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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Friday, 27 November 2015

भूकम्प : एकटा वैज्ञानिक विश्लेषण

भूकम्प : एकटा वैज्ञानिक विश्लेषण


विज्ञान विषयक लेख सभक लेल नित नऽव पारिभाषिक शब्द सभक आवश्यकता पड़ैछ । एहि प्रकारक पारिभाषिक शब्द सभ कोनहु भाषा मे ओकर मातृक मूल भाषा (Parent / Source language) सँ बनाओल जाइछ, यथा अंग्रेजी मे लैटिन सँ  मैथिली मे संस्कृत सँ 



परिचय :-


             भूकम्प - शब्द मिथिलाक लोकक लेल नऽव नञि एहि ठामक बच्चा - बच्चा एहि शब्दसँ परिचित अछि एकर विकराल भेआओन स्वरूपक साक्षी अछि केओ देखने अछि तऽ केओ सुनने अछिकेओ बड़का भुकम्पक अनुभव कएने अछि तऽ केओ छोटकाकककरो मालक क्षति भेल छै तऽ केओ अप्पन लोकक जान गमओने अछि वा केओ स्वयं कालक ग्रास बनबासँ बाँचल अछिकेओ आन प्रदेश वा दूर देशमे एकर समाचार सुनलक तऽ केओ सद्यः एकर आदंक भोगने अछिजे हो, पर मिथिलाक चिर परिचित संगी अछिमिथिलाक निर्माण कालहिसँ मिथिलाक संग अछि मिथिलाक ध्वंश धरि संग रहततेँ एहि दैवी त्रासदीक विषयमे जे किछु वैज्ञानिक तथ्य एखन धरि ज्ञात अछि से संक्षेपमे एहि ठाम प्रस्तुत कऽ रहल छी

पृथिवीक आन्तरिक संरचना :-

           अप्पन पृथिवी वा धरतीमाए वास्तवमे सौरमण्डल वा सौर परिवारक एक गोट सदस्य छथि । ई सूर्य नामक तरेगन (तरेगन=एक वचन; तारागण=बहु वचन) केर चारू कात एक निश्चित पथ पर चक्कर लगबैछ अर्थात सूर्यक परिक्रमा करैछ, तेँ ग्रह (PLANET) कहबैछ । एकर बाहरी सतह पर जे किछु भूकम्पीय गतिविधि देखबामे अबैए (अबैत अछि) से वास्तवमे एकर आन्तरिक हलचलक परिणाम थिक । ताहि कारणेँ भूकम्पक विषयमे जानबाक लेल पृथिवीक आन्तरिक संरचनाक जानकारी होयब आवश्यक अछि ।  पृथिवीक आन्तरिक संरचनाकेँ जानब शुरुएसँ (शुरुअहिसँ) मनुक्खक लेल एक टा पैघ जिज्ञासाक विषय रहल अछि । पर एकर संरचनाक विषयमे एखनहु बहुत कम बात बूझल अछि । पृथिवीक संरचनाकेँ बुझएबाक लेल बहुत रास प्रतिदर्श या मॉडेल (MODEL)  देल गेल अछि पर कोनहु प्रतिदर्श पुर्ण रूपेँ प्रमाणित वा दोषरहित नञि अछि । सभ प्रतिदर्शक विवेचना एहि लेख केर विषय बस्तु नञि अछि । अद्यावधि उपलब्ध विभिन्न प्रायोगिक साक्ष्य आ भूकम्पीय तरंग सभक आधार पर पृथिवीक आन्तरिक संरचनाक बारेमे जे नवीनतम मान्यता अछि तकर उल्लेख संक्षेप मे एहि ठाम कएल जा रहल अछि ।



           नवीनतम मान्यताक अनुसार बाहरसँ भीतर दिशि पृथिवी मुख्य रूपसँ तीन भाग मे विभाजित अछि - 1. पपड़ी या भू-पर्पटी 2. भू-मध्य या मैण्टल 3. भू-केन्द्र या भूक्रोड या कोरसभसँ उपरुका भाग केँ भूपर्पटी या पपड़ी (EARTH CRUST / CRUST) कहल जाइत अछि । ई भाग हमरा सभकेँ देखाइ दैत अछि आ एही भाग पर सातो महाद्वीप वा महादेश तथा पाँचो महासागर स्थित अछि । एहि प्रकारेँ ई दू उप-विभागमे विभाजित अछि - स्थल मण्डल (LITHOSPHERE) जल मण्डल  (HYDROSPHERE) । स्थल मण्डलक ठोस भागकेँ महाद्वीपीय तल (सतह) कहल जाइत अछि जे प्रायः विषम संरचनाबला अछि । एकर ऊपरुका भाग प्रायः अवसादी आ आग्नेय पाथर  (SEDIMENTORY / IGNEOUS ROCKS) सभसँ बनल अछि जखनि कि निचलुका भाग आग्नेय ओ कायान्तरित पाथरसभसँ (IGNEOUS & METAMORPHIC ROCS) निर्मित अछि । जलमण्डलक ठोस पेनी अर्थात सागरीय तलक संरचना सभठाँ प्रायः एकरंगाह अछि आ भारी आग्नेय पाथरसभसँ बनल अछि । सागरक पेनी यानि कि सागरतल पर एकर मोटाई ६ सँ ‍10 किलोमीटर धरि आ महाद्वीपीय भाग मे 25 सँ 50 किलोमीटर तक होइछ । भू-पर्पटी पर स्थित कोनहु संरचनाक विभिन्न परिप्रेक्ष्यमे अध्ययन भूगोल शास्त्र (GEOGRAPHY) केर अन्तर्गत अबैत अछि जखनि कि भूपर्पटी सहित पृथिवीक संरचनात्मक अध्ययन मूल रूपसँ भू-विज्ञान / भूगर्भ-विज्ञान (GEOLOGY) आ आंशिक रूपसँ भौतिक भूगोल (PHYSICAL GEOGRAPHY)  केर विषय थिक । आन बहुत रास विज्ञानक अध्ययन क्षेत्र एहि विज्ञान वा शास्त्रसभक अध्ययन क्षेत्रसँ परस्पर सम्बद्ध अछि ।


           पृथिवीक सभसँ भीतरुका भागकेँ भूकेन्द्र वा भूक्रोड (CORE / EARTH’S CORE) कहल जाइत अछि । ई पुनः 2 उपविभागमे विभाजित अछि – अन्तः भूकेन्द्र (INNER CORE) बाह्य भूकेन्द्र (OUTER CORE) । सम्पुर्ण भूकेन्द्रक मोटाई पृथिवीक केन्द्रविन्दु सँ 3400 कि॰मि॰ धरि मानल गेल अछि ।  भूकेन्द्र लोहा, निकेल आ सिलिकेट मिश्रित भारी धातुपिण्डसभसँ बनल अछि । एकर आयतन सम्पुर्ण पृथिवीक आयतनक मात्र 16 प्रतिशत पर भार 32 प्रतिशत अछि, अर्थात् भूकेन्द्रक घनत्त्व बहुत बेसी अछि । बाह्य भूकेन्द्र द्रव अथवा ओकर समकक्ष गुण बला पदार्थसभसँ बनल अछि । अन्तः भूकेन्द्रक संहति ठोस स्वरूपक बूझि पड़ैत अछि । अन्तः भूकेन्द्र सेहो द्रव स्वरूपमे होयबाक चाहैत छल पर उपरुका पड़त सभक कारण उत्पन्न भेल भहुत बेसी दाबन आ बहुत बेसी घनत्त्वक कारण ई ठोस स्वरूपमे बुझना जाइत अछि । अन्तः भूकेन्द्रक घनत्त्व 11 सँ 13.6 धरि अछि ।



              भूपर्पटी आ भूकेन्द्रक बीच करीब 3000 कि॰मि॰ मोट भागकेँ भूमध्य वा मैण्टल (MANTLE) कहल जाइत छै । ई भाग पुनः 3 उपविभाग मे विभाजित अछि । बाह्य भूकेन्द्र सँ सटल भाग अधोभूमध्य या अधोमैण्टल (LOWER MANTLE) कहबैत अछि जखनि कि भूपर्पटीसँ सटल भाग ऊर्ध्व भूमध्य वा ऊर्ध्व मैण्टल (UPPER MANTLE) कहबैत अछि । मैण्टलक एहि दुनु क्षेत्रक बीच एकटा पातर सनि संक्रमण क्षेत्र (TRANSITION ZONE / AREA) पाओल जाइत अछि । संक्रमण क्षेत्रक मोटाई करीब 300 कि॰मि॰ अछि पर एकरा बारे मे आन विशेष जानकारी एखन धरि नञि प्राप्त भऽ सकल अछि । सम्पुर्ण मैण्टल क्षेत्रमे सीलीकेटक अधिकता पाओल जाइत अछि संगहि लोहा आ मैग्नेशियम सेहो रहैछ । ऊर्ध्व मैण्टलक संहति अनियमित स्वरूपक रहैछ जखनि कि अधोमैण्टलक संहति द्रवस्वरूपक । एहि तरहेँ धरतीक त्रिज्या या अर्धव्यास (RADIUS) लगभग 6400 कि॰मि॰ आ व्यास (DIAMETER)  प्रायः 12800 कि॰मि॰ अछि ।

विवर्तन छज्जी आ वेगनरक महाद्विपीय प्रवाह सिद्धान्त :-

         पृथिवीक ऊपरुका भाग या पपड़ी या भूपर्पटी एक गोट अखण्ड संरचना नञि अछि । ई कएक-टा छोट-पैघ अलग-अलग टुकड़ीसभक मिलबासँ बनल अछि । एहि टुकड़ीसभकेँ छज्जी या विवर्तन छज्जी या टेक्टोनिक प्लेट (PLATES /TECTONIC PLATES) कहल जाइत अछि । कोनो छज्जी अगबे महाद्वीपीय तलसँ अथवा अगबे सागरीय तलसँ वा दुहुक किछु-किछु भागक मेलसँ बनल भऽ सकैत अछि । ई विवर्तन छज्जीसभ स्थिर नञि अछि । एकर नीचाँमे द्रवरूपी मैण्टल अछि जाहि पर ई विवर्तन छज्जीसभ निश्चेष्ट उपलाइत (FLOATING) रहैत अछि । पृथिवीक विभिन्न भूगर्भीय गतिविधिसभ तथा आन सतही शक्तिसभ एहि उपलाइत छज्जीसभकेँ भिन्न-भिन्न दिशामे अलग-अलग गति प्रदान करैत अछि । एहि प्रकारेँ ई छज्जीसभ भिन्न-भिन्न दिशामे अलग-अलग वेगसँ सतत प्रवाहमान अछि । विवर्तन छज्जीक प्रवाह सम्बन्धी ई मत सभसँ पहिने 1858 ई॰ मे एण्टोनियो स्नाइडर - पेल्लेग्रिनी (ANTONIO SNIDER-PELLEGRINI) नामक फ्रांसीसी विद्वान द्वारा देल गेल छल, पर ओहि पर लोकक विशेष ध्यान नञि गेल । अल्फ्रेड वेगनर (ALFRED WAGENER) नामक विद्वान एहि सिद्धांतकेँ सर्वप्रथम विभिन्न तत्कालीन उपलब्ध साक्ष्यक संग व्यवस्थित रूपसँ 1912 ई॰ मे जर्मन भाषामे छपबओलन्हि, जकर अंग्रेजी अनुवाद 1924 ई॰ मे प्रकाशित भेल । तहियासँ एहि सिद्धांतकेँ वेगनरक महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त (CONTINENTAL DRIFT THEORY OF WAGENER) कहल जाइत अछि ।




