बिलाड़ि
(बाल-कविता)
-
बाघक मौसी कहै छी जकरा, तकरहि
नाम “बिलाड़ि” छै ।
एक्कहि कुल केर जीव दूनू छै, बहुतहि छोट बिलाड़ि छै ।।
छोट ओकर कद-काठी
छै तेँ, विचरि रहल निर्बाध छै ।
पैघ बिलाड़ि
जेकाँ ओक्कर नञि, सिकुड़ि रहल साम्राज्य छै ।।
कखनहुँ
म्याँउ-म्याँउ बाजैत अछि, खन गुम्हरैत आबाज छै ।
घऽर-आङ्गन कि बाध-बोन,
सभठाँ मार्यारक राज छै ।।
अपना मिथिलामे प्रशिद्ध बड़, “गोनू झाक बिलाड़ि” छै ।*१
एतबा कीर्त्ति जे कहबी बनि गेल, “गोनू झाक बिलाड़ि छै” ।।
मांसुभक्षी आ चतुर शिकारी, मूसक करैछ
शिकार छै ।
माछक चाट बहुत
छै ओकरा,
दूधक सद्यः काल छै ।।
जतए बिलाड़िक
पहुँच असम्भव, “सीक” एहेन निर्माण छै ।*२
सीक टुटल तँऽ भाग
बिलाड़िक, तेँ ई कहबी विधान छै ।।
घर-आङ्गन जे
भेटैछ हरदम, सएह कहबैछ “बिलाड़ि” छै ।
जंगल-झाड़
बिलाड़ि रहैछ जे, से तँऽ “बन-बिलाड़ि” छै ।।*३
तेनुआ ओ जगुआर जेकाँ ओ,
गाछ चढ़एमे माहिर छै ।
ऊँच भवन ओ गाछ-बिरिछसँ, कूदि जाइछ जग-जाहिर छै ।।*४
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - गोनू झाक
खिस्साक बिलाड़ि ततेक ने प्रशिद्ध भेल कि ओकरा नाम पर कहबीअहि बनि गेल ।
*२ - “सीक” वस्तुतः दूध, दऽही आ माखन आदिकेँ बिलाड़िसँ सुरक्षित रखबाक
एकटा सस्ता लेकिन बहुत नीक उपाए छल ।
*३ - “बिलाड़ि” वस्तुतः मनुक्खहि
केर परिवेशमे रहैत अछि आ जे जंगली परिवेशमे रहैत अछि से “बनबिलाड़ि” कहबैत अछि ।
बनबिलाड़िकेँ “खटाँसु” (उच्चारण - खटाँउस या खटौंस)
अथवा “खटाँस” सेहो कहल जाइत
अछि । मुदा “खटाँसु” या “खटाँस” शब्दक अन्तर्गत “बनबिलाड़िक” अतिरिक्त एकटा आन
जन्तु सेहो अबैत अछि जकरा अंग्रेजीमे “सीवेट” (CEVET) कहल जाइत अछि ।
एकर गुणक आधार पर एकरा मैथिलीमे “गन्हबिलाड़ि” कहि सकैत छी
(हलाँकि मैथिलीमे एकर ई नाँओ प्रचलित नञि अछि) ।
*४ - बिलाड़ि कुल (Family - FELIDAE) केर मात्र ४ टा सदस्य गाछ पर चढ़बामे माहिर होइत अछि । ओ चारू सदस्य अछि -
तेन्दुआ (तेनुआ), जगुआर, बनबिलाड़ि आ स्वयं बिलाड़ि ।
मैथिली
पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 210म अंक (15 सितम्बर 2016) (वर्ष 9, मास 105, अंक 210) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment