकचकाइत चहुँदिशि तकैत छी,
कहाँ किछो
डोलैए ??
आस–पास किछु लोक कहल जे,
भ्रम ओहिना
भेलौए ।
पर किछु लोक कहल पुनि, हमरो
तोरे सनक लगैए ।।
किछु मोनक सन्देह सेहो, पर
किछु छल छोटका
कम्पन ।
चीज – बस्तु सभ थीर लगैए,
देह बुझैए
कम्पन ।।
26 MAY 2015 कऽ प्रकाशनार्थ “मैथिली दर्पण” केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।
"मैथिली दर्पण" पत्रिकाक जून-सितम्बर 2015 संयुक्तांकमे पृष्ठ 52 पर प्रकाशित ।
डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”,
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