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बाघक मौसी  कहै छी  जकरा,  तकरहि
नाम “बिलाड़ि” छै ।
एक्कहि कुल केर  जीव दूनू छै,  बहुतहि छोट  बिलाड़ि छै ।।
छोट  ओकर  कद-काठी
छै तेँ,  विचरि  रहल  निर्बाध छै ।
पैघ बिलाड़ि
जेकाँ ओक्कर नञि, सिकुड़ि रहल साम्राज्य छै ।।
कखनहुँ
म्याँउ-म्याँउ बाजैत अछि, खन गुम्हरैत आबाज छै ।
घऽर-आङ्गन  कि  बाध-बोन, 
सभठाँ  मार्यारक  राज छै ।।
अपना  मिथिलामे  प्रशिद्ध  बड़,  “गोनू झाक बिलाड़ि” छै ।*१
एतबा कीर्त्ति  जे  कहबी बनि गेल,  “गोनू झाक बिलाड़ि छै” ।।
मांसुभक्षी  आ  चतुर  शिकारी,  मूसक  करैछ
 शिकार  छै ।
माछक  चाट  बहुत
छै  ओकरा, 
दूधक  सद्यः काल  छै ।।
जतए बिलाड़िक
पहुँच असम्भव,  “सीक” एहेन निर्माण छै ।*२
सीक टुटल  तँऽ  भाग
बिलाड़िक,  तेँ ई कहबी विधान छै ।।
घर-आङ्गन जे
भेटैछ हरदम, सएह कहबैछ “बिलाड़ि” छै ।
जंगल-झाड़ 
बिलाड़ि  रहैछ जे,  से तँऽ “बन-बिलाड़ि” छै ।।*३
तेनुआ ओ जगुआर जेकाँ ओ, 
गाछ चढ़एमे  माहिर  छै ।
ऊँच भवन ओ गाछ-बिरिछसँ, कूदि जाइछ जग-जाहिर छै ।।*४
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संकेत आ किछु
रोचक तथ्य - 
*१ - गोनू झाक
खिस्साक बिलाड़ि ततेक ने प्रशिद्ध भेल कि ओकरा नाम पर कहबीअहि बनि गेल ।
*२ - “सीक” वस्तुतः दूध, दऽही आ माखन आदिकेँ बिलाड़िसँ सुरक्षित रखबाक
एकटा सस्ता लेकिन बहुत नीक उपाए छल ।
*३ - “बिलाड़ि” वस्तुतः मनुक्खहि
केर परिवेशमे रहैत अछि आ जे जंगली परिवेशमे रहैत अछि से “बनबिलाड़ि” कहबैत अछि ।
बनबिलाड़िकेँ “खटाँसु” (उच्चारण - खटाँउस या खटौंस)
अथवा “खटाँस” सेहो कहल जाइत
अछि । मुदा “खटाँसु” या “खटाँस” शब्दक अन्तर्गत “बनबिलाड़िक” अतिरिक्त एकटा आन
जन्तु सेहो अबैत अछि जकरा अंग्रेजीमे “सीवेट” (CEVET) कहल जाइत अछि ।
एकर गुणक आधार पर एकरा मैथिलीमे “गन्हबिलाड़ि” कहि सकैत छी
(हलाँकि मैथिलीमे एकर ई नाँओ प्रचलित नञि अछि) । 
*४ - बिलाड़ि कुल (Family - FELIDAE) केर मात्र ४ टा सदस्य गाछ पर चढ़बामे माहिर होइत अछि । ओ चारू सदस्य अछि -
तेन्दुआ (तेनुआ), जगुआर, बनबिलाड़ि आ स्वयं बिलाड़ि ।
मैथिली
पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 210म अंक (15 सितम्बर 2016) (वर्ष 9, मास 105, अंक 210) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे प्रकाशित ।