पूणा – प्रवास (१)
(कविता)
मिथिलाक माटि सँ दूर एतए,
यौ अहाँ पुछै छी केहेन लगैए ।
त्वरित वेग, पर एकरस जिनगी,
पुरिबा – पछिबा बुझि ने पड़ैए ।।
की बसन्त – बरसात – घाम,
सभ एक्कहि रंग मधुमास लगैए ।
की आयल, की गेल, से नञि कहि,
शरद – शिशिर – हेमन्त बितैए ।।
सौ - सौ उर्वशि - रति - मेनका,
आँखिक सोझाँ सदा रहैए ।
रुचिर प्रकृति - मनोहर - सुन्नर,
नन्दन - वन सन रोज हँसैए ।।
मुदा तदपि नञि जानि एतऽ किए,
हमर मोन, मिसियो ने लगैए ।
ओ मिथिला – भू याद आबैतछि,
मिथिला – भाषा कहाँ भेटैए ??
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४७, अंक – ९४, दिनांक - १५ नवम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment