तमघैला भरि – भरि अनलहुँ (कविता)
मिथिला देखए गेल छलहुँ,
हम बहुते
मिथिला देखलहुँ ।
एक सिक्का लए
गेल रही,
तमघैला भरि – भरि
अनलहुँ ।।
ब्राम्हण केर
मिथिला हम देखल,
आ हरिजन
केर मिथिला ।
सिक्ख ईसाई मुसलमान केर,
बौद्ध – जैन केर
मिथिला ।
पढ़ुआ केर
मिथिला हम देखल,
मुरूखक देखल
मिथिला ।
गामक मिथिला
अलगे भाखल,
शहरक अलगे
मिथिला ।
भारत केर मिथिला
सेहो देखल,
आ नेपालक सेहो
देखलहुँ ।
एक सिक्का लए गेल
रही,
तमघैला भरि – भरि
अनलहुँ ।।
बेतिया, मोतीहारी, वैशाली,
सीतामढ़ी आ शिवहर
।
दरिभंगा, मधुबनी, समस्ती –
पुर दुहु संग मुजफ्फर
।
किशनगंज, पुर्णिञा, अररिया,
बेगूसराय खगड़िया ।
बीच कौशिकी अछि सुपौल,
मधेपुराक संग सहरसा ।
कटिहारक मिथिला देखल,
हर घाटक पानिकेँ
चिखलहुँ ।
एक सिक्का लए गेल
रही,
तमघैला भरि – भरि
अनलहुँ ।।
दानवीर कर्णक धरती जे,
अंगक क्षेत्र रमणगर ।
ततहु देखल मिथिला माएक,
आँचर केर छाँह
मनोहर ।
बाबाधाम ओ आस-पास केर,
देखल अलगे मिथिला
।
मिथिलापुत्रक संग बसल,
अगनित प्रवासमे मिथिला ।
भारत ओ विश्वक हर
कोणा,
अलगे मिथिला
देखलहुँ ।
एक सिक्का लए गेल रही,
तमघैला भरि – भरि
अनलहुँ ।।
मिथिला केर हर रूप मनोहर,
सुन्नर छवि अभिराम ।
कहाँ केओ छल
श्रेष्ठ आ दोसर,
दीन – हीन सन्तान ।
जतऽ कतहु जे छथि
मैथिल,
से राखथु अप्पन मान
।
आ प्रवास केर क्षेत्रक सेहो,
देथु उचित सम्मान ।
भारत ओ नेपालमे
अलगे,
मिथिला केर माँगकेँ
देखलहुँ ।
एक सिक्का लए गेल
रही,
तमघैला भरि – भरि
अनलहुँ ।।
06 JUNE 2015
कऽ प्रकाशनार्थ “मिथिला दर्शन” केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।
मैथिली पाक्षिक
इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 193म अंक (01 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक 193) मे प्रकाशित ।