माघ (कविता)
सिहकैत बसात, ठिठुरैत माघ ।
ओसक टप्-टप्, कानए अकास
।।
सभ आढ़ि - धूर पर उगल घास
।
ओसेँ भीजल, पिछड़ैत लात ।।
ओसेँ भीजल अछि गाछ - पात
।
टप् - टप् भू पर पानिक
प्रपात ।।
पर ओस चाटि की मेटए प्यास
?
एकटा अछार एखनो छै आश ।।
पछता गहूम केर हो
ने नाश ।
तेँ दमकलसँ अछि पटैत चास
।।
नाला - पौती अछि बितल बात
।
प्लास्टिकक पाइप संबल
उसास ।।
अजगर सनि पसरल बीच बाध ।
फक् फक् करैत दमकलक साथ
।।
गमछा - मफलर बन्हने गाँती
।
चद्दरि – सोएटर झँपने छाती ।।
निकलल – जकरा भोरे छै काज
।
काजक बदलामे नञि
छै लाथ ।।
शीतलहरी पूसहु केर बाद ।
नञि जानि कते दिन रहत आब
।।
कनकनी एहेन
कँपबैछ हाड़ ।
तइयो धड़फड़मे
घटकराज ।।
एहनोमे धोएबा लेल पाप
।
जा रहल लोक
दौगल प्रयाग ।।
01 FEB.
2015 कऽ प्रकाशनार्थ “विदेह - पाक्षिक मैथिली ई पत्रिका” केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।
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