            एहि गतिशीलताक कारण किछु छज्जीसभ एक-दोसराक नजदीक अबैत अछि आ एहि तरहक छज्जीसभक किनारीकेँ अभिसारी या विनाशात्मक वा ध्वंशात्मक किनारी (CONVERGENT / DESTRUCTIVE MARGIN) कहल जाइत अछि आ प्रायः उत्थान भ्रंश (THRUST FAULT) केर निर्माण करैत अछि । किछु आन छज्जीसभ परस्पर दूर भागि रहल अछि आ एहि तरहक किनारीकेँ अपसारी वा रचनात्मक किनारी (DIVERGENT / CONSTRUCTIVE MARGIN) कहल जाइत अछि जे कि प्रायः साधारण भ्रंश (NORMAL FAULT) केर निर्माण करैत अछि । किछु आन छज्जीसभ नञि तँऽ परस्पर नजदीके अबैत अछि आ नहिञे दूर जाइत अछि । एहि तरहक छज्जी सभक किनारी क्षैतिज रूपसँ एक-दोसराक पार्श्व वा बगलसँ छहलैत निकलि जाइत अछि । एहि तरहक किनारीसभकेँ संरक्षी किनारी (CONSERVATIVE MARGIN) कहल जाइत अछि आ ओ प्रायः रूपान्तर भ्रंश (TRANSFORM FAULT) केर निर्माण करैत अछि ।





              जे छज्जीसभ परस्पर नजदीक आबि रहल अछि तकरसभक किनारी या कोड़ी एक-दोसरासँ टकराइत रहैत अछि आ एक-दोसरा पर जोरगर दबाव आरोपित करैत अछि । ई टकराहटि एतेक शक्तिशाली होइत अछि कि ओहि ठामक जमीनक पुर्ण स्वरूपहि बदलि जाइत अछि । भारतीय विवर्तन छज्जी आ यूरेशीय विवर्तन छज्जीक बीच होमए बला एहने टकराहटि केर कारण हिमालय पहाड़क निर्माण भेल अछि । वास्तवमे हिमालय पर्वत श्रृंखला एक-टा उत्थान भ्रंश केर उदाहरण अछि । एहि तरहक टकराहटि केर प्रक्रियाकेँ भूवैज्ञानिकलोकनि भू-विवर्तनिक प्रक्रिया  (PLATE TECTONIC ACTIVITIES) कहैत छथि ।





भूकम्पक कारण ओ प्रकार :-

           वास्तवमे अभिसारी या विनाशात्मक या ध्वंशात्मक किनारीसभक एहि तरहक टकराहटि केर प्रक्रिया विश्वमे प्राकृतिक कारणसँ आबैबला भूकम्पक प्रमुख कारण अछि । एहि कारणसँ आयल भूकम्पकेँ विवर्तनिक भूकम्प (TECTONIC EARTHQUAKES) कहल जाइत अछि । एहि प्रकारक भूकम्पक मूल (जड़ि / उद्गम स्थल) धरतीक भीतर धरातलसँ प्रायः 5 सँ 20 कि॰मि॰ नीचाँ रहैत अछि; आ एकरा द्वारा प्रभावित क्षेत्र बहुत विस्तृत रहैत अछि । अपना मिथिलामे आओर तेँ नेपाल आ उत्तरबरिया भारतमे (सम्पुर्ण हिमालयी क्षेत्रमे) प्रायः इएह तरहक भूकम्प अबैत अछि । अपना ओहि ठाँ (मिथिला क्षेत्रमे) एखन धरि जतेक भूकम्प आयल अछि सभटा इएह श्रेणीमे अबैत अछि ।

      जपान आदि देशसभमे ज्वालामुखी पहाड़ सभक प्रचूरता अछि । कोनो ज्वालामुखी विस्फोटक समय प्रायः भूकम्प अवश्य अबैत अछि । ज्वालामुखीय उद्गारक समय जखन उच्च दाबबला पानिक भाप आओर गैससभ बाहर अएबाक प्रयास करैत अछि तँऽ धरतीक सतह पर कम्पन होइत अछि । ओना एहि क्षेत्रसभमे बिना ज्वालामुखीय विस्फोट केर सेहो भूकम्प अबैत रहैत अछि । सामान्यतः एहि तरहक भूकम्प केर प्रभाव 200 सँ 300 वर्ग कि॰मि॰ क्षेत्र तक रहैत अछि । एहि प्रकारक सभ भूकम्पकेँ ज्वालामुखीय भूकम्प (VOLCANIC EARTHQUAKES) कहल जाइत अछि । अपना क्षेत्रमे एहि तरहक भूकम्प नञि अबैत अछि । एहि सन्दर्भमे एक बात ईहो ध्यान देबा जोग अछि कि अधिकांश ज्वालामुखी पहाड़ कोनहु ने कोनहु विवर्तन छज्जीसभक टकराओ-स्थल पर अवस्थित अछि । तेँ ज्वालामुखीय सक्रियता सेहो किछु सीमा धरि विवर्तन छज्जीक गतिशीलता पर निर्भर अछि ।

      किछु भूकम्प केर उद्गम-मूल पृथिवीक भीतर बहुत अधिक गँहीर स्थान पर रहैछ – धरातलसँ प्रायः 300 सँ 700 कि॰मि॰ गँहीर । एहि तरहक भूकम्पक कारणक बारेमे एखन धरि किछु बेसी नञि बूझल भेल अछि । स्पेनक सियरानेवादा मे आयल भूकम्पक उत्पत्ति स्थान धरातलसँ 630 कि॰मि॰ गँहीर छल । एहि तरहक भूकम्पकेँ पतालीय भूकम्प (PLUTONIC EARTHQUAKES) कहल जाइत अछि ।

     एकर अतिरिक्त भूकम्पक आन बहुत रास प्राकृतिक कारण भऽ सकैत अछि, जेना कि – भूसन्तुलन, भूस्खलन, हिमस्खलन आदि । पर अपना क्षेत्रमे ई सभ कारण विशेष महत्त्व नञि रखैत अछि । परमाणु विस्फोट, खदान क्षेत्र मे कयल गेल गँहीर खोदाई आदि मानवजनित कारणसभसँ सेहो भूकम्प आबि सकैत अछि ।

भूकम्पक केन्द्र ओ अधिकेन्द्र :-

        भूगर्भमे जाहि केन्द्रसँ चट्टानसभमे होमएबला विशेष परिवर्तनक क्रियासभसँ हलचलक प्रारम्भ होइछ ओकरा भूकम्प मूल या भूकम्प केन्द्र (FOCUS / CENTRE) कहल जाइछ । एहि केन्द्र सँ लम्बवत, धरातलक (धरतीक उपरुका सतह पर)  जाहि विन्दु पर सभसँ पहिने भूकम्पक धक्काक अनुभव होइछ ओहि स्थानकेँ भूकम्पक अधिकेन्द्र (EPICENTRE) कहल जाइछ । जन सामान्यक भाषामे वा बहुधा मिडियामे अधिकेन्द्रहिकेँ भूकम्पक केन्द्र वा मूल कहि देल जाइत अछि । यथा ‍मिडियामे वा सामान्य लोकक भाषामे कहल गेल जे 25 अप्रील 2015 कऽ आयल भूकम्पक केन्द्र लुमजुङ्गमे छल । भूकम्पविज्ञान (SEISMOLOGY) केर भाषामे एकर मतलब भेल जे 25 अप्रील 2015 कऽ आयल भूकम्पक अधिकेन्द्र लुमजुङ्गमे छल पर भूकम्पक केन्द्र वा मूल एहि ठामक धरतीक सतहसँ 15 कि॰मि॰ नीचाँ छल । एहि प्रकारक भ्रमसँ बचबाक लेल भूकम्प मूल या भूकम्प केन्द्र (FOCUS / CENTRE) हेतु आइ-काल्हि एकटा नऽव शब्द अधोकेन्द्र (HYPOCENTRE) केर प्रयोग कएल जा रहल अछि । अधिकेन्द्र धरतीक सतह पर आ अधोकेन्द्रधरतीक सतहसँ नीचाँ होइत अछि । अधोकेन्द्रसँ अधिकेन्द्र धरिक लम्बवत दूरीकेँ (सभसँ कम दूरीकेँ) भूकम्प मूलक या भूकम्प केन्द्रक गहराई (FOCAL DEPTH OR DEPTH OF FOCUS / CENTRE / HYPOCENTRE) कहल जाइत अछि ।





       भूकम्प मूलसँ जे ऊर्जा मुक्त होइत अछि से भूकम्पीय तरंग (SEISMIC WAVES) केर रूपमे चारू दिशामे पसरैत अछि । ओ अभिकेन्द्रक चारू कात धरतीक सतह पर वृत्ताकार (गोलाकार) घेरा (घेरेबा) बनबैछ । ई घेरासभ भूकम्पसँ होमएबला हानि केर अनुमान लगएबा मे सहायक होइत अछि । भूकम्पसँ सभसँ बेसी नोकसान अधिकेन्द्रसँ (वृत्तक केन्द्रसँ) हटि कऽ बनए बला भीतरुका वृत्तसभक क्षेत्रसभमे होइत अछि ।





भूकम्पक प्रकार :-

        कारणक अनुसारेँ भूकम्पक कएकटा प्रकार अछि जाहिमेसँ किछु प्रमुख प्रकारक चर्चा ऊपर कएल जा चुकल अछि । भूकम्पक केन्द्र (मूल वा उद्गम स्थान) अधिकेन्द्रसँ कतेक दूर (गँहीर) स्थित अछि ताहि आधार पर भूकम्पक तीन प्रकार अछि – उत्थर भूकम्प, मँझलुका भूकम्प आ पताली भूकम्प । जाहि भूकम्पक केन्द्र धरातलसँ 70 कि॰मि॰ धरिक गहराई पर रहैत अछि ओ उत्थर भूकम्प (SHALLOW EARTHQUAKES) कहल जाइछ । एहि तरहक भूकम्पमे सबसँ बेसी क्षति अधिकेन्द्रसँ किछु किलोमीटरक परीधि मे होइत अछि । एहि प्रकारक भूकम्प विवर्तनिक या आन बहुतो कारणसँ होइत अछि । 25 अप्रील 2015 ई॰ आ 18 सितम्बर 2011 ई॰ कऽ आयल भूकम्प (केन्द्र – क्रमशः 15 कि॰मि॰ आ 19.7 कि॰मि॰ गँहीर) इएह श्रेणीक भूकम्प छल ।‍ 15 जनबरी ‍1934 ई॰ केर भूकम्प (केन्द्र – 33 कि॰मि॰ गँहीर) सेहो एऽही श्रेणीमे अबैत अछि । धरातलसँ 70 सँ 300 कि॰मि॰ धरिक गहराई पर जाहि भूकम्पक केन्द्र वा मूल रहैत अछि से  मँझलुका गँहीर भूकम्प (EARTHQUAKES OF MEDIUM DEPTH) कहबैत अछि । एहेन भूकम्प प्रायः विवर्तनिक भूकम्प होइछ । विवर्तनिक भूकम्पमे भूकम्पक अधिकेन्द्रसँ बेसी दूरक क्षेत्रसभक कमजोर शैल/चट्टानबला जगहमे अधिक नोकशान होइत अछि । अधिकेन्द्रसँ 300 सँ 700 कि॰मि॰ गँहीर केन्द्र या मूल बला भूकम्प पतालीय भूकम्प (PLUTONIC EARTHQUAKES) कहबैत अछि । एहि तरहक भूकम्पक उत्पत्तिक कारण एखन धरि अज्ञात अछि । एकर अतिरिक्त भू-पर्पटी पर स्थानक आधार पर भूकम्प दू प्रकारक होइत अछि – स्थलीय भूकम्प  आ सामुद्रिक भूकम्प

