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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Tuesday, 4 October 2016

पद्य - ‍२‍१६ - भाषा हमर पुरान अछि (कविता)

भाषा हमर पुरान अछि (कविता)



भाषा  हमर  पुरान  अछि ।
हमरा तकर  गुमान  अछि ।
मैथिली कोकिल आ कविशेखर केर रचना पहिचान अछि ।।

भक्ति-सिंगारक रसमे डूबल ।
शेष रसक पँचफोड़ना छीटल ।
कुञ्जभवन-साड़ी-गिरिधारी,  की एतबहि पहिचान अछि ??

साहित्यक भण्डार  बेस छै ।
जनसंख्या आधार  बेस छै ।
मुदा पढ़ौनीमे  तइयो नञि,  भेटि रहल  स्थान अछि ।।

क्षेत्र रहल दर्शन ओ ज्ञानक ।
रहल भूमि  नाना विज्ञानक ।
मैथिलीक साहित्य जगतमे,  तकर शुन्य स्थान अछि ।।

जँ ई छी जनजन केर भाषा ।
जँ निष्प्राण भेल नञि भाषा ।
तखन किए हर पत्र-पत्रिकाक, अबटी खेत परान अछि ।।

विद्वानक  भाषा   संस्कृत ।
अंग्रेजी - हिन्दी  सेहो नीक ।
भाषा बकलेलहाक मैथिली, एखनहु किए विधान अछि ??



सांध्य गोष्ठी (मैथिली अनियतकालीन पत्रिका) केर आठम पुष्प / अंक (अक्टूबर 2016) मे प्रकाशित ।


Sunday, 2 October 2016

पद्य - ‍२‍१५ - बिलाड़ि (बाल कविता)

बिलाड़ि (बाल-कविता)
-

बाघक मौसी  कहै छी  जकरा,  तकरहि नाम बिलाड़ि छै ।
एक्कहि कुल केर  जीव दूनू छै,  बहुतहि छोट  बिलाड़ि छै ।।

छोट  ओकर  कद-काठी छै तेँ,  विचरि  रहल  निर्बाध छै ।
पैघ बिलाड़ि जेकाँ ओक्कर नञि, सिकुड़ि रहल साम्राज्य छै ।।

कखनहुँ म्याँउ-म्याँउ बाजैत अछि, खन गुम्हरैत आबाज छै ।
घऽर-आङ्गन  कि  बाध-बोन,  सभठाँ  मार्यारक  राज छै ।।

अपना  मिथिलामे  प्रशिद्ध  बड़,  गोनू झाक बिलाड़ि छै ।*
एतबा कीर्त्ति  जे  कहबी बनि गेल,  गोनू झाक बिलाड़ि छै ।।

मांसुभक्षी  आ  चतुर  शिकारी,  मूसक  करैछ  शिकार  छै ।
माछक  चाट  बहुत छै  ओकरा,  दूधक  सद्यः काल  छै ।।

जतए बिलाड़िक पहुँच असम्भव,  सीक एहेन निर्माण छै ।*
सीक टुटल  तँऽ  भाग बिलाड़िक,  तेँ ई कहबी विधान छै ।।

घर-आङ्गन जे भेटैछ हरदम, सएह कहबैछ बिलाड़ि छै ।
जंगल-झाड़  बिलाड़ि  रहैछ जे,  से तँऽ बन-बिलाड़ि छै ।।*

तेनुआ ओ जगुआर जेकाँ ओ,  गाछ चढ़एमे  माहिर  छै ।
ऊँच भवन ओ गाछ-बिरिछसँ, कूदि जाइछ जग-जाहिर छै ।।*


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संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - गोनू झाक खिस्साक बिलाड़ि ततेक ने प्रशिद्ध भेल कि ओकरा नाम पर कहबीअहि बनि गेल ।

* - सीक वस्तुतः दूध, दऽही आ माखन आदिकेँ बिलाड़िसँ सुरक्षित रखबाक एकटा सस्ता लेकिन बहुत नीक उपाए छल ।

