पोथी समीक्षा : गामक जिनगी
हम कोनो व्यावसायिक
आलोचक, समालोचक वा समीक्षक नञि छी, पर मैथिली पढ़ब – लिखब नेनपने सँ नीक
लगैत छल तेँ आइ एक गोट पोथीक समीक्षा लीखि रहल छी । पोथी थिक श्री जगदीश प्रसाद
मण्डल जी रचित कथा संग्रह “गामक जिनगी” - ओना कोनो पोथीक ई हमर पहिलहि समीक्षा छी । एहि पोथीक समिक्षा पहिनहु किछु
जगह ब्लॉग वा पत्रिका आदि मे प्रकाशित भऽ चुकल अछि जे पढ़ि हम स्वयं पुर्ण रूपेण
संतुष्ट नञि भऽ सकलहुँ आ पोथीक पुनर्समिक्षा करबाक इच्छा भेल । बहुधा देखल जाइत
अछि कि कथा संग्रहक नाँव कोनो एक गोट महत्त्वपुर्ण कथा वा घटना वा अंश पर राखि देल
जाइत अछि, पर एहि बेर से नहि । एहि
संग्रह मे १९ गोट कथाक समावेश भेल अछि आ संग्रहक हरेक कथा स्वतंत्र रूपेँ व समग्र
रूपेँ संग्रहक नाँव केँ प्रतिबिम्बित करैछ । हर कथा मे गामक जिनगीक एक अलगहि
स्वरुप देखबा मे अबैछ ।
आमुख मे श्री सुभाष
चन्द्र यादव जी बहुत सटीक लिखने छथि - "एहि संग्रहक कथा सभ मे औपन्यासिक
विस्तार अछि । वर्त्तमान समए मे प्रचलित आ मान्य कथा सँ ई कथा सभ भिन्न अछि । हर
कथा घटना बहुलता आ ऋजु सँ युक्त अछि ।" पर एहि औपन्यासिक विस्तार आ ऋजु सँ
युक्त होयबाक बादो हरेक कथा रुचिकर, लयबद्ध आ सुसम्बद्ध
अछि । आधुनिक टी॰भी॰ धारावाहिकक सदृश भँसियाइत नञि अछि, दिशाहीन सन नञि बूझि पड़ैत अछि । कथा केर प्रवाह दिग्भ्रमित नञि होइत अछि ।
कथाक हर घटना अप्पन ऋजु वा वक्रताक बावजूदो कथाक मुख्य भावनाक वा विषयवस्तुक
अनुपूरक व सम्वाहक अछि । जेना कि “डाक्टर हेमन्त” नामक कथा मे गामक जमीनक दियादी बँटवाड़ा, सरकारी नोकरीक झंझटि
आ क्लिनिकक झंझटि आ बाढ़िक संघर्ष चित्रित अछि पर तइयो कथा मे कोनो विरोधाभास नञि
अबैछ, कथा एक लय मे शान्त अखण्ड
प्रवाह जेना आगू बढ़ैत रहैत अछि ।
रौदी – दाही मिथिलाक सभ दिन सँ प्रमुख समस्या – तेँ गामक जिनगी मे ओ
समाविष्ट नञि हो से कोना । कथा संग्रहक आरम्भ “भैँटक लावा” आ “बिसाँढ़” नामक कथा सभ सँ
होइत अछि जाहि मे क्रमशः दाही (बाढ़ि) आ रौदी (अकाल) केर बहुतहि सटीक व सजीव वर्णन
भेटैछ । ओना मिथिलाक अभिन्न अंग होयबाक कारणेँ एहि बिभीषिका सभक विभिन्न रूपक
दर्शन आनो कथा सभ मे भेटैछ – पर हर बेर नऽव
स्वरूप मे, पुनरुक्ति कतहु नहि । 1967 ई॰ केर अकाल मे
भारतक तत्कालीन प्रधानमण्त्री केँ देखाओल गेल छल जे कोना मुसहर लोकनि बिसाँढ़ खा
कऽ अपन जीवनक रक्षा कएलन्हि – तकरे अधार बना कऽ “बिसाँढ़” नामक कथा लिखल गेल अछि ।
यद्यपि ई एहि प्रकारक कथा मैथिली साहित्य मे बहुत पहिनहि अयबाक चाहैत छल – पर नहि आबि सकल, एखन आयल अछि – मैथिली साहित्यक धरोहड़ि कथा बनत ।
जिनगी वास्तव मे
एकटा संघर्ष थिक, पर जे हिम्मत नञि
हारैत अछि, परिस्थितिक सामना करैत अछि
आ आगाँ बढ़ैत अछि सएह जीतैत अछि । ई एहि संग्रहक पुर्वार्धक हरेक कथाक मूल मण्त्र
