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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Sunday 25 October 2015

पद्य - ‍१‍२‍१ - लेखन कमजोर नञि जँ मैथिली लिखैत छी (कविता)

लेखन कमजोर नञि जँ मैथिली लिखैत छी
(कविता)



हऽम !
हँऽ यौ  बाबू हऽम !!

मैथिली   बजैत   छी,
मैथिली  लिखैत  छी ।
मैथिली   पढ़ैत    छी,
मैथिली   बुझैत  छी ।
मैथिली   गबैत   छी,
मैथिली   नचैत  छी ।
मैथिली   सुनैत   छी,
मैथिली   गुनैत  छी ।
ककरा सनि भूकए छीसे  नञि  जनैत छी ।
मैथिली  बजैत  छी,  मैथिली  लिखैत छी ।।

नीक   बोल  लागइए,
तेँ  हम  बजैत  छी ।
कर्णप्रिय  जेँ   हमरा,
तेँ  हम  सुनैत  छी ।
माएक  सुबोल  बोल,
तेँ  हम  गबैत  छी ।
सुन्नर सुगन्धि एकर,
जग भरि बँटैत छी ।
लेखन कमजोर नञिजँ मैथिली लिखैत छी ।
सोच  एहेन  जनिकरसे गलती करैत छी ।।


कोन कोन  खेमा छै,
कोन कोन  वाद छै ।
की की   नियम  छै,
आ  की  अपवाद छै ।
ककर कोन की प्रपञ्च,
ककर की  विवाद छै ।
हम  तँऽ  बुझैत  छी,
मैथिलीक  नाद  छै ।
एतबे बस बूझै छी,  मैथिली  बजैत  छी ।
मैथिली  बजैत  छी,  मैथिली  लिखैत छी ।।

ककर छी हकार,  
ककर छी निमण्त्रण ।
के उड़बए गुड्डी
ककर छी नियण्त्रण ।
हमरा लए सभटा बस,
मैथिलीक    गर्जन ।
मैथिलीक     तर्जन,
ओ मैथिलीक वर्षण ।।
प्यासल छी  मैथिलीक,  घाट ने  देखैत छी ।
मैथिलीक   अमृतसँ,   प्यास  मेटबैत  छी ।।

हम नञि  जनैत  छी,
की  अहँ सोचैत छी ।
कोन  पक्ष-संघ-गुटमे,
हमरा   रखैत   छी ।
कोन  बाद  पन्थसँ,
हमरा  जोड़ैत  छी ।
हमर  लिखल  शब्द,
कोन धारेँ बहबैत छी ।
अर्थ  अहाँ  की  बूझल,  अँहीं  जनैत  छी ।
हम तँऽ बस बूझल जेमैथिली लिखैत छी ।।


लिखबाक मोन अछि,
तेँ हम लिखैत छी ।
मैथिलीक रंग प्रिय,
ताहिमे रंगैत  छी ।
हिन्दी  आ  अंग्रेजी,
सेहो  प्रशस्त छी ।
मोन मुदा मैथिलीक,
नेहेँ  आशक्त  छी ।
हाथ  हमर  लेखनी,  मैथिली  लिखैत  छी ।
सभकिछु  पढ़ैत  छी,  मैथिली  लिखैत छी ।।






मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍190म अंक (‍15 नवम्बर 2015) (वर्ष 8, मास 95, अंक ‍190) मे प्रकाशित ।



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