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Sunday 25 October 2015

पद्य - ‍१‍२० - ओ अहाँ लिखू जे नञि लिखलन्हि (कविता)

ओ अहाँ लिखू जे नञि लिखलन्हि
(कविता)



ई   नञि  लिखलन्हि ।          
ओ  नञि  लिखलन्हि ।
की  नञि  लिखलन्हि ?
के  नञि  लिखलन्हि ?
एहि पर विचार तखनहि सार्थक, ओ अहाँ लिखू जे नञि लिखलन्हि ।।

ई   बड़    अनुचित ।
अतिशय    अनुचित ।
ई    उचित    रहैत ।
ओ    उचित   रहैत ।
एहि पर मण्थन तखनहि फलप्रद, ओ अहाँ करू जे नञि कएलन्हि ।।

मैथिलीक  साहित्य   एना ।
मैथिलीक  साहित्य  ओना ।
ओहि भाषामे एना - ओना ।
एहि भाषामे किदन - कहाँ ।
ई वक्तव्य कोना हुनिकर, जे मैथिली ने पढ़लन्हि - लिखलन्हि ।।

मैथिलीमे  ई  बात   रहैत ।
मैथिलीमे  ओ  बात  रहैत ।
विज्ञान खगोल भूगोल रहैत ।
मैथिलीमे  इतिहास   रहैत ।
की एहेन हो इच्छा रखने जँ, अपने ओ किछु नञि लिखलन्हि ।।

बुन्न - बुन्नसँ  घैल भरैछ ।
बेसी नञि किछुओ मँगैछ ।
जतबा होइए ततबा  लीखू ।
अपना संगहि आनोकेँ पढ़ू ।
बकथोथी - पाण्डित्य विफल, जञो से कागत पर नञि लीखलन्हि ।।




मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍190म अंक (‍15 नवम्बर 2015) (वर्ष 8, मास 95, अंक ‍190) मे प्रकाशित ।


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