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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Thursday, 2 August 2012

पद्य - ८९ - साओन मे विरह


साओन मे विरह



रिमझिम - रिमझिम साओन बरिसय,
हहराबय अछि हिया सखि मोर ।
कारी – कारी     बादर     गरजय,
सिहराबय  अछि   पोरे – पोर ।।



दिन  दुपहरिया,  राति  निवीड़तम,
झंकृत मन – मृदंग  बड़  जोड़ ।
पी  संग  ओहिना  हमहूँ  नचितहुँ,
नाचय  जहिना   हर्षित  मोर ।।



पिक – रव, पी – पी मदन जगाबय,
गति मोर  जहिना चन्द्र चकोर ।
सखि हे भाग्य   हमर  बड़   निष्ठुर,
निर्दयि  केहेन   अछि  चितचोर ।।



सुरभित धरणि – रमणि – रुचि सुन्नर,
दादुर   टर्र – टर्र   करइछ   जोर ।
सिहकय   पुरिबा,    रहि – रहि   पछबा,
तरसैत राति  होइछ सखि भोर ।।







डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                


विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५५,  अंक ‍११० , ‍१५ जुलाई २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२” मे प्रकाशित ।






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