भूकम्पीय तरंग :-

     भूकम्पक मूल वा केन्द्रसँ चारू कात चलए बला विभिन्न प्रकारक तरंगसभ वा कम्पनक प्रकारसभकेँ भूकम्पीय तरंग कहल जाइछ । एहि तरंगसभक गति, प्रभाओ आ निरन्तरता एक समान नञि रहैत अछि । ई तरंगसभ रुकि-रुकि कऽ आ अनेक प्रकारसँ आगाँ बढ़ैछ । शैलखण्ड वा चट्टानसभक स्वरूप आ घनत्वक प्रभाओ सेहो एहि तरंग सभ पर पड़ैछ । भूकम्पीय तरंग मुख्यतः दू प्रकारक होइछ – कायिक तरंग (BODY WAVES) धरातलीय या सतही तरंग (SURFACE WAVES)

      कायिक तरंग (BODY WAVES) वास्तवमे केन्द्रसँ (अधोकेन्द्रसँ) चारू कात धरतीक अन्दरमे आ धरातल दिशि पसरैत अछि । धरतीक कायाक (शरीरक) भीतर गमण करबाक कारण एहि तरंगसभकेँ कायिक तरंग कहल जाइत अछि । धरातल पर आबि ई तरंगसभ भूकम्पक अधिकेन्द्रसँ धरातल (धरतीक उपरुका सतह) पर चारूकात पसरैत प्रतीत होइत अछि । ई पुनः 2 प्रकारक अछि - प्राथमिक तरंग आ द्वितीयक तरंग





·               प्राथमिक तरंग (PRIMARY WAVES) एक प्रकारक कायिक तरंग (BODY WAVES) अछि आ सभसँ बेसी गतिसँ गमण करैछ । सभसँ तेज गतिसँ गमण करबाक कारण ई तरंग कोनहु भूकम्पनापी केन्द्र तक सभसँ पहिने पहुँचैत अछि आ भूकम्पलेखी पर सभसँ पहिने अंकित होइत अछि । संक्षेपमे एकरा “P” तरंग सेहो कहल जाइत अछि । एकरा प्रधान तरंग (PRINCIPAL WAVES) या संक्षोभ/आघात तरंग (SHOCK WAVES) या दबाव तरंग (COMPRESSION/PRESSURE WAVES) सेहो कहल जाइत अछि ।  ई तरंगसभ ठोस, द्रव आ गैस सभ तरहक माध्यममे (पदार्थमे) गतिशील रहैत अछि । एकर गति 8 सँ 14 कि॰मि॰ प्रति सेकेण्ड  धरि भऽ सकैत अछि । ई लहरिसभ (लहैरसभ) आगाँ-पाछाँ धक्का दैत समान गतिएँ बढ़ैत अछि । ई तरंगसभ ध्वनि-तरंग जेकाँ माध्यमक कणसभमे संकोच/सम्पीड़न (COMPRESSIONS) आयाम/प्रसार (DILATIONS) उत्पन्न करैत अछि । एहि प्रकारेँ ई माध्यमक आयतनमे परिवर्तन करैत आगाँ बढ़ैत अछि । माध्यमक कणसभक गति केर दिशा आ तरंगक गति केर दिशा समान होइत अछि । मनुक्खक कान एहि तरंगकेँ नञि सुनि सकैत अछि पर किछु जानवरसभ एकरा सुनि सकैत अछि । जेनाकि कुकुर भूकम्पक झटकासँ किछु पहिने पागल जेकाँ भूकए लगैत अछि । एकर कारण अछि कि कुकुर प्राथमिक तरंगकेँ सुनि सकैत अछि जे कि आन सभ तरंगसँ पहिने पहुँचैत अछि । झटका उत्पन्न करए बला सतही तरंगसभ बादमे पहुँचैत अछि ।  मात्र इएह तरंगसभ पृथिवीक अन्तः-केन्द्रमे (अन्तः-कोरमे) प्रवेश कऽ पबैत अछि; ई बात अलग जे एहि ठाम एहि तरंगसभक गति किछु कम भऽ जाइत अछि ।

·        द्वितीयक तरंग (SECONDARY WAVES) सेहो एक प्रकारक कायिक तरंग (BODY WAVES) अछि ।  कोनहु भूकम्पमापी केन्द्र पर पहुँचए बला ई दोसर भूकम्पीय तरंग अछि तेँ एकरा द्वितीयक तरंग कहल जाइत अछि । संक्षेपमे एकरा “S” तरंग सेहो कहल जाइत अछि । एहि तरंग द्वारा माध्यमक कण सभक गति तरंगक गतिक दिशासँ लम्बवत ऊपर आ नीचाँ (उदग्र तल) अथवा पार्श्वमे (क्षैतिज तल) होइत अछि, तेँ एकरा अनुप्रस्थ तरंग (TRANSVERSE WAVES) सेहो कहल जाइत अछि । एकर गति 3 सँ 7 कि॰मि॰ प्रति सेकेण्ड होइत अछि । तेज भूकम्पीय झटकामे एहि तरंगक कारण धरातल फाटि जाइत अछि आ सतह पर दरारि (दराइर) उत्पन्न भऽ जाइछ । एहि कारणेँ एकरा अपरूपक तरंग (SHEAR WAVES) सेहो कहल जाइत अछि । वास्तवमे भूकम्पक अधिकेन्द्रक आस-पास सभसँ बेशी विनाश इएह तरंग करैछ । ई तरंग माध्यमक आयतनमे परिवर्तन नञि आनैत अछि अपितु अपरूपक बल (SHEARING STRESS) आरोपित करैत अछि । अपरूपक बल  मात्र ठोस पदार्थमे अपरूपण उत्पन्न करैछ – द्रव आ गैसीय पदार्थमे नञि । तेँ ई तरंग द्रव आ गैसमे गमण नञि कऽ पबैत अछि । एहि तरंगक इएह गुणक अध्ययनक आधार पर ई कहल जाइत अछि कि बाह्य-भूकेन्द्र ठोस नञि अपितु द्रव वा द्रवसदृश अछि ।




      धरातलीय या सतही तरंग (SURFACE WAVES) केर उत्पत्ति कायिक तरंग सभक धरातलीय आ अधो-धरातलीय भौगोलिक संरचनासभसँ प्रतिक्रियाक परिणामस्वरूप होइत अछि । ई सभ तरंग भूकम्पक अधिकेन्द्रसँ धरातल (धरतीक उपरुका सतह) पर चारूकात पसरैत प्रतीत होइत अछि । सतही तरंगसभक सतही तरंगक गति 3 सँ 5 कि॰मि॰ प्रति सेकेण्ड रहैछ । सतह पर गमण करबाक कारण अन्य तरंगक अपेक्षा एहि तरंगसभकेँ बेसी पैघ रस्ता तय करए पड़ैछ, तेँ एकरा नम्मा/नाम/पैघ दूरी बला तरंग (LONG DISTANCE WAVES) सेहो कहल जाइछ । ई तरंगसभ धरतीक उपरुका सतह पर गमण करैछ आ धरतीक भीतर किछुए गहराई पर क्रमशः क्षीण होइत नष्ट भऽ जाइत अछि ठीक ओहिना जेना कि पानिक सतह परक हिलकोर वा तरंग । तेँ एकर विनाशकारी प्रभाव सेहो धरातलक संरचनासभ धरि सीमित रहैछ, धरतीक भीतर नञि ।  सतही वा धरातलीय तरंगसभक आवृत्ति कायिक तरंगसभक तुलनामे कम रहैत अछि जखनि कि तरंगदैर्घ्य अपेक्षाकृत बेशी ।




·               रेले तरंग (RAYLEIGH WAVES) एक प्रकारक धरातलीय या सतही तरंग अछि । एहि तरंगक परिकल्पना सभसँ पहिने लॉर्ड रेले (LORD RAYLEIGH) द्वारा देल गेल छल तेँ हुनकहि नाँव पर नामकरण भेल । ई तरंग समुद्रक पानिमे उठए बला जुआरिक (जुआइरक) लहरि (लहैर) सदृश होइछ । समुद्री लहरि जेकाँ धरातलीय कणसभकेँ गोल-गोल घुमएबाक कारणेँ एहि तरंगसभकेँ सतही ज्वारि (जुआइर) / ग्राउण्ड रॉल (GROUND ROLL) सेहो कहल जाइत अछि । एहिमे माध्यमक कण केर गति अतिवलयाकार पथ (ELLIPTICAL PATH) पर होइछ । जँ तरंगक गति केर दिशा बायाँसँ दहिना अछि तँऽ माध्यमक कण अप्पन पथ पर घऽड़ीक सुई केर उनटा दिशामे (COUNTERCLOCKWISE) गति करैछ आ तहिना विपर्यय (Vise-e-versa) सेहो । एहि तरंगक गति भू-पर्पटीक संरचना-वैभिन्यक अनुसारेँ ‍1 सँ 5 कि॰मि॰ प्रति सेकेण्ड धरि भऽ सकैत अछि । ई तरंग पोखरि, खत्ता आदि स्थिर जल भण्डारकेँ सेहो प्रभावित करैछ आ जलीय पारिस्थितिक तण्त्रकेँ नोकशान पहुँचबैछ ।

·        लव तरंग (LOVE WAVES) सेहो एक प्रकारक धरातलीय या सतही तरंग अछि । एहि तरंगक बारेमे सभसँ पहिने 1911 ई॰मे ए॰ ई॰ एच॰ लव (A.E.H. LOVE) नामक एक गोट अंग्रेज गणितज्ञ गणितीय आँकलन प्रस्तुत कएलन्हि, तेँ हुनकहि आदरमे एहि प्रकारक तरंगकेँ ई नाँव देल गेल एकर उत्पत्ति द्वितीयक तरंग द्वारा धरातलीय आ अधो-धरातलीय भौगोलिक संरचनासभसँ प्रतिक्रियाक फलस्वरूप होइत अछि । द्वितीयक तरंग जेकाँ ईहो अनुप्रस्थ तरंग अछि कारण एकरा द्वारा माध्यमक कण केर गति तरंगक गति सँ लम्बवत दिशा मे होइत अछि । पर थोड़ेक अन्तर अछि । द्वितीयक तरंग द्वारा कण केर गति उदग्र तल (VERTICAL PLANE) पर तरंगक गतिसँ लम्बवत छल जखनि कि लव तरंग द्वारा कणक गति क्षैतिज तल (HORIZONTAL PLANE) पर तरंगक गति सँ लम्बवत अछि । एहि तरंगक गति भू-पर्पटीक संरचना-वैभिन्यक अनुसारेँ 2 सँ 6 कि॰मि॰ प्रति सेकेण्ड धरि भऽ सकैत अछि । लव-तरंग हरेक भूकम्पलेखीसँ नञि रेकॉर्ड कएल जा सकैत अछि । जाहि भूकम्पलेखीमे धरतीक क्षैतिज कम्पनकेँ नपबाक क्षमता हो मात्र ताहि भूकम्पलेखी द्वारा ई रेकॉर्ड कएल जा सकैत अछि । एहि  तरंगक आयाम (AMPLITUDE) शेष तीनू तरंगसभसँ पैघ होइत अछि । लव तरंग द्वारा धरातलक कणसभक ई क्षैतिज कम्पन कोनो स्थापत्य (भवन आदि) के नेँओकेँ (FOUNDATIONS) विशेष रूपसँ क्षति पहुँचबैत अछि । ई तरंग पानि वा आन द्रव पदार्थमे गमण नञि करैत अछि । लव-तरंग पोखरि, खत्ता वा आन स्थिर जलराशिसभ पर कातसँ एकटा बल आरोपित कए ओकरा तरंगित कऽ सकैत अछि; बाँकी किछु विशेष नञि ।  