अछि तथापि पढ़बा मे उपदेशात्मक कथा सनि बोझिल कथमपि नञि बूझि पड़त । हर कथा मैथिल
समाजक विभिन्न सामाजिक, आर्थिक वा
व्यावसायिक वर्गक जीवन संघर्ष केँ सजीव रूपेँ चित्रित करैछ चाहे ओ बोनिहारिन “मरनी” हो, ठेलाबला हो, चूनवाली हो, दू पाइ कमयबाक इच्छा सँ दिल्ली जायबला “फेकुआ” हो, पीरारक फऽड़ बेचि गुजर
कएनिहार “पिचकुन आ धनिया” हो वा जीविकाक लेल
संघर्षरत “शोभाकान्त व उमाकान्त” हो । चाहे ओ जीवनक उत्तरार्ध मे गाम आयल “श्रीकान्त आ मुकुन्द” होथि, नऽव युगक जीवनक अभिलाषी “कुसुमलाल” हो, माए बाप केँ एकसरि छोड़ि अमेरिका बसनिहार “रघुनाथ” हो अथवा अप्पन निजि जिनगी आ ऑफिसक बीच ओझड़ायल “डॉक्टर हेमन्त” हो ।
किनको मोन मे भऽ सकैत छन्हि जे
जिनगी तऽ ओहिना संघर्ष थिक - ओहि मे ई संघर्षक खिस्सा – पिहानी के पढ़त ? पर से नहि, लेखक केँ मनोविज्ञान पर एतेक जबर्दस्त पकड़ि छन्हि जे ओ जिनगीक संघर्षक एहि
कथा सभ केँ सेहो अत्यन्त सहज ओ रुचिकर ढंग सँ प्रस्तुत करबा मे सक्षम भेलाह अछि ।
कोनो कथा कत्तहु निन्नक गोली सनि नञि बुझना जायत । पात्र सभक नाँव – गाँव भले जे हो पर कथा पढ़बाक काल हर वर्गक पाठक लोकनि केँ कथा अपनहि वा अपनहि
कोनो सर – सम्बन्धीक बुझि पड़तन्हि ।
बहुतेक कथा जिनगीक संघर्ष
वा दुख सँ प्रारम्भ होइत अछि पर सुखान्त अछि – ई पाठक केँ एक
मनःस्फुर्ति दैछ । किछु कथा किछु वर्ग व ओहि वर्ग सँ जुड़ल व्यवसायक सैकड़ो वर्षक
उतार चढ़ाव व संघर्ष केँ चित्रित करैछ, जेना कि कुम्हार
(हारि – जीत) , चूनवाली आदि । वास्तव मे ठेलावला, रिक्सावला, चूनवाली, बोनिहारिन, कुम्हार आदि सभ तऽ अपनहि
मैथिल समाजक अंग छथि पर मैथिली साहित्य शायदे कखनहु अपन एहि अभिन्न अंग सभक सुधि
लेलक आ तेँ एहि वर्गक लोक सभ अपना केँ मिथिला - मैथिली सँ पृथक बुझैत रहलाह । ई
कथा संग्रह हुनिका लोकनिक मन मे विश्वास आ ढाढ़स दैछ कि ओहो सभ एहि मैथिल समाजक
अविभाज्य अंग छथि । यद्यपि पुर्व मे किछु साहित्यकार लोकनि एहि आर्थिक वा सामाजिक
रूप सँ पिछड़ल , संघर्षरत समुदाय पर
लिखबाक प्रयास कयलन्हि अछि पर या तऽ ओ कृत्रिम बुझाइत अछि अथवा यथार्थपरक रहितहु
पाठकक लेल ओ बोझिल सन बुझना जाइछ । एहि विषय सभ पर यथार्थपरक नीक व रुचिकर कथा सभक
मैथिली साहित्य मे बहुधा अभाव रहल अछि । हमरा विचारेँ एहि कथा संग्रह मे ई दोष नञि
– कथा संग्रह केर हरेक कथा
विभिन्न समाजिक वा आर्थिक वर्गक जीवन संघर्ष केँ चित्रित तऽ करैछ पर संगहि संग
पढ़बा मे रुचिकर सेहो लगैछ । एकर अतिरिक्त किछु कथा – जेना कि “अनेरुआ बेटा” आ “कामिनी” - अन्त मे एक गोट प्रश्न
छोड़ि समाप्त होइत अछि । कथा लेखनक ई शैली मैथिलीक प्रशिद्ध कथाकार स्व॰ राजकमल
चौधरीजीक कथालेखनक शैली सँ साम्य रखैत अछि जखन कि आन कथा किछु हद तक स्व॰ हरिमोहन
झाजीक कथाशैली सँ साम्य प्रदर्शित करैछ । पर शैली मे एहि प्रकारक साम्य कथमपि कोनो
कथाक मौलिकता केँ प्रभावित नञि करैछ ।
किछु लोकनिक कहब छन्हि जे
लेखकक कथा संघर्षपरक छन्हि , सौन्दर्यपरक नहि ।
पर हमरा जनैत लेखक जिनगीक संघर्षक संग – संग जिनगीक
सौन्दर्यक सफल ओ सकारात्मक चित्रण कयलन्हि अछि । लेखकक सौन्दर्यबोध मात्र दैहिक
नञि भऽ कऽ बहुत व्यापक अछि आ कायिक सौन्दर्यक अतिरिक्त जगह – जगह पर मानसिक ओ प्राकृतिक सौन्दर्यक अजगुत चित्रण भेटैछ ।
लेखक जहिना मैथिल समाजक विभिन्न
सामाजिक, आर्थिक वा व्यावसायिक रूपेण
दलित (पिछड़ल) वर्गक जीवन संघर्ष केँ अपन लेखनी मे उताड़बा मे सफल रहलाह अछि तहिना
स्त्रिगणक मनोवैज्ञानिक चित्रण करबा मे सेहो । हरेक वयसक व वर्गक स्त्रीक मनोदशाक
सजीव चित्रण एहि कथा संग्रह मे यत्र – तत्र भड़ल पड़ल अछि
। चाहे ओ भैँटक लावा मे “जिबछी” हो, बिसाँढ़ मे “सुगिया” हो, पीरारक फऽड़ बेचनिहारि “धनिया” हो, फेकुआक माए “रामसुनरि” होथि, पजेबा फोड़निहारि वृद्धा “मरनी” होथि वा मरनीक संग लबलब कएनिहारि स्वच्छन्द बाला “सुगिया” । चाहे पति सँ दू घड़ी बात
करबाक लेल तरसैत “रागिनी” हो, चून बेचनिहारि “मखनी”, ओकर पुतोहु “फुलिया” वा ओकर पोती “कबुतरी” हो, मसोमात “लुखिया” होथि, आधुनिक नऽव परिवेशक बाला “सुनएना” हो अथवा कोशी कछेड़क निश्छल बाला “सुलोचना” हो ।
एकर अतिरिक्त लेखक किछु आनो
सामाजिक समस्या सभ दिशि इशारा कएलन्हि अछि यथा स्त्री – भ्रुण हत्या (ठेलाबला), शराबक समस्या व नऽव जीवन
शैलीक लापरवाह अनुकरण (भैयारी), नऽव जीवन शैलीक
महत्त्वाकांक्षा आ टूटैत सम्बन्ध (बहीन, पछताबा व कामिनी), प्रतिभा पलायन (पछताबा), साम्प्रदायिक हिंसा
(बहीन) आ रुपैय्याक जोड़ेँ बेमेल बियाह (कामिनी) आदि ।
पोथीक भाषा शैली सर्वसामान्यक विशुद्ध मानक मैथिली थिक । ओना कतहु कतहु क्रिया आदिक प्रयोग मे मानक मैथिली सँ थोड़ेक फड़ाक बुझि पड़ैत अछि (यथा “लागल” केर स्थान पर “लगल”) परञ्च ओ कथाक पात्र आ परिवेशक अनुरूपहि थिक तेँ ओ मानक मैथिली सँ पृथक नञि थिक । भाषा विन्यास बहुतहि सहज व स्वभाविक अछि तेँ बुझबा मे दुरूह नञि । “किछु” केर जगह हमेशा “कुछ” वा “कछु” केर प्रयोग भेल अछि जे बहुशः कथानकक अनुरूप सही अछि पर कतहु - कतहु मानक मैथिली मे भऽ रहल सम्वाद मे अचानक “कुछ” या “अइठीन” केर प्रवेश अखरैत अछि । एक्कहि शब्द, पात्र व परिवेशक अनुसारेँ साहित्य मे एक स्थान पर मानक भऽ सकैछ तऽ दोसर स्थान पर नञि – यथा “कुछ” या “अइठीन” – जँ कथा मे कोनो गामक सर्वसामान्य लोकक वार्त्तालाप थिक तऽ ओहि ठाम मातृभाषा होयबाक कारणेँ ओ मानक मानल जायत, पर ओएह शब्द जँ कथा मे कोनो मैथिलीक विद्वान बजैत अछि वा आन लोक - जकर मातृभाषा मैथिली नञि थिक - से बजैत अछि तऽ ओहि ठाम ओ मानक सँ विचलित बूझल जायत । पोथी मे शब्दक वैविध्य आ खाँटी मैथिलीक विलोपित होइत शब्द सभक प्रयोग स्व॰ हरिमोहन झा जीक रचना सभक याद करा दैत अछि । खाँटी मैथिलीक विलोपित होइत शब्द सभक ई कथा सभ एक अनमोल संग्रह थिक । इतिहासक किछु एहनो बातक इशारा एहि कथा सभ मे भेटैछ जे शायद एखनुका पीढ़ीक धिया पुता केँ नञि बूझल होन्हि – यथा चून पहिने डोका सँ बनैत छल (चूनवाली) , कोना छतौनी सन सन मैथिल क्षेत्र मे अपनहि गलती सँ आन भाषा - भाषीक आधिपत्य भेल (बोनिहारिन मरनी) आदि ।
