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Sunday, 1 June 2014

पद्य - ९४ - मिथिलाक्षर सीखू (कविता)

मिथिलाक्षर सीखू





यौ मैथिल !  मिथिलाक्षर सीखू ।
        मिथिलाभाषा   तिरहुतेँ  लीखू ।
           हम कहलहुँ,  हम सीख लेने छी,  अहाँ  कहै  छी  फेरो  सीखू ।।


“मिथिलाक्षर अभ्यास पुस्तिका”, आ  “ मिथिलाक्षर  शिक्षा ” ।
पढ़लहुँ,  सीखलहुँ,  लीखए  लगलहुँ,  जे   वैदेहीक   इच्छा ।
क – ख – ग - घ  सभहक  एक्के,  पर किछु वर्णक अन्तर ।
पर   सभसँ   दिक्कत  करैत   छल,  मात्रा  - संयुक्ताक्षर ।
          अहँ कहलहुँ ओ हस्तलिखित छल, टाइप – प्रिण्ट सभ सेहो सीखू ।
          हम कहलहुँ,  हम सीख लेने छी,  अहाँ  कहै  छी  फेरो  सीखू ।।


मरणासन्न   “लिपि - वैदेही”,   सभकेओ   चाहथि  जीबए ।
पर जञो  एतेक रास  संशोधक,  ककर उचित – की सीखए ?
“झा बाबू”  नेपालसँ   अयलाह,  “मिथिला”  फॉण्टकेँ   नेने ।
“पाण्डेयजी”  भारतसँ  गरजलाह,  “तिरहुता”  हम छी  धेने ।
          “मिथिला  आवाज”क  किछु  अलगेँ,  ककर  सही – की  सीखू ?
          हम कहलहुँ,  हम सीख लेने छी,  अहाँ  कहै  छी  फेरो  सीखू ।।


ह्रस्व - मात्रा    मिथिलाक्षरमे,    धरइछ    बहुते    रूप ।
संगहि    संयुक्ताक्षर   बहुधा,    धएने    रूप    अनूप ।
ऊपरसँ   नित   नव   संशोधन,   एकक  दस – दस रूप ।
शिक्षार्थीसभ    असमंजसमे,   बैसल    छथि   सभ  चूप ।
          सोचि  रहल  छी - रहए दियौ,  ई  व्यर्थक  झंझटि  दूरे  फेंकू ।
          हम कहलहुँ,  हम सीख लेने छी,  अहाँ  कहै  छी  फेरो  सीखू ।।


तीन  तिरहुतिया  तेरह  पाक, आ मुण्डे – मुण्डे मतिर्भिन्ना ।
ककरो केओ सूनए – नञि राजी,  अपनहि बजबए तक्धिन्ना ।
हम  कहैत  छी - सुनू  भाइ  यौ,  अपनहिमे  बैसार  करू ।
एक फॉण्ट सहमतिसँ चूनू, बाद प्रचार – प्रसार करू ।
          तखने  मृत – सञ्जिवनी  भेँटत,  नञि तँऽ  तिरहुता मुइले बूझू ।
          हम कहलहुँ,  हम सीख लेने छी,  अहाँ  कहै  छी  फेरो  सीखू ।।





01 JUNE 2014  कऽ प्रकाशनार्थ मिथिलाञ्चल टुडे केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित; तत्पश्चात (मिथिलांचल टुडेक अनियमित प्रकाशनक कारणेँ) 27 DEC. 2014  कऽ प्रकाशनार्थ मिथिला दर्शन केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।