कोइली कानय भोरहि सँ
(कविता)
गुरुदेव श्री रबिन्द्र नाथ ठाकुर |
स्व॰ महेन्द्र झा आ श्री रबिन्द्र नाथ ठाकुर |
याद अबैछ
गुरुदेव रबिन्द्रक, *
कोइली कानय भोरहि सँ
।
मिथिला केर इतिहास लिखायल,
सभदिन अगबे नोरहि सँ ।।
लागल कोन कुहेस हटए नहि,
सुर्य अस्त छथि भोरहि सँ ।
मिथिला – मैथिल केर दुर्गति,
देखथि विद्यापति ओरहि सँ ।।
जन्मभूमि जननी ओ भाषा,
बिसरि गेलह बढ़ि स्वर्गहु सँ ।
हे मैथिल ! धिक्कार थिकह,
जिनगी बत्तर छह नर्कहु सँ ।।
लाज होइछ निज जिनगी पर,
हमसभ बत्तर छी
चोरहि सँ ।
शपथ लैत छी,
हम लड़ब,
जत होयत हमरा जोरहि
सँ ।।
तन मन धन जत भाग हमर,
मिथिला - मैथिली लए
अर्पित अछि ।
हमर लेखनीक हरेक शब्द,
निज भाषा लए
संकल्पित अछि ।।
आशीष दियऽ हे माए मैथिली,
पुर्ण करी निज इच्छा
हम ।
तोड़ि सकी हर एक व्यूह केँ,
करी शत्रु केर चेष्टा
भंग ।।
* गुरुदेव
रबिन्द्र = मैथिलीक सुप्रशिद्ध कवि व लेखक श्री रबिन्द्र नाथ ठाकुर (नञि
कि बाङ्गालक स्व॰ रविन्द्रनाथ टैगोर) । नेनपनहि सँ हमर कान मे जे पहिल मैथिली गीत
गूँजल आ हमर स्मृति पटल पर मैथिली साहित्यक प्रति अटूट सिनेह ओ निष्ठा जगओलक से छल
श्री रबिन्द्र नाथ ठाकुर ओ श्री जगदीश
चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’ जीक गीत सभ । ओहि समय मे हिनक गीत सभ ततेक ने प्रशिद्ध छल
जे गाम सँ पटना धरि हरेक गोटेक ठोर पर अनायासहि अबैत रहैत छल । मञ्च पर श्री
रबिन्द्रजी आ स्व॰ महेन्द्रजीकेँ सुनबाक सौभाग्य बहुत बाद मे पटनाक विद्यापति
स्मृति पर्व समारोह मे भेटल आ भेटैत रहल परञ्च गाम घऽर मे बहुत नेनपनहि सँ हर
वयसमूहक लोक सभ सँ सुनल हुनिक गीत सभ हमरा प्रेरित करैत रहल । ताहू मे श्री
रबिन्द्रजीक गीत “की थिक मिथिला, के छथि मैथिल” हमर मोन मस्तिष्क केँ हमेशा
झकझोड़ैत रहल आ एखनहु झकझोड़ैत रहैत अछि, एहि प्रश्नक सही उत्तर तकबाक लेल बेर –
बेर प्रेरित करैत रहैत अछि आ शायद आजीवन करैत रहत । तेँ ओ लोकनि हमर मैथिली
साहित्यक क्षेत्र मे गुरु भेलाह ।
ओना तँ हमर ई गीत २५ – ०३ -
१९९८ कऽ लिखल गेल छल । पर गुरुदेव श्री रबिन्द्र नाथ ठाकुरजीक हुनक ७७म जन्मदिनक
अवसरि पर हुनिका प्रति आदर व्यक्त करैत आइ ई गीत प्रकाशित कए रहल छी । हुनिक जन्म ०७ अप्रिल १९३६ ई॰ कऽ पुर्णिञा
जिलाक धमदाहा गाँव (दक्षिणबारि टोल) मे भेल छलन्हि ।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५२ , अंक –१०३ , ०१ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित
।
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