बरसातक एक राति
बहय माटि – पानि दुहु एक साथ ।
(छायाकार :- डॉ॰ शशिधर कुमर) |
असित अन्हार डेराओनि राति ।
झमकि झमकि बरिसय बरसात ।।
अछि अस्त सूर्य आ धुमिल चान ।
घूमय नभ मे चहुदिशि जलधर ।
करय गरजि गरजि कऽ मेघ नाद ।
रहि रहि चमकए चपला चञ्चल ।
बहए सुरभित शीतल रम्य बसात ।
झमकि झमकि बरिसय बरसात ।।
प्रेमीक विछोह, प्रेमिकाक क्षोभ ।
मयूरक खुशी अह्वलादित नर्तन ।
गर्मी सँ त्रस्त – पाओल राहत ।
करय जीव पावसक अभिनन्दन ।
पाओल राहत सभ कृषक समाज ।
झमकि झमकि बरिसय बरसात ।।
उमड़ल पोखड़ि, नदी, ताल,सड़सि ।
हर्षित ओ जन्तु जे जल सञ्चारी ।
करए दादुर, जोंक, साँप, सहसह ।
पसरल सौंसे धरती पर चाली ।
बहए माटि – पानि दुहु एक साथ ।
झमकि झमकि बरिसय बरसात ।।
पावस राति - ई कारी घोर ।
पुरिबा – पछबा से बड़ जोड़ ।
भेल भोर, पर रौद मलीन ।
सूर्य जेना निज शक्ति विहीन ।
कहुँ – कहुँ हंसक उनमुक्त पसार ।
झमकि झमकि बरिसय बरसात ।।
No comments:
Post a Comment