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Friday, 21 November 2014

पद्य - ९५ - प्रदूषण (कविता)

प्रदूषण
ध्वनि - प्रदूषण केर एकटा उदाहरण

वायु - प्रदूषणक एकटा उदाहरण



प्रकर्षेण दूषित  सभ किछु थिक,  अनारोग्य केर जननी ।
ई दैवक नञि छी प्रकोप, छी मनुक्खक अपनहि करनी ।।

कोनहु बस्तु जञो  गन्दा भऽ गेल,  दूषित ओ कहबैत’छि ।
प्रकर्षेण मतलब अतिशय अछि, सीमा – हद जनबैत’छि ।।

सीमासँ   बेसी   अबाज  जञो,   कहबै  ध्वनिक  प्रदूषण ।
ऊँच सुनब, अनुनाद – नाद, बाधिर्य एकर अछि लक्षण ।।

दुषित हवा  जञो  साँस लेल  तँऽ,  साँसक होएत  बेमारी ।
दमा – एलर्जी   आओर  पता  नञि,  की – की महामारी ।।

दुषित पानि  पिउबा सँ जे सब, होइत’छि से बुझले अछि ।
पेट खड़ाब आ हैजा पेचिश,  सभटा  देखले–सुनले अछि ।।

मृदा – भूमि   सेहो   दूषित  भऽ,  बहुते  करैछ   समस्या ।
कऽलक  पानि आ खेतक उपजा,  माहुर सनक अभक्ष्या ।।

रेडियोधर्मी  अछि  पदार्थ   जञो,  विकिरण करय प्रदूषण ।
धरा – पानि  तँऽ  दूषित  अछिए,  सीधे   मारक    लक्षण ।।

एखनहुँ  जँ  संसार  ने  चेतत,   बदलत  नञि  निज करनी ।
हाथ  ने  किछु  बाँचत  भविष्यमे,  अपन दशा पर कननी ।।



'विदेह' १६७ म अंक ० नवम्बर २०१४ (वर्ष ७ मास ८३ अंक १६५) मे प्रकाशित ।


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