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Sunday, 26 August 2012

वायरल हिपेटायटिस : जानकारी आ बचाव



विज्ञान विषयक लेख सभक लेल नित नऽव पारिभाषिक शब्द सभक आवश्यकता पड़ैछ । एहि प्रकारक पारिभाषिक शब्द सभ कोनहु भाषा मे ओकर मातृक मूल भाषा (Parent / Source language) सँ बनाओल जाइछ, यथा अंग्रेजी मे लैटिन सँ  मैथिली मे संस्कृत सँ 



वायरल हिपेटायटिस : जानकारी  आ बचाव



परिचय -

                    सामान्य बजबा भुकबा मे जाउण्डिस आ हिपेटायटिस एकरंगाहे सन बूझल जाइत अछि, पर वास्तव मे दुहु मे अन्तर थिक । ककरहु शरीर केर सामान्यापेक्षा बेसी पीयर होयब (आँखिक डिम्भा पियर भइयो सकैत छै वा नहिञो भऽ सकैत छै) पाण्डु /  पीतवर्णता / जाउण्डिस (Jaundice)  कहल जाइत अछि । ठेठ मैथिलि मे एकरा पीरी पकड़ब कहल जाइछ । ई एक टा लक्षणमात्र थिक जे कि रोगी केँ देखला भरि सँ बुझबा मे अबैछ । एकर कतेको कारण भऽ सकैत अछि जाहि मे अधिकांशतः यकृत / लीवर (Liver) तथा पित्ताशय (Gall Bladder) सँ सम्बन्धित होइत अछि जखन कि बाँकी किछु कारण एहि दुहु सँ असम्बद्ध । एहने एक गोट कारण अछि यकृत नामक अवयव केँ किछु कारणवश फुलि जायब अर्थात यकृतशोथ या हिपेटायटिस (Hepatitis) नामक बेमारी  एहि यकृतशोथ या हिपेटायटिस केर सेहो बहुतहि कारण भऽ सकैत अछि परञ्च भारत मे विषाणु या वायरस (Virus) नामक सुक्ष्मातिसुक्ष्म जीव सभसँ पैघ कारण अछि ।  विषाणु या वायरस  कारणीभूत होयबाक कारणेँ एहि प्रकारक यकृतशोथ केँ विषाणुजन्य यकृतशोथ वा वायरल हिपेटायटिस (Viral Hepatitis) कहल जाइत अछि । एकर अतिरिक्त आन कारण सँ सेहो कृतशोथ होइत अछि, जकर कारण ओ चिकित्सा भिन्न – भिन्न होइछ, यथा मद्यजन्य हिपेटायटिस (Alcoholic Hepatitis)  आदि ।


संक्रमण आओर प्रकार -

                      विषाणुजन्य यकृतशोथ वा वायरल हिपेटायटिस केर संक्रमणकारक विषाणुक एखन धरि छौ टा प्रजाति केर पहिचान कयल गेल अछि जे क्रमशः हिपेटायटिस वायरस A, B, C, D, E आओर G कहल जाइत अछि । हर शास्त्र जेकाँ चिकित्साशास्त्र मे सेहो किछु पारिभाषिक शब्दावली होइत छै जे आगाँ बढ़बाक संग - संग यथास्थान फरिछाओल जायत । 




                         कोनहु बेमारीक संक्रामक तत्त्व (Infectious agent / entity) जाहि मार्ग सँ मनुक्खक शरीर मे प्रवेश करैछ ओकरा संक्रमण मार्ग (Route of infection) कहल जाइछ । हिपेटायटिस वायरस - A मनुक्ख केर विष्ठा (मल वा पैखाना) सँ संक्रमित अन्न – पानि खएला – पिउला सँ संक्रमित करैत अछि जखन कि हिपेटायटिस वायरस - E केर संक्रमण संक्रमित पानि पिउला सँ पसरैछ । एहि प्रकारक संक्रमण मार्ग केँ विष्ठा - मौखिक संक्रमण मार्ग या फीकल – ओरल रूट (Fecal Oral Route) कहल जाइत अछि । हिपेटायटिस वायरस B, C  D केर संक्रमण संक्रमित रुधिर (खून) वा यौन सम्बन्ध सँ होइछ जखन कि  हिपेटायटिस वायरस G मात्र संक्रमित रक्त सँ पसरैछ । जखन एक व्यक्तिक संक्रमित रक्त सँ दुषित सूई आदि केर सम्पर्क कोनो दोसर व्यक्ति केर खून सँ होइत अछि तँ एहि प्रकारेँ रक्तजन्य संक्रमणक प्रसार होइछ । विष्ठा - मौखिक संक्रमण मार्ग केर अतिरिक्त समस्त संक्रमण मार्ग केँ अमौखिक / आन्त्रेतर संक्रमण मार्ग या पैरेण्टेरल रूट (Parenteral route) कहल जाइछ ।  

                   कोनहु रोगक संक्रामक तत्त्व (बैक्टिरीया, वायरस आदि) केर संक्रमण भेला सँ लऽ कऽ ओहि रोगक पहिल लक्षण प्रगट होयबा धरिक समय केँ ओहि संक्रामक तत्त्वविशेषक विकास अवधि या इन्क्यूबेशन पिरियड (Incubation period) कहल जाइत अछि ।
 
                    जखन कोनो संक्रमण केर विकास – अवधि छोट होइत छै आ प्रायः रोगक तीव्रता बेसी होइत छै तँ ओकरा आशुकारी संक्रमण (Acute infections) कहल जाइत अछि । एहि तरहक संक्रमण तीव्र होयबाक कारणेँ तुरन्त मारक भऽ सकैछ पर उचित ईलाज करओला सँ प्रायः पुर्णतः ठीक भऽ जाइत अछि, जेना कि हिपेटायटिस –A संक्रमण   जखन कोनो संक्रमण केर विकास – अवधि प्रायः पैघ होइत छै अथवा रोगक लक्षण बेसी कालावधि धरि विद्यमान रहैत छै तँ ओकरा चिरकारी संक्रमण (Chronic infections) कहल जाइत अछि । जँ यकृत वा लीवर मे सूजन (फुलब या शोथ) ३ सँ ६ महिना वा ओहि सँ बेसी कालावधि तक हो तँ ओकरा चिरकारी अवस्था कहल जाइत अछि; जेना कि प्रायः हिपेटायटिस B आओर C वायरस केर संक्रमण मे होइछ । ओना हिपेटायटिस B वायरस कहुखन – कहुखन आशुकारी सेहो भऽ सकैछ ।
 
                  चिरकारी संक्रमण मे प्रारंभिक अवस्था मे प्रायः रोगक तीव्रता बेसी नञि रहैत छै तेँ  सद्यः मारक नञि होइत अछि । परञ्च कएक बेर चिकित्सा कयला केर बबजूदहु ओकर संक्रामक तत्त्व (बैक्टिरीया, वायरस आदि) पूर्ण रूपेण नञि मरैछ आ किछु ने किछु मात्रा मे शरीर मे विद्यमान रहैछ; एहि अवस्था केँ वाहक अवस्था / संवाहक अवस्था या कैरियर स्टेट (Carrier stage / state) कहल जाइत अछि । एहि अवस्था मे रोगी मे ओहि रोगक कोनहु लक्षण नञि देखबा मे अबैछ पर ओ संक्रमण केँ दोसरा व्यक्ति धरि पसारबा मे सक्षम रहैछ । कएक बेर एहि अवस्था मे रहितहु (व्याधिक्षमत्त्व या इम्युनिटी ठीक रहला सँ वाकोनहु आन अज्ञात कारण सँ)  रोगी मे आजीवन रोगक लक्षण नहि देखबा मे अबैछ । परन्तु किछु रोगी मे वाहक अवस्था केर कालावधि मे लक्षण नहिञो रहैत रोग अन्दर – अन्दर पसरैछ आ बाद मे पुनः पुर्ण रूप धारण कऽ लैछ आ मारक (प्राणघातक) भऽ सकैछ । एहि प्रकारक अवस्था केँ गुप्तावस्था / गुप्त संचरणावस्था (Latent phase / Latent phase of progression) कहल जाइत अछि जे कि हिपेटायटिस B, C, D आओर G मे देखबा मे अबैछ ।
 



संक्रामक तत्त्व
(हिपे॰ वाय॰ प्रकार)


हिपेटायटिस वायरस A


हिपेटायटिस वायरस B


हिपेटायटिस वायरस C


हिपेटायटिस वायरस D


हिपेटायटिस वायरस E


हिपेटायटिस वायरस G

संक्रमण मार्ग
विष्ठामौखिक
(संक्रमित अन्न ओ जल)
अमौखिक / आन्त्रेतर
(संक्रमित रक्त व यौन सम्बन्ध)
अमौखिक / आन्त्रेतर
(संक्रमित रक्त व यौन सम्बन्ध)
अमौखिक / आन्त्रेतर
(संक्रमित रक्त व यौन सम्बन्ध)
विष्ठामौखिक (मात्र संक्रमित जल)
अमौखिक / आन्त्रेतर
(मात्र संक्रमित रक्त)
विकास अवधि
०२ – ०६ सप्ताह
०४ – २६ सप्ताह
०२ – २६ सप्ताह
०४ -०७ सप्ताह
०२ – ०८ सप्ताह
अज्ञात (एखन धरि नञि बूझल)
वाहक अवस्था
नञि
भऽ सकैछ
भऽ सकैछ
भऽ सकैछ
अज्ञात (एखन धरि नञि बूझल)
भऽ सकैछ
चिरकारित्व
नञि
भऽ सकैछ
भऽ सकैछ
भऽ सकैछ
नञि
नञि
भविष्य मे लीवर कैन्सरक खतरा
नञि
भऽ सकैछ
भऽ सकैछ
नञि पर हिपे॰बी॰ संगे भऽ सकैछ
अज्ञात पर सम्भव थिक
नञि


