बागर (बाल कविता)
कोना करै छेँ - “बागर” सनि,
बागर की होइ छै - से बता ।
बागर - बागर लोक बाजैए,
बागर की - ककरो ने
पता ।।
जे कहबेँ -
पएबेँ ईनाम,
सोचै जाइ जो सभ धियापुता ।
हारि गेलेँ,
तखने हम कहबौ,
नञि तँऽ छी हमरो ने
पता ।।
एहिना बहुते शब्द मैथिलीक,
हेरा गेल ककरो
ने पता ।
जे बाँचल, पैघो
ने बाजए,
सीखतै कोना धियापुता ।।
नेनपनमे सुनलहुँ, पूछल,
पर
अर्थ ने बूझल छल ककरो ।
उत्कण्ठा तकबाक हिलोरल,
तेँ किछु बूझल अछि हमरो ।।
“बागर” परबा केर
प्रजाति,
सन्दर्भ भेटल हमरा एक ठाँ ।*१
उकपाती आ बड़ झगड़ौआ,
बड़ हल्ला रहितए जाहि ठाँ ।।*२
संकेत
आ किछु रोचक तथ्य -
*१ - CSIR (आब NISCAIR) NEW DELHI द्वारा प्रकाशित पोथी WEALTH OF INDIA : BIRDS केर अनुसार “बागर” परबाक एक प्रजाति अछि, एकरहि "वन परवा/परेवा/परबा" सेहो कहल जाइत अछि । आब ई Endangered species केर सुचिमे आबि चुकल अछि । कल्याणी
कोशक अनुसार “बागर” एक प्रकारक बकरी थिक । सम्भवतः दुहु अपना
- अपना अनुसारेँ सही छथि आ “बागर” अनेकार्थी शब्द थिक ।
*२ - एहि ठाम हम परबाक एकटा प्रजातिक रूपमे बागरकेँ लेल अछि जे स्वभावसँ बहुत
झगरौआ, उकपाती आ हल्ला मचबए बला होइत छल आ परबाक प्रतियोगिता (परबाबाजी वा परबाक
भिरन्त) केर उद्देश्यसँ पोषल जाइत छल ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 199म अंक (15 अप्रील 2016) (वर्ष 9, मास 100, अंक 199) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment