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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Sunday, 25 March 2018

साहित्यिक चौपाड़ि - 25 मार्च 2018 - एकतीसम आयोजन

साहित्यिक चौपाड़ि - 25 मार्च 2018
एकतीसम आयोजन
स्थान - पटना संग्रहालय परिसर, पटना








































 

 
 


Tuesday, 13 March 2018

इण्टरनेट पर प्राचीन मिथिला वा विदेह केर गलत दर्शओनिहार मानचित्र - १

इण्टरनेट पर प्राचीन मिथिला वा विदेह केर गलत दर्शओनिहार मानचित्र - १
MALREPRESENTING/ERRONEOUS MAPS OF THE ANCIENT MITHILA/VIDEHA TERRITORIES



कोनहु मराठी इतिहासकार द्वारा बनाओल महाभारतकालीन भारतक ई नक्शा अत्यन्त भ्रामक अछि ।

ई विकिपीडिया सहित बहुतो साइटसब पर अछि ।

एहिमे भारतक पुबारी कातक स्थानसभक जे क्षेत्र दर्शाओल गेल अछि से अत्यंत त्रुटिपुर्ण ओ भ्रामक अछि ।

नक्शामे देखाओल गेल "सदानीरा नदी" एखनुका "गंडक नदी" अछि, जे यथास्थान अछि ।  गंडक नदी केर पर्यायी नाँओ सदानीरा, शालिग्रामी आ नारायणी आदि अछि ।

"कोशी / कोसी नदी" गंडक नदीसँ पच्छिम कथमपि नञि भऽ सकैत अछि । अपना दिसि नदीसभक बहावक्षेत्र समए केर संग - संग बदलैत अवश्य रहैत अछि, मुदा ई कोना सम्भव थिक जे एक नदी दोसर नदीकेँ फानि पूबसँ पच्छिम वा पच्छिमसँ पूब चलि जाए । नक्शामे "कौशित्रिक नदी" केर स्थान गलत अछि आ तेँ मिथिलाक क्षेत्र निर्धारण सेहो ।

जँ  नक्शामे "कौशित्रिक नदी" केर स्थान सदानीरा नदीसँ पच्छिम अछि आ सही अछि तँऽ ओ मिथिलाक क्षेत्रमे पड़एबला "कोशी वा कोसी नदी" कथमपि नञि अपितु कोनो आन नदी थिक ।

जतऽ "बंग" अछि ततऽ "अंग" (चम्पा) होएबाक चाही आ आधुनिक बांग्लादेशक खाली स्थानमे "बंग" ।

एकरंगाह नामेँ औड्रसँ सटल "पुंड्र" नञि अपितु मिथिला आ बंगक बीच पुंड्र होएबाक चाही । पुंड्रमे आधुनिक पुर्निञाक किछु भाग ओ आधुनिक पच्छिम बंगाल ओ बांग्लादेशक विशेष अंश ।

ओना लोक पुर्णियाक सम्बन्ध पुंड्रसँ शब्दोच्चार-साधर्म्यक कारणेँ जोड़ैत छथि । ओ सब पुर्णिञाकेँ पुण्ड्रक तद्भव रूपमे लैत छथि ।

मुदा हमरा जनैत से गलत ।

विशुद्ध मैथिलीक शब्द "पुड़ैन / पुरैन / पुरैनि" (एक प्रकारक जलीय वनस्पति - कमल ओ कमल कुलक आन वनस्पतिसभ) केर  नामसँ "पुरैनिञा" आ ताहिसँ "पुर्निञा" बनल । प्राचीन कालमे "कोशी वा कोसी नदी" पुरैनिञाक क्षेत्रसँ होइत बहैत छल - पुरैनिञाक पच्छिमक प्रमाण तँऽ अछिए, ताहिसँ पूबहु बहैत रहल हएत । "महानन्दा नदी" तँऽ सद्य: अछिए । ताहि समयएमे बाढ़ि केर बादहु बहुत पैघ क्षेत्र जल-जमावक चपेटमे रहैत छल जाहि कारणेँ एक तरहेँ ई क्षेत्र "पुरैनि" वा कमलक जंगलहि सनि लगैत छल आ तेँ नाम पड़ल "पुरैनिञा" । ताहि समएमे मिथिलाक पानिमे जलकुम्ही (COMMON WATER HYACINTH / EICHHORNIA) नञि पाओल जाइत छल ।

मधेपुरा जिलाक "पुरैनी" (एखन प्रखण्ड) आ पच्छिम चम्पारण जिलाक "पुरैना" नामक स्थान केर नामकरणक पाछाँ सेहो एहने सनि खिस्सा अछि । मैथिलीक "पुड़ैन / पुरैन / पुरैनि" शब्द "पुण्डरीक" वा "पुटकिनि" केर तद्भव रूप छी ।

मैथिलीक इएह "पुर्निञा" हिन्दीमे "पुर्णियाँ / पुर्णियां" आ फेर बादमे "पुर्णिया" बना देल गेल ।

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THIS MAP OF ANCIENT INDIA (OF MAHABHARATA PERIOD) PROBABLY MADE BY A MARATHI SPEAKING PERSON OR TAKEN FROM A MARATHI TEXT. 