                   अपना मिथिला समेत सम्पुर्ण भारत मे बेसीतर हिपेटायटिस A B वायरस केर संक्रमण भेटैत अछि जखन कि DE वायरस प्रायः दक्षिण भारत मे । पर देश – विदेश मे आवागमनक सुविधा बढ़बाक कारणेँ आइ – काल्हि अपनहु दिशि हिपेटायटिस C वायरस केर रोगी काफी बढ़ल अछि जखन कि हिपेटायटिस D,EG वायरस सँ संक्रमित रोगी सेहो भेटय लागल अछि ।


लक्षण -

                  आशुकारी यकृतशोथ अचानक शुरू होइत अछि, किछु घण्टा पहिने रोगी पूरा ठीक महसूस कऽ रहल छल आ तुरन्ते बहुते लक्षण सभ देखबा मे अबैछ । एकर प्रारम्भ आन वायरल संक्रमणहि (Other viral infections) जेकाँ सुस्ती, अपच, भूख नञि लागब, देह दुखायब, मथदुखी, जी – घबरायब आदि सँ होइत अछि । किछुए काल बाद तीव्र सन्धिशूल (ठेहुन आदि सन्धि सभक दुखायब), पेट दुखायब, पेट फूलब, उल्टी होयब आदि लक्षण उत्पन्न भऽ जाइछ । चेहरा आ आँखि केर पीयर होयब (जाउण्डिस) पहिने सँ रहैछ पर कहुखन – कहुखन ई लक्षण एतेक प्रबल नञि रहैछ कि ओहि सँ हिपेटायटिसक अनुमान लगाओल जा सकय । पेट केर दाहिना आ ऊपरी भाग मे स्पर्श कएला सँ दुखायब – ई एक टा महत्त्वपुर्ण लक्षण थिक ।





              चिरकारी  यकृतशोथ मे सुस्ती, अपच, भूख नञि लागब, देह दुखायब आदि सामान्य लक्षण रहैछ अथवा बहुधा कोनहु लक्षण नञि रहैछ । प्रायः एकर पता कोनो आन सन्दर्भ मे कराओल गेल परीक्षण सभ सँ चलैत अछि । पेट केर दाहिना आ ऊपरी भाग मे स्पर्श कएला सँ दुखायब सेहो रहि सकैत अछि पर दुखयबाक प्रमाण प्रायः आशुकारीक अपेक्षा कम रहैछ ।

                देह ओ आँखि पीयर होयब (जाउण्डिस) प्रायः एहि रोग मे बहुत बाद मे देखबा मे अबैछ, प्रारम्भ मे नञि । तेँ जाउण्डिस एहि रोग गम्भीरता केर तरफ निर्देश करैछ नञि कि शुरुआत दिशि (जन सामान्यक सोचक विपरीत) ।


जाँच वा परिक्षण -

                    एहि तरहक कोनहु बेमारी मे चिकित्सक पहिने खून आ लग्घी केर सामान्य जाँच (Routine lab investigations for Blood & Urine) करबैत अछि । सामान्य जाँच केर आधार पर वा पेट मे उपरोक्त विशिष्ट स्थान पर दुखएबाक आधार पर लीवर फंक्शन टेस्ट (Liver function test) करबैत अछि । आवश्यकतानुसारेण विशिष्ट वायरस प्रजातिक जानकारी हेतु विशिष्ट इम्युनोग्लोबयुलीन / एण्टीजेनिक टेस्ट (IgG & IgM for specific viral strain) सेहो कराओल जा सकैछ । 

                 हिपेटायटिस B केर पहिचान करबाक लेल एकटा विशेष परिक्षण कराओल जाइत अछि जकर नाँव थिक – ऑस्ट्रेलिया एण्टीजन (AuAg)टेस्ट । एकरहि दोसर नाँव थिक हिपेटायटिस बी॰ सर्फेस एण्टीजन (HBsAg) टेस्ट । लीवर आदिक अवस्था जानबाक लेल चिकित्सक सोनोग्राफी / अल्ट्रासाउण्ड (Sonography / Ultrasound), सी॰टी॰ सकैन (CT – Scan) वा एम॰ आर॰ आइ॰ स्कैन (MRI – Scan) करयबाक सुझाव सेहो दऽ सकैत अछि ।


