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Thursday, 1 December 2011

पद्य - २८ - की इएह कहाबैछ सुन्नरता ??

की  इएह   कहाबैछ   सुन्नरता ??
(कविता)




हर  अलंकरण   सज्जित  तन  पर,
हर  चालि - चलन  मे  अल्हरता ।
की  एतबहि  सँ ओ सुन्नर अछि ?
की  इएह   कहाबैछ   सुन्नरता ??


तन गोर, नयन  हिरणी सनि हो,
हो  अंग   अंग  मे  चञ्चलता ।
दुहु  ठोर  पात तिलकोरहि  सनि,
पातर  कटि  मे  हो  लोचकता ।।


हो पीनि पयोधर  शिरिफल  सनि,
मुस्कान  भरल   हो   मादकता ।
दाड़िम  दाना  सनि  दाँत  जकर,
हो  केश   मे  मेघक  पाण्डरता ।।


हर  अलंकरण   सज्जित  तन  पर,
हर  चालि - चलन  मे  अल्हरता ।
की  एतबहि  सँ ओ सुन्नर अछि ?
की  इएह   कहाबैछ   सुन्नरता ??



 
विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४८, अंक ९५, ‍दिनांक - १ दिसम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।



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