भूकम्पक अकार आ तीव्रता तथा ओकर नापी :-

      भूकम्पक अध्ययन विज्ञानक जाहि शाखाक अन्तर्गत कएल जाइत अछि ओहि शाखाकेँ भूकम्प-विज्ञान या सिस्मोलॉजी या साइस्मोलॉजी (SEISMOLOGY) कहल जाइत अछि । भूकम्पक अध्ययन विभिन्न भूकम्पीय तरंगक वैज्ञानिक विश्लेषणसँ कएल जाइत अछि आ जाहि यण्त्रसँ एहि भूकम्पीय तरंगसभकेँ अंकित वा अभिलेखित कएल जाइत अछि तकरा भूकम्पलेखी या सिस्मोग्राफ (SEISMOGRAPH) कहल जाइत अछि । भूकम्पलेखी द्वारा प्राप्त अभिलेखकेँ भूकम्पाभिलेख या सिस्मोग्राम (SEISMOGRAM) कहल जाइछ । आइ - काल्हि भूकम्पलेखी या सिस्मोग्राफ केर बदलामे भूकम्पनापी या सिस्मोमीटर (SEISMOMETER) शब्द व्यवहृत भऽ रहल अछि । सामान्य अर्थमे दुहु पर्यावाची अछि पर सुक्ष्मरूपेण भिन्नता अछि । भूकम्पलेखी वा  सिस्मोग्राफ  (SEISMOGRAPH) प्रायः पुरना यण्त्रसभक लेल प्रयुक्त होइत अछि जाहिमे भूकम्पीय तरंगक अभिलेखन ओ नापी दुहु संगहि - संग होइत छल । नवका यण्त्रसभक लेल प्रायः भूकम्पनापी या सिस्मोमीटर (SEISMOMETER) शब्द प्रयुक्त होइत अछि, जे धरतीक कम्पनक अभिलेखन ओ नापी दुहु पृथक - पृथक करैत अछि । भूकम्पदर्शी या सिस्मोस्कोप (SEISMOSCOPE) ओ यण्त्र थिक जे धरतीक कम्पनक अभिलेखन सतत रूपमे लगातार नञि करैत अछि पर ई सूचना दैत अछि कि भूकम्प भेल छल आ भूकम्पक अकार केर बारेमे एकटा अपरिष्कृत (मोटा-मोटी) जानकारी दैत अछि । भूकम्पीय तरंगक वा धरतीक कम्पनक अभिलेखन ओ नापी कएनिहार भूकम्प-विज्ञानक ई उपशाखा भूकम्पमिति या सिस्मोमेट्री (SEISMOMETRY) कहबैछ ।





    भूकम्पक भयावहता नपबाक लेल विभिन्न तरहक नापनी/नप्पा/स्केल (SCALE) केर प्रयोग कयल जाइत अछि । एहि लेल दू-टा मुख्य स्केल केर  प्रयोग भूकम्पविज्ञानी लोकनि करैत छथि । पहिल अछि अकार या परिमाण नापनी (MAGNITUDE SCALE) आ दोसर तीव्रता नापनी (INTENSITY SCALE)  सामान्य जनकेँ ई दुहु नापनी एकरँगाहे बुझाइत अछि आ तेँ भ्रम उत्पन्न करैछ । देशी मीडिया पर तँ परिमाण नापनीएकेँ तीव्रता नापनी कहि देल जाइत अछि । जेना कि रिक्टर नापनी वास्तवमे परिमाण नापनी अछि परञ्च टेलीविजन चैनल सभ पर बहुधा एकरा तीव्रता नापनी कहि देल जाइत अछि । कोनो भूकम्पक वास्तविक शक्ति वा ओहि भूकम्पसँ उत्पन्न कुल वास्तविक ऊर्जा जाहि युक्तिसँ नापल जाइत अछि तकरा अकार या परिमाण नापनी (MAGNITUDE SCALE) कहल जाइत अछि जखनि कि ओएह भूकम्प द्वारा धरातलक कोनो विन्दु पर (स्थान पर) उत्पन्न कम्पनकेँ नपबाक युक्ति तीव्रता नापनी (INTENSITY SCALE) कहबैछ ।

    अकार या परिमाण प्रायः हिन्दु-अरबी अंक पद्धतिमे (1,2,3,4…… वा ‍१,२,३,४……)  तीव्रता प्रायः रोमण अंक पद्धतिमे (I,II,III,IV…….) लिखल जाइत अछि । आदर्श रूपेण कोनो एक गोट भूकम्पक परिमाणक मान मात्र एक-टा होइत अछि जखनि कि तीव्रताक मान बहुत रास भऽ सकैत अछि । एकर कारण अछि जे भूकम्पक तीव्रता बहुत रास कारणसभ पर निर्भर करैत अछि जेना कि अधिकेन्द्र सँ ओहि स्थानक दूरी, ओहि स्थानक भू-पर्पटीक शैल पड़तक संरचना ओ संघटन आदि । तेँ भूकम्पक तीव्रता हर स्थान पर अलग अलग भऽ सकैत अछि पर परिमाण एक्कहि टा रहैछ ।

      कतेको बेर अलग अलग भूकम्पनापी केन्द्र/संस्था द्वारा बताओल गेल मानमे थोड़-बहुत अन्तर देखबा मे अबैछ यथा 15 जनबरी 1934 मे आयल भूकम्पक परिमाण किछु संस्था 8.1 कहैछ तऽ किछु 8.4 बतबैछ । ई अन्तर सभ आदर्श रूपसँ होयबाक नञि चाही पर वास्तविकतामे देखबामे अबैछ जेकि कोनो एकाई केर किछु दशांश भाग धरि भऽ सकैछ । एकर कारण अछि विभिन्ना संस्थासभ द्वारा भिन्न-भिन्न नापनी (स्केल) केर प्रयोग करब । भूकम्पक परिमाणकेँ ज्ञात करब प्रत्यक्ष नापी (DIRECT MEASUREMENT) नञि अछि बल्कि भूकम्पलेखी यण्त्रसँ भेटल विभिन्न आँकड़ा वा तथ्यसभ पर आधारित परोक्ष आँकलन (INDIRECT CALCULATION) करब अछि, तेँ आँकलन करबामे कोन-कोन आँकड़ा वा तथ्यसभकेँ (DATA) सम्मिलित कएल गेल अछि ताहि बात पर परिमाणक मान किछु दशांश धरि कम-बेशी भऽ सकैत अछि ।





                         भूकम्पक अकार या परिमाण (SIZE/MAGNITUDE) नपबाक हेतु कतेको युक्ति विकसित कयल गेल अछि जाहिमेसँ रिक्टर नापनी / रिक्टर परिमाण नापनी (RICHTER SCALE / RICHTER MAGNITUDE SCALE)परिमाण आघुर्ण नापनी (MAGNITUDE MOMENT SCALE)  केर उपयोग प्रमुखतासँ कयल जाइत अछि । एकर अतिरिक्त किछु आन नापनीसभक नाँव अछि कायिक तरंग परिमाण नापनी (BODY WAVE MAGNITUDE SCALE, Mb), धरातलीय या सतही तरंग परिमाण नापनी (SURFACE WAVE MAGNITUDE SCALE, Ms) समयान्तराल परिमाण नापनी (DURATION MAGNITUDE SCALE, MD) आदि ।

·        रिक्टर नापनी / रिक्टर परिमाण नापनी (RICHTER SCALE / RICHTER MAGNITUDE SCALE) अमेरिकी वैज्ञानिक चार्ल्स रिक्टर अपन सहयोगी गुटेनबर्गक सहायतासँ सन् ‍1934 ई॰मे विकसित कएलन्हि । एहि नापनीक ई नाँव पत्रकार लोकनि द्वारा प्रचलित कएल गेल अछि, भूकम्प वैज्ञानिक लोकनि एकरा स्थानीय परिमाण नापनी (LOCAL MAGNITUDE SCALE, ML) कहैत छथि । एहि नापनी या स्केल पर ‍1 सँ 12 धरिक अंक होइत अछि । भूकम्पक परिमाण शैलपड़तसभमेसँ मुक्त होमएबला ऊर्जासँ नापल जाइत अछि । ई नापी - जेना कि हम पहिनहि लीखि चुकल छी - प्रत्यक्ष (DIRECT) नञि भऽ कऽ परोक्ष (INDIRECT) रूपेण होइत अछि । ई नापनी परिमाणक सर्वाधिक प्रचलित नापनी अछि आ भुकम्प सम्बन्धी अधिकांश पुरना नापी एही नापनी पर कएल गेल अछि । ई नापनी ‍10 - 12 धरिक परिमाणबला भूकम्पक लेल बहुत नीक अछि पर ओहिसँ बेशी पैघ भूकम्पक लेल उपयुक्त नञि अछि ।

·        आघुर्ण परिमाण नापनी (MOMENT MAGNITUDE SCALE, Mw) सन् ‍1977 ई॰ मे थॉमस सी॰ हैन्क्स (THOMAS C. HANKS) हीरू कॅनामोरी (HIROO KANAMORI) द्वारा विकसित कएल गेल अछि । भूकम्पीय आघुर्ण (SEISMIC MOMENT) केर विचारधारा वास्तवमे भौतिकीक आघुर्ण केर सिद्धान्तसँ (CONCEPT OF MOMENT) निकालल गेल अछि । तेँ ओ भूकम्पक अकार (उत्पन्न भ्रंश आ ओहिसँ भेल छहलाव या छिछलाव ओ विस्थापन) आ ओहिसँ उत्पन्न ऊर्जाक बारेमे बेशी सही आ ठोस जानकारी दैत अछि । एकरा द्वारा नापल गेल परिमाण स्थानीय कारणसभसँ प्रभावित नञि होइत अछि तेँ विभिन्न भूकम्पक आकारक वा परिमाणक सटीकतासँ तुलना कएल जा सकैत अछि । ई आठ आ ताहिसँ बेशी परिमाणक भूकम्पकेँ नपबा हेतु सर्वाधिक उपयुक्त नापनी (स्केल) अछि । चुँकि एहि नापनीक नाप सेहो भूकम्पलेखीक रेकॉर्ड पर आधारित अछि तेँ पिछला भूकम्प सभक अकारकेँ सेहो एहि नापनीसँ निकालल जा सकैत अछि । एहि नापनी सँ अतिसुक्ष्म भूकम्पसभकेँ (रिक्टर नापनीक अनुसारेँ ‍सं॰ 1 सँ नीचाँ बला भूकम्प) सेहो नापल जा सकैत अछि आ ओकरासभकेँ ऋणात्पक संख्या (जेना कि -‍1,-2,-3 आदि) देल जाइत अछि । एहि नापनीमे अधिकतम धनात्मक मानक सेहो कोनो सीमा नञि अछि, तेँ कतबहु पैघ भूकम्पकेँ नापल जा सकैत अछि ।

      एहिसँ निकालल परिमाणक मान मोटा-मोटी रिक्टर नापनीसँ निकालल मानक समकक्ष होइत अछि कारण जे दुहु नापनी आधार 10 पर आधारित लघुगणकीय नापनी (LOGARITHMIC SCALE ON BASE 10) अछि । मतलब ई भेल कि एक पुर्णांकक कमी या बेशी भेला पर भूकम्पक अकारमे 10 गुणाक (आ मुक्त ऊर्जाक परिमाणमे 32 गुणाक) कमी या बेशी भऽ जाइत अछि । पैघ उत्थान भ्रंश (MEGATHRUST QUAKES) केर कारण आयल भूकम्पक अकार या परिमाण रिक्टर नापनी पर प्रायः 8 वा ओहिसँ बेसी होइत अछि जखनि कि रूपान्तरण भ्रंशक जनित भूकम्पक (STRIKE SLIP QUAKES) परिमाण 8 केर आस-पास वा ओहि सँ कम रहैछ । साधारण भ्रंशोत्थ भूकम्पक (NORMAL FAULT QUAKES) अकार प्रायः 7 सँ कम होइत अछि ।

     भूकम्पक तीव्रता (INTENSITY) की छी – से हम पहिने कहि आयल छी । तथापि किछु आओरो कहबाक आवश्यकता अछि । 12 मई 2015 (मंगलदिन) जे भूकम्प आयल छल तकर परिमाण 7.3 छल – ई बात सभ चैनल, रेडियो आ समाचार पत्रमे जनाओल गेल । पर किछु स्थानीय समाचार पत्र (पृष्ठ) तथा स्थानीय मीडिया मे समाचार आयल कि दरिभंगामे एहि भूकम्पक तीव्रता आठ (VIII) नापल गेल । एहिसँ लोकसभमे ई भ्रम पसरल कि भूकम्पक अकार (जन सामान्यक भाषामे तीव्रता) बहुत पैघ छल (जखन दरिभंगामे आठ छल तँऽ भूकम्प केन्द्र लग आओरो बेशी रहल होयत) आ सरकारी दाबनक कारणेँ सही आकार नञि बताओल जा रहल अछि । पर से बात नञि छल – वास्तवमे भूकम्पक परिमाण 7.3 छल । तखन प्रश्न उठैत अछि जे ई  आठ (VIII) की छल ? ई छल भूकम्पक तीव्रता; नञि कि भूकम्पक अकार वा परिमाण । ई भ्रम वास्तवमे एहि विषयमे किछु अल्पज्ञ स्थानीय पत्रकार लोकनि द्वारा आंशिक सूचना देबाक कारण पसरल छल । हम पहिनहि लीखि चुकल छी जे भूकम्पक तीव्रता कोनहु दू स्थान पर अधिकांशतः अलग-अलग वा कहुखन-कहुखन एकरंगाह भऽ सकैत अछि । तीव्रता आ परिमाण - दुहु अलग-अलग तरहक नापनी पर नापल जाइत अछि तेँ जरूरी नञि जे दूहु मान बराबर हो (जेना कि उपरोक्त उदाहरणमे भूकम्पक परिमाणक मान दरिभंगा मे भूकम्पक तीव्रतासँ कम छल) ।
                          भूकम्पक तीव्रताक निर्धारण बहुत रास बातसभ पर निर्भर करैत अछि । जेना कि – जाहि ठाम भूकम्पक तीव्रताक आँकलन कएल जा रहल अछि ओहि ठाम भेल जान-मालक क्षति, भौगोलिक संरचना (यथा - धरतीक सतह, नदी पहाड़ आदि) पर भूकम्पक प्रभाव, ओहि ठामक भवन, पुल आदि मानव निर्मित संरचना पर भेल प्रभाव वा क्षतिक स्वरूप आदि । सही रूप सँ कही तँऽ भूकम्पक तीव्रता कोनहु भूकम्पसँ उत्पन्न कम्पन द्वारा कोनहु स्थान विशेष पर भेल विनाशलीलाक परिचायक छी । एक्कहि भूकम्पसँ (तेँ एक्कहि परिमाणक भूकम्पसँ) विभिन्न जगह विनाशक दृश्य भिन्न-भिन्न होइत अछि आ तेँ तीव्रता सेहो भिन्न-भिन्न । एहि विभिन्नताक मूल कारण अछि अलग-अलग स्थान पर भू-पर्पटीक शैल संहति, वितरण ओ व्यवस्थापन भिन्न-भिन्न होयब । ई नापनी गणीतीय कलन (MATHEMATICAL CALCULATION) पर आधारित नञि अछि बल्कि लोकसभ द्वारा देल गेल विवरण आ स्वयं (वा आन द्वारा) देखल क्षति पर आधारित आँकलन (ESTIMATION) अछि । तेँ ई परिमाण नपबाक नापनी केर समान बेशी वैज्ञानिक नञि मानल जाइत अछि ।

      सन् ‍1780 ई॰मे डोमेनिको पिग्नातारो (DOMENICO PIGNATARO) नामक व्यक्ति पहिल बेर भूकम्पक तीव्रताक एकटा सामान्य वर्गीकरण प्रस्तुत कएलन्हि । सन् ‍1828 ई॰मे पहिल बेर पी॰ एन॰ जी॰ इगेन (P.N.G.EGEN) द्वारा आधुनिक परिप्रेक्ष्यमे कहबा जोग एक गोट तीव्रता नापनीक निर्माण कयल गेल, परन्तु ओहि समयमे एहि नापनी पर किनकहु विशेष ध्यान नञि गेल । दोसर शब्दमे ईगेन अपन समयसँ बहुत आगाँक काज कएने छलाह । रॉसी-फॉरेल नापनी (ROSSI – FOREL SEISMIC INTENSITY SCALE) पहिल तीव्रता-नापनी छल जकर विश्वमे बेशी व्यापक रूपसँ प्रयोग भेल आ एकर आविष्कार 19म (उन्नैसम) शताब्दीमे भेल छल । आइ-काल्हि भूकम्पक तीव्रता नपबाक हेतु विभिन्न स्थान पर अलग-अलग नापनी प्रयुक्त होइत अछि, जाहिमेसँ किछु प्रमुख नापनी नीचाँ देल गेल अछि –


क्र॰सं॰
देश या क्षेत्र
भूकम्पक तीव्रता नपबाक हेतु प्रयुक्त नापनी
1
भारत

मेद्वेदेव-स्पोनह्युवर-कार्निक नापनी
2
इजरायल
3
रूस
4
कज़ाकिस्तान
5
यूरोपीय संघ
यूरोपीय वृहत्भूकम्पीय नापनी
6
चीन
ल्युदु नापनी
(Liedu scale) (GB/T 17742-1999)
7
ताइवान
शिंदो नापनी
8
जपान
9
संयुक्त राज्य अमेरिका
संशोधित मर्केली नापनी
10
हाँग-काँग


          बेशीतर तीव्रता-नापनीमे ‍1 सँ 12 धरिक श्रेणी होइत अछि आ विभिन्न नापनीक समकक्ष श्रेणी मोटा-मोटी समतुल्य होइत अछि । अन्तर होइत अछि कि कोनो श्रेणीक निर्धारणमे विभिन्न नापनीमे प्रयुक्त भेल तथ्यसभक परिष्करणमे अथवा दोसर शब्दमे भूकम्प तीव्रताक श्रेणी-निर्धारणमे तथ्यसभक चयन ओ आँकलन कतेक विवेकपुर्ण आ प्रबुद्ध ढंगसँ कयल गेल अछि ।

·  ·        सं॰ रा॰ अमेरिकामे आ हाँग-काँगमे भूकम्पक तीव्रता नपबाक हेतु मर्केली नापनी (MERCALLI SCALE) या ओकर रुपान्तरित परिवर्धित स्वरूप जकरा संशोधित मर्केली नापनी (MODIFIED MERCALLI SCALE) कहल जाइत अछि केर प्रयोग बहुतायत सँ होइत अछि ।

·        मेद्वेदेव-स्पोनह्युवर-कार्निक नापनी (MEDVEDEV–SPONHEUER–KARNIK SCALE; MSK-64) केर प्रयोग भारत, रूस, इजरायल आ कज़ाकिस्तानमे भूकम्पक तीव्रता नपबाक लेल कयल जाइत अछि । एहिमे बादमे किछु संशोधन कयल गेल आ निर्धारण हेतु कम ठोस तथ्य सभकेँ हटाए बेशी ठोस तथ्य सभकेँ सम्मिलित कयल गेल जकरा MSK-81 नापनी कहल जाइत अछि । सन् 1998 ई॰मे यूरोपीय वृहत्भूकम्पीय नापनी (EUROPEAN MACROSEISMIC SCALE) अयलाक बाद एकर (MSK-64/81) प्रयोग अत्यन्त कम भऽ गेल अछि ।

·       यूरोपीय वृहत्भूकम्पीय तीव्रता नापनी (EUROPEAN MACROSEISMIC INTENSITY SCALE) केँ MSK-64/81 नापनीमे पाओल गेल कमीसभकेँ दूर करबाक उद्देश्यसँ बनाओल गेल छल । एकरा बनएबाक लेल यूरोपीय संघक लगभग समस्त देशक भूकम्पवैज्ञानिक ओ अभियन्ता (ईञ्जिनियर) लोकनि भाग लेलन्हि । करीब पाँच सालक गहन शोध आ तकर बाद करीब चारि सालक परीक्षण अवधिक बाद 1996 ई॰मे एकरा लागू कएल गेल । 2 सालक बाद एहि प्रारूपमे किछु आओर संशोधन भेल आ एखन इएह प्रारूप - जे कि EMS-98 कहबैत अछि - लागू अछि । ई तीव्रता नापनी आब यूरोपीय संघक देशक अतिरिक्त आन बहुत रास देश (भारत सहित) सभमे उपयोग भऽ रहल अछि । एकरा बनएबामे भूवैज्ञानिकक अतिरिक्त अभियन्तालोकनिक सहभागिताक कारण ई विशेष व्यापक आ उपयोगी भेल अछि ।

·        पर्यावरणीय भूकम्प तीव्रता नापनी (ENVIRONMENTAL SEISMIC INTENSITY SCALE) केर उपयोग प्रायः पर्यावरणीय विनाश वा क्षतिकेँ सुचित करबाक लेल कयल जाइत अछि । विशुद्ध पर्यावरणीय तथ्यसभ पर आधारित एकटा नऽव वृहत्भूकम्पीय तीव्रता नापनी बनएबाक एकटा अन्तर्राष्ट्रिय प्रयासक शुरुआत अन्तर्राष्ट्रिय चतुष्क शोध संघ (INTERNATIONAL UNION OF QUATERNARY RESEARCH; INQUA) केर सहयोगसँ भेल । एकर अन्तिम प्रारूप सन् 2007 ई॰मे  INQUA द्वारा अनुमोदित भेल आ संक्षिप्त नाँव ESI-2007 देल गेल ।

भूकम्पक अकार आ तीव्रताक अनुसार विनाश वा क्षति पहुँचबाक सम्भावना :-     

क्रम
सं॰
अकार या परिमाण
रिक्टर स्केल
श्रेणी
तीव्रता या   प्राबल्य
मर्केली स्केल
       प्रभाव / प्रभाओ
औसत आवृत्ति
1
2 सँ कम
सूक्ष्म

