नवकी कनिञा
(गीत)
हरिहर झा* केर आङ्गन मे,
अएलखिन्ह आइ नवकी कनिञा ।
जनिका कारण चुटकी लै छन्हि,
हुनिकर सगरो दुनिञा ।
ठोकि बैसल छथि अपन कपार, सोचैत किछु अङ्गना मे ।
हरिहर झा केर आङ्गन मे ............................................... ।।
कोन जन्म केर पाप हमर छल,
भाग्य हमर एहेन भेल ।
कुल खानदानक मान मर्यादा,
माटि मे सभ मीलि गेल ।
हाय रेऽ जऽरल हमर कपार, सोचै छथि बैसि अङ्गना मे ।
हरिहर झा केर आङ्गन मे ................................................ ।।
मोबाइल पर बतियाए हमेशा,
जीन्स पैण्ट पहिरए छै ।
ब्युटी पार्लर जाय दड़िभंगा,
केश सेट करबए छै ।
पहीरि कऽ पएर मे सैण्डिल लाल, घुमै छै कोना अङ्गना मे ।
हरिहर झा केर आङ्गन मे .................................................... ।।
आठ बजे ओ सूति कऽ उठती,
काज ने किछुओ करती ।
लाज शर्म केर छुति ने कनिञो,
भरि दिन सिनेमा देखती ।
कोना चलतै एहि घऽरक काज, सोचै छति बैसि अङ्गना मे ।
हरिहर झा केर आङ्गन मे ................................................ ।।
* हरिहर झा नामक व्यक्ति काल्पनिक छथि ।
वास्तविक दुनिञाक कोनो हरिहर झा सँ एहि गीतक कोनो सम्बन्ध नञि थिक ।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४८, अंक – ९६, दिनांक - १५ दिसम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।
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