मिथिलाक धिया
(बाल कविता) 
हऽम धिया मिथिला मैथिल केर,
मैथिली    हम्मर
     नाम ।
हमही   जानकी,   हम  वैदेही,
सीता      हमरहि     नाम ।।
भारतवर्षक   पूब    दिशा   मे,
मिथिला     हम्मर   
 गाम ।#
संग  नेपालक  पूब
 ओ  दक्षिण,
हमरहि     बास     सुठाम ।।#
कहियो हम  मिथिलाक माटि पर,
ज्ञानक  दीप  जरओने
  छी ।
की मिथिला ?  सौंसे  भूतल
केँ,
हम विज्ञान  सिखओने  छी
।।
हमही   कहियो   छलहुँ   गार्गी,
हमही    मैत्रेयी     बनलहुँ
।
मण्डन   शंकर   वाग्युद्ध
  केर,
सूत्रधार   हमही    बनलहुँ ।।
ब्रम्हज्ञान  लौकिक - परलौकिक,
हम भामति, सञ्चित
कयलहुँ ।
पर की भेल ? आइ  हमरा अहँ,
शिक्षा सञो  वञ्चित कयलहुँ ।।
एहनो   दिवस  रहल  जहिया,
नञि  चिट्ठी - पत्री हम जानी ।*
मिथिला  केर  बेटी  बनि  कऽ,
हम  खुशी मनाबी,  वा कानी !!
एखनहु बड़ - बड़  गप्प हँकै छी,
धिया – सिया  कहि  पड़तारी
।
पर  की  अतबहि  अछि  दुलार,
की अतबहि केर हम
अधिकारी ??
तिलकक नाँव सँ हक्कन कनै
छी,
छी    सत्ते   
 ई    महामारी ।
पर बाबू   !   की  कहियो   सोचल,
अपनेक     की   जिम्मेदारी
??
की   अपनेक   ई  सोच   उचित,
जे बेटी  अनकहि घर  जयतीह ?**
पढ़ा - लिखा   कऽ   की  होयत,
जँ कमा – खटा अनकहि
देतीह ??**
अनकर  दोष   कहू   हम   की,
जँ अपनहि लोकक  सोच  एहेन ।
गप्पक   छुच्छ   दुलारहि   की,
जँ  व्यवहारहि  मे  भोंक
एहेन ??
सोचू  कक्का !  अपनहु  घर  मे,
कहियो तँ अनकहि धी
अओतीह ।
अनकहु  सोच
 अहीं  सन  जञो,
तँ भौजी  पढ़ल कोना अओतीह ??
छी किछु लोक तँ आओरो बढ़ि
कऽ,
तथाकथित    सज्जन    समाज
।
कोखि मे खेलैत  अपनहि धी केर,
वध   करैछ,  सरिपहुँ  ने
 लाज ।।
हमरहु    इच्छा   दुनिञा   देखी,
आ दुनिञा केर संग  बढ़ी – चली ।
हमरहु    इच्छा     खेली – कूदी,
आ संगहि संग हम पढ़ी
– लिखी ।।
मुट्ठी  भरि   मैथिल  ललना  केर,
नाँव   गना    जुनि    बहटारू ।
अपन  हृदय  सँ
 अपनहि   पूछू,
मूँह  घुमा,  जुनि
 गप्प 
 टारू ।।
# एहि ठाम भारत आ नेपाल स्थित मिथिलाक चर्चा मात्र सांस्कृतिक व भाषाई एकरूपता केर सन्दर्भ मे कएल गेल अछि । एकर प्रत्यक्ष वा परोक्ष कोनहु राजनैतिक अर्थ अभिप्रेत नञि अछि ।
* सन्दर्भ देखू श्री
“अक्कू” जीक गीतक पाँती
सखी ! पिया केँ पत्र आइ हम, 
कोना  कऽ लिखबै  हे ?
ककरा  सँ  अ – आ – क – ख – ग – ङ  सिखबै 
हे ??
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पाँचे बरष सँ फुलडाली लए, तोड़ब सिखलहुँ फूल अरहूल ।
जानी ने हम चिट्ठी - पत्री, छी बेटी मिथिला केर मूल ।।
जानी ने हम चिट्ठी - पत्री, छी बेटी मिथिला केर मूल ।।
** ई विचार हमर अप्पन
नञि थिक, परञ्च अपनहि मैथिल समाजक देन थिक । केओ गोटे जखन अपन बेटी केँ
इन्जिनियरिंग केर पढ़ाई केर लेल पठाए रहल छलाह तँ हुनिकहि किछु सम्माननीय सर –
सम्बन्धीक ई कटाक्ष स्वर छलन्हि । सभसँ दुखक बात जे ई स्वर अपन समाजक मुर्ख –
अशिक्षित लोकनिक नञि अपितु किछु अति विद्वान, प्रतिष्ठित लोकनिक छलन्हि । 
 


 
 