I
महसूस नञि होइत अछि वा मात्र किछु अतिसंवेदशील लोकसभकेँ महसूस होइत अछि; पर भुकम्पलेखी द्वारा रेकॉर्ड होइत अछि ।
सतत् वा प्रायः हर क्षण कतहु ने कतहु होइते रहैत अछि
2
2 सँ 2.9
अतिलघु
I सँ II
किछु संवेदी लोकसभकेँ हल्का महसूस भऽ सकैत छन्हि; भवन आदिकेँ नोकसान नञि ।
प्रतिवर्ष ‍10 लाखसँ बेसी
3
3 सँ 3.9
II सँ IV
प्रायः लोकसभ द्वारा महसूस कयल जाइत अछि पर बिरले कहुखन कोनो क्षति करैछ; घरक वस्तुसभक हिलनाय महसूस कएल जा सकैछ ।
प्रतिवर्ष ‍1 लाखसँ बेसी
4
4 सँ 4.9
लघु
IV सँ VI
घरक अन्दरक वस्तु सभक स्पष्ट कम्पन देखल जा सकैत अछि; प्रभावित क्षेत्रक अधिकांश लोकसभ द्वारा कम्पन वा झटकाक अनुभूति; बाहरी बस्तुसभक कम्पन अत्यल्प; प्रायः क्षति नञि वा अत्यल्प क्षति; मध्यम वा भारी क्षतिक सम्भावना नगण्य; किछु समान अलमीरासँ बाहर खसि सकैत अछि वा परस्पर टकरा सकैत अछि ।
प्रतिवर्ष ‍10000 सँ 15000
5
5 सँ 5.9
मध्यम
VI सँ VIII
प्रभावित क्षेत्रक प्रत्येक व्यक्ति द्वारा धक्का वा हिलनाय अनुभव कयल जाइछ; क्षति मामूलीसँ लऽ कऽ बहुत बेशी भऽ सकैत अछि; क्षति प्रभावित क्षेत्रक घऽरसभक संरचना पर निर्भर करैछ; कमजोर निमर्माणबला भऽर सभ ढहि सकैत अछि जखनि कि मजबूतीसँ बनल भवनसभकेँ सामान्य क्षति वा कोनहु क्षति नञि; प्राणहानि बिल्कुले नञि वा कमजोर घऽरक कारण किछु भऽ सकैछ ।
प्रतिवर्ष 1,000 सँ ‍1,500
6
6 सँ 6.9
सशक्त
VII सँ X
नीकसँ बनल घऽरसभकेँ सेहो औसत सँ बढ़िञा क्षति; भूकम्परोधी घऽर सभकेँ मामुली सँ औसत क्षति; अधिकांश कमजोर घऽर सभकेँ मध्यमसँ भारी क्षति; पैघ क्षेत्रमे (अधिकेन्द्रसँ सैकड़ों मील वा कि॰मि॰क दूरी धरि) महसूस कएल जाइछ; अधिकेन्द्र आ आस-पासक क्षेत्रमे तीव्र-सशक्त सँ लऽ कऽ उग्र-प्रचण्ड कम्पन; मनुक्खक मृत्युक संख्या शुन्यसँ 25,000 धरि भऽ सकैछ (एखन धरिक भूकम्प विवरणक अनुसार) ।
प्रतिवर्ष ‍100 सँ ‍150
7
7 सँ 7.9
विध्वंशक
VIII वा ताहिसँ बेसी
अधिकांश भवनकेँ किछु ने किछु क्षति; क्षति भवनक मजबूतीक अनुसार अति मामुलीसँ लऽ कऽ बहुत भारी तक – मकान पुर्ण रूपेँ ढहि सकैत अछि; नीक-मजबूत भवनसभकेँ सेहो बढ़िञा क्षति भऽ सकैत अछि; कम्पन बहुत पैघ दूरी तक अनुभव होइत अछि पर व्यापक क्षति अधिकेन्द्रसँ 250 कि॰मि॰क परिधि धरि सीमित रहैछ; भारी संख्यामे मृत्यु ।
प्रतिवर्ष ‍10 सँ 20 टा
8
8 सँ 8.9
अति-/महा विध्वंशक
भवन आदिकेँ भारी क्षति – ढहि जायब या भरभरा कऽ खसि पड़ब; भूकम्परोधी भवन ओ आन निर्माणसभकेँ सेहो मध्यमसँ भारी क्षति; पैघ क्षेत्रमे भारी तबाही; अत्यधिक विस्तृत क्षेत्र धरि कम्पनक अनुभूति; हजारोक संख्यामे जनहानि ।
प्रतिवर्ष ‍1 टा
9
99 सँ बेसी
लगभग पुर्ण विनाश – प्रभावित क्षेत्रक सभ भवनकेँ या तऽ गम्भीर क्षति या फेर ढहि जायब; बहुत दूरस्थ क्षेत्र धरि क्षति आ तीव्र कम्पन; भूकम्पक कारण धरतीक भौगोलिक स्थितिमे किछु ने किछु महत्त्वपुर्ण स्थाई परिवर्त्तन अवश्य होइत अछि; ‍10,000 सँ बेशी जनहानि ।
हरेक ‍10 सँ 50 वर्षमे ‍1 टा


भूकम्पक भविष्यवानी :-

        एतेक रास वैज्ञानिक अनुसंधान भेलाक बादहु एखन धरि मात्र एतबहि कहल जा सकैत अछि कि कोन स्थान भूकम्प सम्भावित क्षेत्र अछि । ईहो भविष्यवानी पुर्णतः सटीक नञि अछि । कोन स्थान पर कहिया आ कोन समयमे भूकम्प आओत; से अनुमान धरि नञि लगाओल जा सकैत अछि – सटीक भविष्यवानीक तँऽ कोनहु चर्चे नञि । बेशी सँ बेशी ई अनुमान लगाओल जा सकैत अछि कि अमुक क्षेत्रमे अगिला किछु दशकमे ( ‍1 दशक = ‍10 वर्ष ) भूकम्प अएबाक सम्भावना अछि । पर ई कोन दशक मे होयत, कहिया होयत, ओकर केन्द्र कोन ठाम होयत, ओ कतेक शक्तिशाली होयत .................  आदि प्रश्नसभक लेशमात्रो उत्तर देब एखन धरि सम्भव नञि भेल अछि ।

भूकम्प गुच्छ/समूह :-

       अधिकांश भूकम्प कोनो ने कोनो भूकम्प श्रृंखलाक भाग होइत अछि आ परस्पर एक-दोसरासँ स्थान आ समयक आधारेँ सम्बन्धित रहैत अछि । प्रायः छोट-छोट कम्पनक एहेन समूह जाहिसँ कोनो हानि नञि होइत अछि अथवा अत्यल्प हानि होइत अछि, भुकम्प गुच्छ (EARTHQUAKE CLUSTERS) कहल जाइत अछि ।

भूकम्पक मुख्य- अग्र- आ पश्च-संक्षोभ :-

      जखन कतहु भूकम्पक कोनो पैघ झटकाक बाद भूकम्पक छोट-छोट झटकासभ अबैत अछि तऽ एहिमेसँ सभसँ पैघ झटकाकेँ मुख्य-संक्षोभ/झटका/धक्का (MAIN SHOCK) आ बादक कम तीव्रताबला झटका सभकेँ पश्च-संक्षोभ/झटका/धक्का (MAIN SHOCK) कहल जाइत अछि । मुख्य-संक्षोभ आ पश्च-संक्षोभसभक क्षेत्र एक्कहि रहैछ पर पश्च-संक्षोभसभक तीव्रता हमेशा मुख्य संक्षोभसँ कम रहैछ । भूकम्पक मुख्य संक्षोभक कारण भ्रंश-रेखाक आस-पास विस्थापित भू-खण्ड केर पुनर्सामञ्जस्य करबाक कारण पश्च-संक्षोभक उत्पत्ति होइत अछि ।

     उपरोक्त प्रकरणमे जँ कोनो पश्च-संक्षोभ केर तीव्रता मुख्य-संक्षोभसँ बेशी भऽ जाइत अछि तऽ पहिलुका मुख्य-संक्षोभकेँ अग्र-संक्षोभ/झटका/धक्का (FORE SHOCK) कहल जाइत अछि आ बादमे आयल बेशी तीव्रताबला पश्च-संक्षोभ केर पुनर्नामकरण मुख्य-संक्षोभ/झटका/धक्का (MAIN SHOCK) केर रूपमे कयल जाइत अछि ।

भूकम्प छत्र /झुण्ड :-

      बहुत कम समयमे जखन कोनो स्थान पर एकसँ बेशी भूकम्प अबैत अछि आ एहिमे सभक तीव्रता एकरँगाहे होइत अछि तँऽ एहि प्रकारक भूकम्प श्रृंखलाकेँ भूकम्प-छत्र या भूकम्प-झुण्ड (EARTHQUAKE SWARMS) कहल जाइत अछि । एहिमे कोनो मुख्य वा पश्च संक्षोभ नञि होइत अछि । अगस्त 2012 ई॰मे अमेरिकाक कैलिफोर्नियाक इम्पीरियल घाटीमे आयल भूकम्पसभ एकरे उदाहरण छल । एहि तरहक भूकम्प आदर्श रूपसँ कोनो स्थान पर सक्रिय ज्वालामुखीय विष्फोटसँ ठीक पहिने देखल जाइत अछि ।

भूकम्प अन्हर :-

      कहुखन-कहुखन भूकम्प श्रृंखला भूकम्प अन्हर (EARTHQUAKE STORMS) केर रूपमे अबैत अछि जाहिमे भूकम्प भ्रंशस्थान पर भूकम्प-गुच्छक रूपमे टकराइत अछि । एहिमे प्रत्येक भूकम्प-गुच्छक उत्पत्ति पहिलुका भूकम्प-गुच्छसँ उत्पन्न कम्पन या तनावक पुनर्वितरणक कारणेँ होइत अछि । दोसर शब्दमे, भूकम्प-अन्हर ओ घटनाक्रम थिक जाहिमे कोनहु एकटा भूकम्प अपना पाछाँ पैघ भूकम्पसभक एक गोट श्रृंखलाकेँ जन्म दैत अछि आ सेहो ओएह विवर्तन छज्जीक सीमारेखाक अन्तर्गत जाहि विवर्तन छज्जीक सीमामे ओहि श्रृंखलाकेँ प्रारम्भ करए बला पहिल भूकम्प आयल छल ।  

      भूकम्प-अन्हर पहिल नजरिमे  पश्च-संक्षोभ जेकाँ लगैत अछि पर ओहिसँ भिन्न होइत अछि । पश्च-संक्षोभक भूकम्पसभ अपेक्षाकृत बहुत कम समय (किछु मिनट सँ किछु महीना वा एक-आध वर्ष धरि) केर अन्दर अबैत अछि जखनि कि भूकम्प-अन्हर श्रृंखला केर अन्तर्गत आबए बला भूकम्प कतेको वर्षक कालखण्डमे अबैत अछि । इतिहासमे काँस्य युगमे तथा रोमण साम्राज्यक अन्तिम कालखण्डमे एहि तरहक भूकम्प आयल छल । एहि तरहक भूकम्प श्रृंखला ओहि विशिष्ट क्षेत्र वा भू-भागकेँ धीरे-धीरे पुर्ण रूपसँ तहसि-नहसि (तहैस-नहैस) कऽ दैत अछि ।