बेमारी सँ पुर्व बचाव –

              हिपेटायटिस वायरस A आओर E  सँ बचबाक लेल पानि हमेशा ओहि कऽल सँ पिउबाक चाही जकर पाइप नीक जेकाँ नीचाँ (प्रायः ‍१८० सँ २२५ फीट नीचाँ)  धँसाओल गेल हो । जँ से नञि तँ पानि केँ ‍३० मिनट तक खौला कऽ ठण्ढा कऽ कऽ पिउपाक चाही । मल प्रसंस्करण / सीवेज ट्रीटमेण्ट (Sewage treatment) सँ बनल खाद सँ उपजाओल गेल अन्न – फल – तरकारी आदि यथासम्भव नञि खयबाक चाही । कोनहु फल आदि केँ जञो काँचे खयबाक हो तँ नीक सँ पानि सँ धो ली । आ सभसँ मुख्य बात कि मल विसर्जनक बाद आ खएबा सँ पहिने हाथ नीक जेकाँ साबुन आदि सँ धो ली ।

             हिपेटायटिस वायरस B,C,D आओर G  सँ बचबाक लेल हमेशा डिस्पोजेबल सिरिंज ओ सूई (Disposable syringes & needles) केर प्रयोग करी । जँ कोनहु डॉक्टर वा कम्पाउण्डर वा नर्स से नञि करैछ तँ अहाँ ओकरा एहि बात केर लेल कहि सकैत छी । एक दोसराक रेजर (Razor) आदि प्रयोग नञि करी । असुरक्षित यौन – सम्बन्ध सँ बची ।

            हिपेटायटिस A टीका (Hepatitis - A vaccine) उपलब्ध अछि । बच्चाक (‍०१ सँ ‍१८ वर्ष) लेल मात्र एक खोराक देल (Single dose) जाइत अछि , जखन कि वयस्कक लेल पहिल खोराकक बाद एक टा समर्थक खोराक (Booster dose) ०६ या ‍१२ महीना बाद देल जाइत अछि ।

           हिपेटायटिस B टीका (Hepatitis - B vaccine) सेहो उपलब्ध अछि, एकर ३ टा खोराक (Primary dose with 2 booster doses) होइत छै जे तीनू खोराक पहिल खोराकक ६ सँ ‍१२ महीना केर बीच देल जाइत छै । दुहु टीका इन्जेक्शन स्वरूप मे देल जाइत अछि । दुहुक प्रभावी काल (Effective period) टीका देलाक ‍१५ सँ २० वर्ष धरि बताओल जाइत अछि ।


बेमारी भेलाक बाद बचाव –

           चिकित्सकक परामर्श ली आ परामर्शक अनुसारे आचरन करी । पुर्ण विश्राम (Bed rest) करी । सादा सुपाच्य भोजन ली । कम सँ कम ठीक होयबा पर्यन्त मशाला आ तेल सभक प्रयोग नञि वा अत्यल्प करी । आ बेमारी सँ पुर्व बचाव केर लेल कहल गेल बात सभ केर सेहो ध्यान राखी ।

           हर वर्ष २८ जुलाई कऽ हिपेटायटिस केर सम्बन्ध मे जानकारी ओ जागरूकता पसारबाक लेल विश्व हिपेटायटिस दिवस (World Hepatitis Day) मनाओल जाइत अछि । आउ हमहूँ सभ गोटे संकल्प करी जे मिथिला, बिहार, भारत आ सम्पुर्ण विश्व एहि बेमारी सँ मुक्त हो ।






डॉ॰ शशिधर कुमर "विदेह"                                  
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४,





"मिथिलांचल टुडे" मैथिली द्वैमासिक पत्रिका केर पहिल अंक (मई - जून २०‍१‍२) मे प्रकाशित।


Thursday, 2 August 2012

पद्य - ८९ - साओन मे विरह


साओन मे विरह



रिमझिम - रिमझिम साओन बरिसय,
हहराबय अछि हिया सखि मोर ।
कारी – कारी     बादर     गरजय,
सिहराबय  अछि   पोरे – पोर ।।



दिन  दुपहरिया,  राति  निवीड़तम,
झंकृत मन – मृदंग  बड़  जोड़ ।
पी  संग  ओहिना  हमहूँ  नचितहुँ,
नाचय  जहिना   हर्षित  मोर ।।



पिक – रव, पी – पी मदन जगाबय,
गति मोर  जहिना चन्द्र चकोर ।
सखि हे भाग्य   हमर  बड़   निष्ठुर,
निर्दयि  केहेन   अछि  चितचोर ।।



सुरभित धरणि – रमणि – रुचि सुन्नर,
दादुर   टर्र – टर्र   करइछ   जोर ।
सिहकय   पुरिबा,    रहि – रहि   पछबा,
तरसैत राति  होइछ सखि भोर ।।







डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                


विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५५,  अंक ‍११० , ‍१५ जुलाई २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२” मे प्रकाशित ।