* - बिलाड़ि वस्तुतः मनुक्खहि केर परिवेशमे रहैत अछि आ जे जंगली परिवेशमे रहैत अछि से बनबिलाड़ि कहबैत अछि । बनबिलाड़िकेँ खटाँसु (उच्चारण - खटाँउस या खटौंस) अथवा खटाँस सेहो कहल जाइत अछि । मुदा खटाँसु या खटाँस शब्दक अन्तर्गत बनबिलाड़िक अतिरिक्त एकटा आन जन्तु सेहो अबैत अछि जकरा अंग्रेजीमे सीवेट (CEVET) कहल जाइत अछि । एकर गुणक आधार पर एकरा मैथिलीमे गन्हबिलाड़ि कहि सकैत छी (हलाँकि मैथिलीमे एकर ई नाँओ प्रचलित नञि अछि) ।

* - बिलाड़ि कुल (Family - FELIDAE) केर मात्र ४ टा सदस्य गाछ पर चढ़बामे माहिर होइत अछि । ओ चारू सदस्य अछि - तेन्दुआ (तेनुआ), जगुआर, बनबिलाड़ि आ स्वयं बिलाड़ि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍210म अंक (‍15 सितम्बर 2016) (वर्ष 9, मास 105, अंक ‍210) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।




पद्य - ‍२‍१४ - बनबिलाड़ि आ खटाँसु/खटाँस (बाल कविता)

बनबिलाड़ि खटाँसु/खटाँस
(बाल कविता)




छी बिलाड़ि ओ जे मनुक्ख केर,
घऽर - आङ्गन खरिहान  भेटैछ ।
आ  मनुक्ख  केर   परिवेशहिमे,
जकर  सभक  सन्तान  पलैछ ।।*

आन बिलाड़ि  जतेक जे  बाँचल,
बनबिलाड़ि केर  नाम  पाबैछ ।
बाध - बोन  जंगल  आ  झाड़मे,
बनबिलाड़ि  केर   बास  रहैछ ।।*

साँझ - परातहि  घुमैत - घामैत,
बाट - घाट   खरिहान   भेटैछ ।
छै   बिलाड़िसँ  पैघ - पुष्ट  ओ,
मोटका भोकना बिलाड़ि लागैछ ।।

एकरहि  तँऽ  यौ  गाम - घऽरमे,
दोसर   नाम  खटाँसु  कहैछ ।
पर  खटाँसु  शब्दक   परीधिमे,
आनहु  जन्तुक  नाँओ  आबैछ ।।*

तेँ  अर्थक  फरिछौठ  लेल  किछु,
होअए  उपाए  से  माँग  करैछ ।
जोड़ि  विशेषण, भिन्न  कएल तेँ,
अपन - अपन  दूनू नाम पबैछ ।।*

जे  खटाँसु   मार्यार   समूहक,
बनबिलाड़ि - खटाँसु”    भेलैक ।
अथवा   मांसुक   भक्षण   कारण,
मांसुभक्षी - खटाँसु    हेतैक ।।*

आन  समूहक  जे   खटाँसु  से,
मांसु  खाइछ,  फलाहार  करैछ ।
तेँ  अप्पन  गुण  केर अनुसारहि,
सर्वभक्षी - खटाँसु    भेलैक ।।*




संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - मैथिलीमे जाहि जन्तुक नाम बिलाड़ि अछि से अंग्रेजी ढर्रा पर घरैया बिलाड़ि (DOMESTIC CAT / FERAL CAT) भेल किएक तँऽ ई मनुक्खक घऽर-आङ्गन खरिहान-दलान आदि स्थानहि पर रहैत अछि । वस्तुतः बिलाड़िक बेसीतर समय मनुक्खहि केर परिवेशमे बितैत अछि, ओकर बच्चासभ मनुक्खहि केर परिवेशमे जन्म लैत अछि आ पैघहु होइत अछि ।

* - आन बिलाड़िसभ जे मनुक्खक परिवेशसँ दूर बाध-बोन, जंगल-झाड़ आदिमे रहैत अछि आ जकर बच्चासभ ओही परिवेशमे जन्मैछ आ पलैछ-बढ़ैछ, तकरासभकेँ मैथिलीमे बनबिलाड़ि कहल जाइत अछि । ओ सभ साँझ-परात कहुखन-कहुखन मनुक्खक परिवेशमे या बाट-घाट पर घुमैत-फिरैत भेटि सकैत अछि पर बेसी काल मनुक्खक परिवेशसँ दूरहि रहैत अछि । बनबिलाड़ि बिलाड़िक अपेक्षा आकारमे थोड़ेक पैघ होइत अछि ।

* - बनबिलाड़िकेँ खटाँसु (उच्चारण - खटाँउस या खटौंस) अथवा खटाँस (कल्याणी कोशमे देल वर्तनीक अनुसार) सेहो कहल जाइत अछि । मुदा एहि शब्दक एकटा समस्या छैकखटाँसु या खटाँस शब्द बनबिलाड़ि समूहक जन्तुक अतिरिक्त एकटा आनहु जन्तुक लेल प्रयुक्त होइत अछि जकरा अंग्रेजीमे सीवेट (CIVET) कहल जाइत अछि ।

**- आजुक परिस्थितिमे एहि तरहक ओझराएल शब्दकेँ फरिछाएब आ फरिछाए कऽ परिभाषित करब आवश्यक । तेँ हम समानता ओ विषमताकेँ देखैत खटाँसु या खटाँसकेँ दू टा व्यापक समूहमे बाँटल अछि ।

*- खटाँसु (खटाँस) केर पहिल समूह भेल बनबिलाड़ि खटाँसु (खटाँस) जे कि ऊपर बनबिलाड़ि नामसँ परिभाषित कएल गेल अछि । ई जन्तुसभ बिलाड़ि कुल या मार्यार कुल (Family - FELIDAE) केर सदस्य अछि । ई सभ प्राकृतिक रूपसँ मुख्यतः मांसु केर भक्षण करैछ अर्थात मांसुभक्षी (CARNIVOROUS) होइत अछि । तेँ एकरासभकेँ मांसुभक्षी खटाँसु (खटाँस) सेहो कहि सकैत छी ।



*- खटाँसु (खटाँस) केर दोसर समूहकेँ हिन्दीमे गन्धबिलाव कहल जाइत अछि कारण जे एकर एकरासभमे कस्तुरी सनि सुगन्ह (सुगन्धि) होइत अछि । तेँ मैथिलीमे  गन्हबिलाड़ि (या सुगन्हबिलाड़ि) खटाँसु (खटाँस) कहि सकैत छी । मुदा ध्यातव्य जे गन्हबिलाड़ि कोनहु बिलाड़ि नञि छी आ नहिञे बिलाड़ि कुल या मार्यार कुल (Family - FELIDAE) सँ एकर कोनहु सम्बन्ध अछि । ई जन्तुसभ विवेराइडी कुल या गन्हबिलाड़ि कुल (Family - VIVERRIDAE) केर सदस्य अछि आ रातिचर होइत अछि । ई सभ प्राकृतिक रूपसँ मांसु आ संगहि संग फऽल (यथा - आम, चीकू, ताड़कून आदि) ओ घास-पातक भक्षण सेहो करैछ, मतलब कि ई सब नैसर्गिक रूपेँ सर्वभक्षी (OMNIVOROUS) होइत अछि । तेँ एकरासभकेँ सर्वभक्षी खटाँसु (खटाँस) सेहो कहि सकैत छी । बंगालीभाषामे एकरा "न्धगोकूल या "खाटोश कहल जाइत अछि । 

मैथिलीमे किछु गोटे एहि सर्वभक्षी खटाँसुकेँ  "फकसिआर / फकसियार" सेहो कहैत छथि । मुदा कल्याणी कोशकार एहि जन्तुक विषयमे विशेष विवरण नञि दए माात्र WILD ANIMAL कहि छोड़़ि देलन्हि अछि जखनि कि "खाटाँस केेर अन्तर्गत WILD CAT, POLE CAT आ CIVET केर समावेश कएलन्हि अछि ।




मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍210म अंक (‍15 सितम्बर 2016) (वर्ष 9, मास 105, अंक ‍210) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।