भूकम्पक वैश्विक वितरण ओ अग्नि वलय :-

      पृथिवीक सतह पर भूकम्पक वितरण आ ज्वालामुखीय पर्वतक विश्व वितरण मे बहुतहि समानता पाओल जाइत अछि । दुहु आकस्मिक घटना थिक आ दुहुक सम्बन्ध भू-गर्भमे होमए बला गतिविधिसभसँ अछि । भू-पृष्ठ पर सभसँ बेशी भूकम्प प्रभावित क्षेत्रसभ प्रायः तीन पट्टिकामे डविभक्त अछि जे परि-प्रशान्त पेटी (CIRCUM PACIFIC BELT), मध्य अटलाण्टिक पेटी (MID ATLANTIC BELT)मध्य महाद्वीपीय पेटी (MID CONTINENTAL BELT) कहबैछ । एकर अतिरिक्त किछ छिटपुट स्वतन्त्र भूकम्प क्षेत्रसभ सेहो अछि जे कोनो पट्टिकाक रूपमे नञि भऽ कऽ समस्त भू-पर्पटी पर छिड़िआएल अछि । परि-प्रशान्त पेटी मे ज्वालामूखीय गतिविधि सेहो विश्वमे सर्वाधिक अछि । ई पेटी मानचित्र पर किछु - किछु औंठी सनि वा वलयाकार लगैत अछि तेँ एकरा अग्नि-वलय (RING OF FIRE) सेहो कहल जाइत अछि ।



भारतक भूकम्प सम्भाव्य क्षेत्र :-

      आबए बला भूकम्पक आवृत्ति, शक्ति आ विनाश केर आधार पर समस्त भारतकेँ पाँच भूकम्पीय क्षेत्र वा भूकम्प सम्भाव्य क्षेत्रमे (SEISMIC ZONES) बाँटल गेल छल । ई क्षेत्रसभ उत्तरोत्तर भयानक विनाश क्षमताबला भूकम्पक सम्भावित क्षेत्रकेँ निरूपित करैत अछि । भूकम्प क्षेत्र - I केँ अतिसुरक्षित क्षेत्र मानल जाइत अछि जखनि कि क्षेत्र - V केँ अत्यन्त वा पुर्ण विनाशकारी क्षमतायुक्त भूकम्पसभक सम्भाव्य क्षेत्र मानल गेल अछि । नवका तथ्यसभक आधार पर सन् 2002 ई॰मे भारतक लेल भूकम्प क्षेत्र - I केँ समाप्त कऽ देल गेल आ समस्त भारतकेँ मात्र चारि भूकम्प क्षेत्रमे बाँटल गेल अछि । एकर मतलब भेल कि सम्पुर्ण भारतमे कोनहु एहेन स्थान नञि अछि जे भूकम्पक प्रकोपसँ प्रायः पुर्ण सुरक्षित मानल जा सकए । ई विभाजन निम्न मानचित्रमे देखाओल गेल अछि -  




बिहारक भूकम्प सम्भाव्य क्षेत्र :-

      समस्त बिहार भूकम्प क्षेत्र III, IV  V मे आबैत अछि जे कि निम्न मानचित्रमे देखाओल गेल अछि ।




       भूकम्प क्षेत्रक उपरोक्त वितरणक आधार पर किछु कुत्सित विचारधाराक लोकसभ मिथिलाक संग गलत राजनीति कऽ रहल छथि । हुनका अनुसारेँ समस्त मिथिला भूकम्पक अतिप्रबल्य क्षेत्र अछि तेँ कोनहु आधारभूत ठोस काज या उद्योग आदिक स्थापना एहि ठाम नञि होयबाक चाही । पर, एहि तरहक अवधारना सही रहितहुँ गलत अछि, कारण :-

·        पहिल बात तँऽ सम्पुर्ण मिथिला भूकम्प क्षेत्र - V मे नञि अबैत अछि, मिथिलाक करीब 60% भाग भूकम्प क्षेत्र - IV मे अबैत अछि ।
·        भूकम्प क्षेत्र - IV मे बिहारक राजधानी पटना सह नालन्दा सेहो अबैत अछि आओर संगहि अबैत अछि भारतक राजधानी - दिल्ली । तँऽ की एहि क्षेत्रसभमे तथाकथित कोनहु निर्माण नञि कयल गेल अछि वा नञि कयल जा रहल अछि ?
·        विश्वक सर्वाधिक विकशित देशसभमेसँ एक - जपान - सेहो भूकम्प वा ज्वालामुखीक अत्यन्त सक्रिय क्षेत्रमे पड़ैत अछि; तँऽ कि ओहि ठामक लोकसभ विकाशक सुविधासँ वञ्चित छथि ?

    आवश्यकता थिक तथाकथित लोकसभकेँ अपन विचारधारा बदलबाक । मिथिलाक लोक सेहो देशक आन भागक समान विकाश ओ सुविधाक अधिकारी छथि । ओ लोकनि सेहो अपना घऽर बैसल उच्च तकनीकी शिक्षा, उद्योग ओ नीक रोजगारक अधिकारी छथि । एहि क्षेत्रक भूकम्पीय गतिविधिकेँ ध्यानमे रखैत निर्माण कार्य तदनुरूपेँ कराओल जा सकैत अछि; जेना कि पटना ओ दिल्लीमे भऽ रहल अछि । आ जेना जपानमे होइत अछि । दरिभंगाक नरगओना पैलेस एहने एक-टा भूकम्परोधी स्थापत्यक उदाहरण थिक ।

भूकम्पक प्रभाव ओ क्षति :-


                                                     भूकम्प वास्तवमे पृथिवीक सभसँ बेसी विनाशकारी आफद अछि कारण एकरा द्वारा कयल गेल विनाश काफी व्यापक वा विस्तृत क्षेत्रमे होइत अछि । ज्वालामुखीय विनाश कतबहु गम्भीर हो पर क्षेत्र प्रायः अत्यन्त सीमित रहैत अछि । पैघ भूकम्पसभ द्वारा प्रणहानि ओ सम्पत्तिक हानि बहुत व्यापक होइत अछि । कोनहु भूकम्प द्वरा भेल विनाशलीला ओ क्षति बहुत रास बात पर निर्भर करैछ, जाहिमेसँ किछु निम्न अछि :-
1.     भूकम्पक अकार - सामान्य रूपेण भूकम्पक आकार वा परिमाण जतेक पैघ होइत अछि भूकम्पक विनाशकारी प्रभाव तेहने भयंकर ।

2.     भूकम्प मूल वा केन्द्र वा अधोकेन्द्रक धरातलसँ दूरी - प्रायः धरातलसँ (धरतीक ऊपरुका सतहसँ) भूकम्पक केन्द्र वा अधोकेन्द्रक स्थान जतेक गँहीर रहैत अछि भूकम्पसँ क्षति ओतेक कम होइत अछि ।

3.     अधिकेन्द्रसँ दूरी - जेना कि पहिनहि कहल जा चुकल अछि कि भूकम्पसँ सर्वाधिक नोकशान भूकम्पक अधिकेन्द्रसँ हटि कऽ बनए बलाभीतरुक वृत्तसभक क्षेत्रमे होइत अछि । यथा 25 अप्रील 2015ई॰क भूम्पक केन्द्र लुमजुङ्ग लग छल पर सर्वाधिक क्षति काठमाण्डूमे भेल । ‍25 अप्रील 2015 ई॰क भूकम्पक केन्द्रसँ काठमाण्डू बेसी लऽग छल जखनि कि 15 जनवरी ‍1934 ई॰क भूकम्प 21 अगस्त 1988 ई॰क भूकम्पमे राजनगर, मधुबनी, निर्मली आदि बेसी नजदीक छल । 



4.     समयावधि - भूकम्पक कम्पन कतेक काल धरि रहैत अछि तकर सोझ सम्बन्ध धरातल पर होमए बला क्षतिसँ अछि । अधिक समय धरि रहए बला कम शक्तिशाली कम्पन सेहो बेसी नोकशान कऽ सकैत अछि ।

5.     पश्च संक्षोभक संख्या आ शक्ति  - पश्च संक्षोभ (AFTER SHOCKS) केर संख्या आ तकर सभक व्यक्तिगत शक्ति सेहो भूकम्पक मुख्य संक्षोभसँ (MAIN SHOCK) भेल क्षतिकेँ बढ़ा सकैत अछि ।

6.     शैल पड़तक/स्तरक संघटन - कोनहु स्थानक स्थानीय शैल स्तरक संरचना केहेन अछि, ओ कोन प्रकारक पाथर सँ बनल अछि, ओहि ठामक माटिक बनाओट केहेन अछि - आदि अनेक मृदा-वैज्ञानिक तत्त्वसभ (EDAPHIC FACTORS) पर सेहो भूकम्पीय क्षति निर्भर करैछ । जेनाकि बलुआ पाथरसँ बनल क्षेत्र आग्नेय शैल पड़तक अपेक्षा बेसी नोकशानक भागी बनैछ । तहिना प्राचीन पठारी भागक अपेक्षा नव-निर्मित पहाड़क क्षेत्र वा मैदानी क्षेत्र बेसी क्षतिक लेल उत्तरदायी होइत अछि ।

7.     जनसंख्या घनत्त्व -  ई एकटा सामान्य तथ्य थिक जे बेसी जनसंख्या घनत्त्वबला भू-भागमे कोनहु प्रकारक आफदसँ नोकशानक सम्भावना बेसी रहैत अछि । काठमाण्डूमे 25 अप्रील 2015  ई॰ कऽ भेल भूकम्पक द्वारा जे प्राणहानि भेल तकर एकटा ईहो प्रमुख कारण छल । लुमजुङ्गसँ पोखराक सेहो करीब-करीब ओतबहि लम्बवत दूरी (RADIAL DISTANCE) छल जतेक कि काठमाण्डूक परञ्च पोखराक अपेक्षा काठमाण्डूमे बेसी जनहानि भेल ।



8.     स्थापत्यादिक स्तर - भूकम्प क्षेत्र मे निर्मित घऽर वा मकान, औद्योगिक निर्माण, व्यवसायिक परिसर आदि निर्माणशैली आदि सेहो भूकम्प द्वारा भेल क्षतिमे पुर्ण योगदान करैछ । माटिक भीतक देवाल, अवैज्ञानिक ढंगसँ बनाओल सीमेण्टक भवन आन स्थापत्य (RCC Constructions) क्षतिमे पुर्ण योगदान करैछ । पैगोडा शैलीक स्थापत्य वा वैज्ञानिक ढंगसँ बनाओल सुव्यवस्थित सीमेण्टक स्थापत्य निश्चित रूपेण क्षतिकेँ कम करैछ । इएह कारण छल कि 25 अप्रील 2015 ई॰क भूकम्पमे पैगोडा शैलीमे बनल पशुपतिनाथ मन्दिरक कनिञो क्षति नञि भेल आ धरहरा स्तम्भ धराशायी भऽ गेल । ‍11 मार्च सन् 2011 ई॰ कऽ, जपानक होंशू द्वीपसँ सटि कऽ, समुद्र तल पर रिक्टर नापनी पर 8.9 परिमाणक भूकम्प आयल छल जे कि काठमाण्डूमे आयल भूकम्पक तुलनामे बहुत पैघ छल (रि॰ना॰ पर परिमाण 7.8) । एहिमे भूकम्पक कारण काठमाण्डूक अपेक्षा ओतेक तबाही नञि भेल - कारण छल कम सघन जनसंख्या आ वेज्ञानिक ढंगसँ निर्मित भेल स्थापत्यसभ । तबाही भेल अवश्य - पर से तबाही ओहि भूकम्पसँ उत्पन्न भेल सुनामीक कारण भेल; नञि कि स्वयम् भूकम्पक कारण । फुकुशिमा परमाणु संयण्त्रमे भूकम्पक कारण क्षति नञि भेल पर ओहिमे सुनामीक कारण जे पानि घुसि गेल से तबाहीक कारण बनल । 