IT IS A QUITE ERRONEOUS MAP ESPECIALLY W.R.T. THE LABELLING OF EASTERN TERRITORIES. THIS MAP IS SITED ON VARIOUS INTERNET SITES INCLUDING WIKIPEDIA.

"RIVER SADAANEERAA" IS CORRECTLY LOCATED & IS THE "RIVER GANDAK" OF TODAY.

IN THIS MAP "RIVER KAUSHITRIK" IS REGARDED AS "RIVER KOSHI" & IN BETWEEN THESE TWO RIVERS (NAMELY R. KAUSHITRIK & R. SADAANEERAA)THE AREA OF "MITHILA / VIDEHA" WAS SHOWN WHICH IS QUITE WRONG & OBJECTIONABLE.

"RIVER KOSHI" CAN NEVER BE IN THE WEST OF "RIVER GANDAK" .  IT'S O.K. THAT A RIVER (ESPECIALLY OF NORTHERN PLAINS OF INDIA) CHANGES IT'S COURSE, TIME TO TIME. BUT HOW CAN A RIVER COMPLETELY JUMP OVER ANOTHER RIVER & COME FROM EAST TO WEST OR VICE VERSA.

SO THE "RIVER KAUSHITRIK" IS NOT THE "RIVER KOSHI" OF TODAY & IF SO THEN IT'S LOCATION SHOWN IN THIS MAP IS HUNDRED-ONE-PERCENT WRONG. AND, IF THE LOCATION OF THIS RIVER IS WRONG THEN AUTOMATICALLY THE LOCATION OF "MITHILA / VIDEHA" IS WRONG.

SECONDLY "ANGA" (i.e. CHAMPAA - ANOTHER ANCIENT NAME OF THE SAME AREA) SHOULD BE AT THE SOUTH OF "RIVER BHAAGIRATHI" (i.e. RIVER GANGA / GANGASE OF TODAY); APPROXIMATELY AT THE PLACE OF "BANGA" IN THIS MAP (OR SOMEWHAT NORTH-WESTERN TO THE "BANGA" BUT CERTAINLY AT SOUTH OF "RIVER BHAAGIRATHI").  

"BANGA" (90% AREA)SHOULD BE IN THE VACCANT PLACE OF THIS MAP WHERE TODAY'S "BANGLADESH" IS LOCATED.

DUE TO PHOENETIC SIMILARITIES THE AUTHOR PLACED "PUNDRA" JUST ADJACENT TO THE "ODRA" (i.e. UTKAL or TODAY'S ORISSA / ODISSA). HE MAY BE CORRECT OR MAY NOT BE.

DUE TO PHOENETIC SIMILARITIES SOME PEOPLE / HISTORIANS REGARD "PURNEA DISTRICT" OF BIHAR AS "PUNDRA". SO, AS PER THEIR OPINION "PUNDRA" SHOULD BE SITUATED IN BETWEEN "VIDEHA / MITHILA" & "BANGA" OF ANCIENT INDIA. THE AREA OF "PUNDRA" SHOULD BE FROM TODAY'S PURNEA, W. BENGAL & BANGLADESH. THEY REGARD THE TERM "PURNEA" AS THE TADBHAWA FORM (तद्भव रूप) OF "PUNDRA".

BUT AS PER MY OPINION, THERE IS NO RELATIONSHIP BETWEEN  THE TERMS "PURNEA" & "PUNDRA". THE ANCIENT FORM OF "PURNEA" IS "PURAINIYA" (पुरैनिञा) WHICH IS A PURE "MAITHILI" TERM & WAS ORIGINATED FROM THE TERM "PURAIN / PURAINI" (पुड़ैन / पुरैन /पुरैनि). "PURAINI" IS THE MAITHILI NAME OF A SEMI-AQUATIC PLANT (NAMELY LOTUS & IT'S RELATIVES) FOUND IN ALL OVER MITHILA IN QUITE ABUNDANCE IN STAGNANT FRESH WATER RESERVOIRS & HAVE RITUAL VALUES. 

THE TERM "PURAIN / PURAINI" (पुड़ैन / पुरैन / पुरैनि) IS THE TADBHAWA FROM (तद्भव रूप) OF "PUNDAREEKA" MEANING "LOTUS". BY THE WAY, IN MAITHILI, PLACENTA IS ALSO CALLED AS "PURAIN / PURAINI" DUE TO SIMILARITIES IN APPEARANCE. BOTH THE LOTUS LEAVES & THE PLACENTA HAVE PROMINENT RIB OR TUBE LIKE VENATIONS VISIBLE AT THEIR LOWER SURFACE.