अन्त मे हम श्री गजेन्द्र जीक पाँती
(पोथीक पश्च मुखपृष्ठ पर देल) केँ दोहड़ाबए चाहब जे श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जी
केर कथा सभ मैथिली कथा धाराक यात्रा केँ एकभगाह होयबा सँ बचा लैत अछि । एहि
संग्रहक सभटा कथा उत्कृष्ट अछि, मैथिली साहित्यक
रिक्त स्थानक पुर्ति करैत अछि आ मैथिली साहित्यक पुनर्जागरणक प्रमाण उपलब्ध करबैत
अछि ।
ओना तऽ कोनो पोथी केँ पाठ्यक्रम
मे शामिल करबाक की प्रक्रिया छै से हमरा नञि बूझल पर अपन विषयवस्तु, मौलिकता आ भाषाविन्यासक आधार पर एहि कथा सभ केँ पाठ्यक्रम मे सम्मिलित करबाक
चाही । केवल एक – आध कथा केँ नहि अपितु
सम्पुर्ण कथा – संग्रह स्नातक वा उच्चतर
मैथिलीक पाठ्यक्रम मे शामिल करबा जोग अछि । बहुत सम्भव अछि जे हमर ई बात आइ
अतिशयोक्ति लागए पर भविष्य मे ई जरूर मैथिली पाठ्यक्रम मे अपन स्थान बनाओत ।
पोथीक नाँव – गामक जिनगी
लेखक – श्री जगदीश प्रसाद मण्डल
प्रकाशक – श्रुति प्रकाशन, 8/12, न्यू राजेन्द्र नगर, दिल्ली - 110008
दाम (अजिल्द / साधारण संस्करण) -
भारतीय रु॰ 200/ मात्र, वा US $ 60
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४८, अंक – ९६, दिनांक - १५ दिसम्बर २०११, स्तम्भ २॰८ मे प्रकाशित ।
शुभ समाद
साहित्य अकादेमीक "टैगोर लिटरेचर अवार्ड २०११" मैथिली लेल श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीकेँ हुनक लघुकथा संग्रह "गामक जिनगी" लेल देल गेल । कार्यक्रम कोच्चि मे १२ जून २०१२ केँ सम्पन्न भेल । श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक "गामक जिनगी" मैथिली साहित्यक इतिहासक सर्वश्रेष्ठ लघु कथा संग्रह सभ मे सँ एक अछि आ तेँ हमरा विश्वास अछि जे एहि पोथीक कथा सभ जल्दिअहि मैथिलीक पाठ्यक्रम सभ मे अपन स्थान पाओत । श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीकेँ बधाई ओ शुभकामना ।
टैगोर साहित्य पुरस्कार २०११ मैथिली, अंग्रेजी, कोंकणी, मलयालम, मणीपुरी, नेपाली आ सिंधी भाषासभ मे २००७ सँ २००९ केर बीच प्रकाशित पोथीसभपर देल गेल। संस्कृत लेल पुरस्कार नञि देल जा सकल।
ज्ञातव्य होअए कि २००९ टैगोर साहित्य पुरस्कार केर वितरणक अवसरि पर श्री नामवर सिंह, श्री अशोक वाजपेयी, श्री कृष्णा सोबती आ श्री केदारनाथ सिंह आदि लोकनि द्वारा पुरस्कार समारोहक बहिष्कार कएल गेल छल ।
ज्ञातव्य होअए कि २००९ टैगोर साहित्य पुरस्कार केर वितरणक अवसरि पर श्री नामवर सिंह, श्री अशोक वाजपेयी, श्री कृष्णा सोबती आ श्री केदारनाथ सिंह आदि लोकनि द्वारा पुरस्कार समारोहक बहिष्कार कएल गेल छल ।