 
        मानचित्र पर भूकम्पक प्रघातक (संक्षोभक) समान तीव्रताबला (SAME INTENSITY) स्थानसभकेँ मिलाबएबला रेखाकेँ समभूकम्प रेखा (ISOSEISMAL LINE) कहल जाइत अछि । ई रेखा वृत्ताकार होयबाक चाही पर वृत्ताकार नञि होइत अछि - कारण थिक उपरोक्त वर्णित कारण सभ ।

        भूकम्पक कारण धरती पर बहुत रास घटना ओ परिवर्तनसभ देखबामे अबैत अछि, जाहिमेसँ किछु एहि प्रकारेँ अछि -

1.     धरतीक काँपब दड़ारि फाटब :- धरतीक काँपब या डोलब (GROUND SHAKING)  तथा ठाम - ठाम धरतीक सतह केर फाटब आ दड़ारि पड़ब (GROUND RUPTURE) - इएह भूकम्पक सर्वप्रमुख ओ सर्वविदित लक्षण अछि । धरतीक कम्पन भूतल या भूखण्ड त्वरण (GROUND ACCELERATION) केर आधार पर नापल जाइत अछि । कोनो स्थान पर कम्पन ओहि ठामक स्थानीय जमीनक संरचना आदि पर निर्भर करैछ । ताहि कारणेँ कहुखन-कहुखन छोट-क्षिण भूकम्पसँ सेहो कोनहु स्थान पर तीव्र कम्पनक अनुभव भऽ सकैत अछि । एहि तरहक घटनाकेँ स्थानीय - प्रवर्धन (SITE / LOCAL AMPLIFICATION) कहल जाइत अछि । ई घटना प्रायः भीतरुका कड़गर भूखण्ड वा शैलस्तरसँ उपरुका अपेक्षाकृत बेसी मृदु माटिमे भूकम्पीय तरंगक गमणक फलस्वरूप होइत अछि । भ्रंश स्थान वा भ्रंश रेखाक आस-पास धरतीक सतह केर फाटब भू - विदारण (GROUND RUPTURE) कहबैत अछि । पैघ भूकम्पक स्थितिमे एहि तरहक विदारण या दड़ारि कतेको मीटर धरि चाकर भऽ सकैत अछि । ई बान्ह, नाभीकीय संयंत्र, पुल आदि स्थापत्यक लेल पैघ खतरा उत्पन्न कऽ सकैत अछि ।

2.     भूस्खलन हिमस्खलन :- सामान्य भाषामे एकरा धँसना धँसब कहल जाइत अछि । जँ धँसनामे धरतीक सतहक कोनो उपरुका भागसँ (यथा - पहाड़ वा पहाड़ीसँ) माटि वा पाथर आदि छहलि कऽ नीचाँ अबैत अछि तँऽ एकरा भूस्खलन (LANDSLIDES) कहल जाइत अछि । आ जँ पहाड़ परसँ बर्फक हिस्सा छहलि कऽ नीचाँ अबैत अछि तँऽ एहि घटनाकेँ हिमस्खलन (AVALANCHES) कहल जाइत अछि । सन् 1934 ई॰क भूकम्पमे भूस्खलन बहुत विस्तृत रूपसँ भेल छल कारण एकर अधिकेन्द्र विश्वक सर्वोच्च पर्वत शिखर सगरमाथा (माउण्ट एवरेस्ट) केर ठीक जड़िमे छल । 25 अप्रील  2015 ई॰क भूकम्पमे हिमस्खलनक कारण किछु पर्वतारोहीलोकनि मारल गेलाह जखनि कि आन सभ प्रत्यक्ष मृत्युक अवलोकन कएलन्हि ।

3.     भू-द्रवीभवन / भू-द्रावण :- जखन भूकम्पक तीव्र कम्पनक कारण जलसँ संतृप्त माटिक निचलुका स्तरक कणसभ (यथा-बालु या बलुआही माटि) अपन परस्पर आकर्षण शक्तिकेँ (COHESSIVE & ADHESSIV FORCES) तत्क्षण त्यागि ठोससँ द्रव रूपमे परिवर्तित भऽ जाइत अछि तँऽ ओहि घटना केँ भू-द्रवीभवन या भू-द्रावण (SOIL LIQUIFACTION) कहल जाइत अछि । एहि परिघटनाक कारण मकान, पुल आदि या तँऽ कोनो दिशि झुकि जाइत अछि या फेर जमीनमे धँसि जाइत अछि । धँसलाक बाद तकरा ऊपरसँ बालु आ माटि भरि जाइत अछि । सन् 1934 ई॰मे आयल भूकम्पमे तत्कालीन निर्मली रेल्वे स्टेशन करीब ‍10 फीट (03 मीटर) नीचाँ माटिमे धँसि गेल छल । तहिना सन् 1988 ई॰क भूकम्पमे राजनगरक नौलक्खा महल केर मुख्य परिसर (जाहि ठाम एखन SSB केर टुकड़ी अछि) जमीनमे धँसि गेल छल । ई दुनु उदाहरण श्चिनित रूपेँ भू-द्रवीभवनक थीक । ओना नौलक्खा महल तँऽ सन् 1934 ई॰क भूकम्पहिमे खण्डहर भऽ गेल छल । सामान्य मैथिली भाषाक शब्द धँसना धँसब केर अर्थ बहुत व्यापक ओ विस्तृत अछि; एहिमे भूस्खलन आ हिमस्खलनक संगहि भू-द्रवीभवन वा भू-द्रावण शब्दसँ बोध होमए बला घटना सेहो सन्निहित अछि । पहाड़ी भागमे एकर अर्थ प्रायः भूस्खलन वा हिमस्खलन लेल जाइत अछि जखनि कि मैदानी भागमे एहि शब्दसँ अधिकांश लोक भू-द्रवीभवन वा भू-द्रावण सन घटनाकेँ बुझैत छथि । सन् 1934 ई॰क भूकम्पमे बहुतो ठाम धरतीसँ पानिक फब्बारा फूटि पड़ल छल, कऽलसभसँ अपनहि-आप पानि निकलए लागल छल । ई सभ सेहो भू-द्रवीभवनक उदाहरण छी ।



4.     अगिलग्गी :- भूकम्पमे आन कोनो कारणसँ जेना कि विद्युत-आपुर्तिकेँ लघु-परिपथित (SHORT CIRCUIT) होयबाक कारण आगि लागि सकैत अछि । सन् 1906 ई॰मे अमेरिकाक सॉन-फ्रान्सिस्को नामक जगह पर आयल भूकम्पमे लघु-परिपथनक कारण लागल आगिसँ ततेक लोक मारल गेलाह जतेक कि भूकम्पसँ नञि मुइलाह ।

5.     बाढ़ि :- भूकम्पक कारण कोनहु बान्ह केर टुटबासँ वा क्षतिग्रस्त होयबासँ बाढ़ि आबि सकैत अछि ।

6.     सुनामी :- समुद्रक सतह पर होमएबला भूकम्पकेँ सामुद्रिक भूकम्प कहल जाइत अछि जकर बेशी प्रचलित नाँव सुनामी अछि । सुनामी (TSUNAMI) वस्तुतः जपानी शब्द अछि । सुनामी शब्दक शाब्दिक अर्थ अछि समुद्रमे उठएबला ऊँच - ऊँच लहरि । सुनामी व्यापक रूपसँ समुद्रतल पर भूकम्पीय गतिविधि सभक कारणेँ आबैत अछि पर किछु आन कारणसभ जेना कि समूद्री सतह पर ज्वालामुखीय विष्फोट, कोनहु परमणु परीक्षण, समुद्र तल पर भ्रंश निर्माण या धँसाव, उल्कापात आदिक कारण सेहो आबि सकैत अछि । सुनामी पैघ तरंगदैर्ध्य आ पैघ अन्तराल बला जे कि सागरक पानिक बहुत पैघ आयतन केर अचानकहि गतिशील होयबासँ बनैत अछि । उन्मुक्त समुद्रमे एकर तरंगदैर्ध्य (WAVELENGTH) 100 कि॰मि॰सँ बेसी भऽ सकैत अछि जखनि कि  समयान्तराल (TIME PERIOD) 05 मिनटसँ लऽ कऽ 01 घण्टा तक भऽ सकैत अछि । अधिकांश पैघ सुनामीमे समुद्रक लहरि केर ऊँचाई 10 ‍मीटर केर आस-पास पर किछु समय 90 मीटर धरिक लहरि देखल गेल अछि । सन् 1883 ई॰मे समुद्रतल पर क्राकाटोआ ज्वालामुखीक गतिविधिक कारण आयल भूकम्पक परिणामस्वरू उठल सुनामीमे ओहि क्षेत्रक द्वीपसभ पर लगभग 36,000 लोक मारल गेल छलाह ।

7.     भौगोलिक परिवर्तन :- कएक बेर भूकम्प अपना संग बहुत रास छोट - पैघ भौगोलिक स्थायी - अस्थायी परिवर्तनसभ आनैत अछि । कतहु ईनार आ कऽल बालुसँ भरि जाइत अछि तँऽ कतहु धरती फारि पानिक बमकल्ला फुटि निकसैत अछि । पैघ विवर्तनिक उत्थान भ्रंशजन्य भूकम्पसभमे प्रायः किछु स्थायी भौगोलिक परिवर्तन होइत अछि । 25 अप्रील 2015 ई॰क भूकम्पमे काठमाण्डू अपना पुर्वक स्थितिसँ तीन फीट (एक मीटर) उत्तर भऽर उठि गेल अछि ।

8.     मानव निर्मित स्थापत्यक क्षति  :- मानव निर्मित प्रत्येक स्थापत्यकेँ भूकम्प अपना शक्ति अनुसारेँ क्षतिग्रस्त करबाक क्षमता रखैत अछि । बसबासँ पहिनहि उजरल राजनगर, कोसी नदी पर निर्मली आ भप्तियाहीक बीच खसल रेल्वे पुल, दरिभंगा ओ सहरसाक बीच टूटल रेल लाइन आदि मिथिलाक लोककेँ कण्ठस्थहि अछि । हालहिमे काठमाण्डूकेँ उजरैत देखनहि छी - कोना अपनहि बनाओल घऽरमे लोकसभ समाधिस्थ भऽ गेलाह । सभकेँ बुझल छै जे धरहराक भीमसेन स्तम्भ आ पाटन ओ भक्तपुरक देवालयसभ कोना धराशायी भेल ।


9.     प्राणहानि :- भूकम्प केर सभसँ दुखद परिप्रेक्ष्य थिक मनुक्ख ओ आन जीवक मृत्यु वा विकलाङ्गता । ई अपूरणीय क्षति थिक ।


07 AUG. 2015 कऽ प्रकाशनार्थ मिथिला दर्शन केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।
एहि लेखक संक्षिप्त संस्करण मिथिला दर्शन पत्रिकाक जनबरी - फरबरी 2016 अंकमे प्रकाशित ।


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