SINCE IN ANCIENT ERA "RIVER KOSHI" WAS FLOWING THROUGH PURNEA DISTRICT & ALSO "RIVER MAHAANANDAA" ( IS FLOWING EVEN TODAY). MOST OF THIS AREA HAD AFTER FLOOD WATER LADEN RESERVOIRS WHICH WAS THE NATURAL HABITAT FOR THAT PECULIAR PLANT SPECIES. SO THE AREA WAS NAMED AS "PURAINIA" (पुरैनिञा). ANOTHER PLACES LIKE "PURAINI / PURAINEE" (पुरैनी) (SITUATED IN MADHEPURA DISTRICT) & "PURAINAA / PURAINA" (पुरैना) (SITUATED IN WEST CHAMPARAN DISTRICT) HAS THE SIMILAR STORY FOR IT'S NOMENCLATURE.

LATER THE TERM "PURAINIA" (पुरैनिञा) BECAME "PURANEA" (पुरनिञा) & THEN "PURNEA" (पुर्निञा). LATER IN HINDI THE TERM पुर्निञा BECAME पुर्णियां  & NOW A DAYS WRITTEN AS पुर्णिया.


Thursday, 8 March 2018

।। तिरहुता, देवनागरी आ मैथिली ।।

।। तिरहुता, देवनागरी आ मैथिली ।।




हम एखनुका विवाद (मौखिक भाषा विवाद) सँ बहुत पहिनहि निम्न गीतक संग पाद-टीकामे एहि तरहक बात लिखने रही कि मैथिलीभाषा (लिपि समेत) राष्ट्रवादक बलिबेदी पर कोना चढ़ाओल गेलीह ।

http://mithilavidehavajjitirhut.blogspot.in/2012/05/blog-post_4256.html?m=0



ई सभ "विदेह" नामक पाक्षिक मैथिली ई - पत्रिकामे 15 अप्रील 2012 ई. कऽ छपल छल । तहिया किछु लोक हमरा दरभंगा राजसँ संबद्ध व्यक्तिक वंशज बुझि मिथ्या ओ अनर्गल आरोप - प्रत्यारोप लगओने रहथि; जखनि कि दूर - दूर धरि हमर एहेन कोनहु संबंध नञि छल वा अछि ।



हमर उपरोक्त वक्तव्यक स्वरकेँ दृढ़ करैछ निचलुका उद्धरण (साभार सौजन्य - श्री भवनाथ झाजीक फेसबुक पोस्ट) -


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ओना जयकान्त बाबू सेहो सहीए कहने छलाह । तिरहुता छपाई दिसिसँ दरभंगा राजक हाथ झिकलाक बाद मैथिली प्रकाशनक काज ठमकि गेल ।

मैथिलीक प्रकाशनकेँ अकाल मृत्युसँ बचएबाक लेल देवनागरी मुद्रणक सहारा लेल गेल - सर्वप्रथम काशीसँ शुरूआत भेल ।

देवनागरीमे लिखलासँ एकटा नऽव समस्या उत्पन्न भेल । घर, जल आदि शब्द मैथिली आ हिन्दीमे एक्के रंग लिखाइत छल मुदा उच्चार अलग - अलग छल । मैथिलीक उच्चारकेँ हिन्दीक उच्चारसँ अलग करबाक लेल संस्कृतसँ अवग्रहक चिन्ह (ऽ) केँ आनल गेल ।

अवग्रहक संग २ टा समस्या छल - पहिने तऽ ओ टाइपसेट मे बेसी जगह लैत छल आ दोसर हिन्दीमे नञि प्रयोग होएबाक कारणें ओकर सप्लाई सीमित आ महग छल ।

एहनामे ओकर विकल्पक रूपमे अंग्रेजीक एपॉस्ट्रॉफी (APOSTROPHE) चिन्ह (') केर प्रयोग बहुतायतसँ होमए लागल ।

एतबहि नञि शुरुआती समयएमे देवनागरी टाइपसेटमे किछु आन आखरक टाइपसेटक सीमित ओ महग सप्लाई केर कारणें प्रतिनिधि आखरक प्रयोग बढ़ि गेल, जेना कि -

"ए" केर एवजमे "य" ...... यथा "जाएब" केर स्थान पर "जायब"
"ञि" केर एवज मे " हिं" वा " हि" ...... यथा "नञि" केर स्थान पर "नहिं" वा "नहि"
"ञ" केर एवज मे "यँ" ...... यथा "कनिञे" केर स्थान पर "कनियें"
"ञा" केर एवज मे "याँ" ...... यथा "पुरैनिञा" केर स्थान पर "पुरैनियाँ" .....................आदि ।