मिथिलाक "छठि" (छइठ, छैठ, छठी) आ बिहारक "छठ"मे अन्तर
मिथिलाक "छठि" (छइठ, छैठ, छठी) आ बिहारक "छठ"मे समानता रहितहुँ बड़ असमानता छै :—
(१). मिथिलाक छठि एक बेर ठनलाक बाद प्रायः जिनगी भरि आ पुस्त-दरि-पुस्त चलितहिं रहैत अछि जखनि कि बिहारक छठ मनमर्जी अछि (मोन भेल तऽ एहि बेर कएलहुँ, अगिला बेर नञि आ फेर चारि साल बाद कऽ लेलहुं) ।
(२). मिथिलाक पवनैतिनक जँ कोनहु कारणसँ (अस्वस्थता, प्रसव आदि कारणसँ) उपास वा स्वयं पानिमे ठाढ़ भऽ हाथ उठाएब एक बेरि छूटि गेल तऽ प्रायः ओ उपास वा पानिमे ठाढ़ भऽ हाथ उठाएब दोबारा शुरू नञि होइछ मुदा अर्घ तइयो चलितहिं रहैत अछि, केओ दोसर गोटे हाथ उठा दैत छथिन्ह । बिहारमे एना नञि ।
(३). जन्माशौच, छुतका आदि भेला पर सेहो अर्घ पड़ितहिं टा अछि, भलहि भगिनमानहि केर आङन मे बनओ आ हाथ उठओ ।
(४). मिथिलामे अर्घ (अर्घ्य) केर संख्या घटैत नञि अछि, हरेक साल स्थिर रहैत अछि या बढ़ैत अछि आ एक बेरि बढ़ि गेलाक बाद घटैत नञि अछि । बिहारमे से नञि, मनमर्जी छै ।
(५). मिथिलाक छठिमे सांझुका ओ भोरुका अर्घक सामिग्री (ठकुआ, बुकबा/भुसबा आदि) एक्कहि रहैत अछि, जखनि कि बिहारक छठमे दूनू अर्घक लेल अलग-अलग पकवान बनैत अछि (जनतब देलन्हि - फेसबुक मित्र श्री मिथिलेश कुमार झाजी, कोलकातासँ) । ओना हमरा जनैत मिथिलाक ओ भाग जे पछिला 70-80 वर्षसँ केन्द्रीय मिथिलाक अपेक्षा पटना (मगध) ओ छपरा पट्टीसँ (छपरा, सीवान, गोपालगंजसँ) बेसी सम्पर्कमे रहल ओहि ठाम सेहो बिहारहि जेकाँ साँझुका ओ भोरुका अर्घक लेल अलग-अलग पकवान बनएबाक परम्परा आबि गेल अछि । मिथिलामे भोरूका अर्घमे सांझुक अर्घक अपेक्षा दहीक अतिरिक्त समावेश रहैत अछि ।
(६). देवघरक मैथिल समाजमे छठि नञि मनाओल जाइत अछि (जनतब देलन्हि - फेसबुक मित्र श्री गंगानन्द झाजी, देवघरसँ) ।
मिथिलाक "छठि" (छइठ, छैठ, छठी) आ बिहारक "छठ"मे समानता रहितहुँ बड़ असमानता छै :—
(१). मिथिलाक छठि एक बेर ठनलाक बाद प्रायः जिनगी भरि आ पुस्त-दरि-पुस्त चलितहिं रहैत अछि जखनि कि बिहारक छठ मनमर्जी अछि (मोन भेल तऽ एहि बेर कएलहुँ, अगिला बेर नञि आ फेर चारि साल बाद कऽ लेलहुं) ।
(२). मिथिलाक पवनैतिनक जँ कोनहु कारणसँ (अस्वस्थता, प्रसव आदि कारणसँ) उपास वा स्वयं पानिमे ठाढ़ भऽ हाथ उठाएब एक बेरि छूटि गेल तऽ प्रायः ओ उपास वा पानिमे ठाढ़ भऽ हाथ उठाएब दोबारा शुरू नञि होइछ मुदा अर्घ तइयो चलितहिं रहैत अछि, केओ दोसर गोटे हाथ उठा दैत छथिन्ह । बिहारमे एना नञि ।
(३). जन्माशौच, छुतका आदि भेला पर सेहो अर्घ पड़ितहिं टा अछि, भलहि भगिनमानहि केर आङन मे बनओ आ हाथ उठओ ।
(४). मिथिलामे अर्घ (अर्घ्य) केर संख्या घटैत नञि अछि, हरेक साल स्थिर रहैत अछि या बढ़ैत अछि आ एक बेरि बढ़ि गेलाक बाद घटैत नञि अछि । बिहारमे से नञि, मनमर्जी छै ।
(५). मिथिलाक छठिमे सांझुका ओ भोरुका अर्घक सामिग्री (ठकुआ, बुकबा/भुसबा आदि) एक्कहि रहैत अछि, जखनि कि बिहारक छठमे दूनू अर्घक लेल अलग-अलग पकवान बनैत अछि (जनतब देलन्हि - फेसबुक मित्र श्री मिथिलेश कुमार झाजी, कोलकातासँ) । ओना हमरा जनैत मिथिलाक ओ भाग जे पछिला 70-80 वर्षसँ केन्द्रीय मिथिलाक अपेक्षा पटना (मगध) ओ छपरा पट्टीसँ (छपरा, सीवान, गोपालगंजसँ) बेसी सम्पर्कमे रहल ओहि ठाम सेहो बिहारहि जेकाँ साँझुका ओ भोरुका अर्घक लेल अलग-अलग पकवान बनएबाक परम्परा आबि गेल अछि । मिथिलामे भोरूका अर्घमे सांझुक अर्घक अपेक्षा दहीक अतिरिक्त समावेश रहैत अछि ।
(६). देवघरक मैथिल समाजमे छठि नञि मनाओल जाइत अछि (जनतब देलन्हि - फेसबुक मित्र श्री गंगानन्द झाजी, देवघरसँ) ।
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