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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Tuesday 15 November 2011

पद्य - २५ - हम फूल बनब, हम काँट बनब

हम फूल बनब, हम काँट बनब
  (बालगीत)



हम  फूल  बनब,  हम काँट बनब ।
कोमलतम्,  टाँट  सँ  टाँट बनब ।।

नहि  ककरहु हम, अधिकार  हरब ।
नहि ककरहु  हम  पथविघ्न बनब ।
पर  अपन  प्रगति - पथ - रोड़ा लेऽ
हम  लोहक  दण्ड  समाठ  बनब ।।

पानिक  संग  बनि कऽ माछ रहब ।
शत्रु  लेऽ  विषधर   साँप   बनब ।
सज्जन  लेऽ  शिव  अभिराम  सही,
दुर्जन  लेऽ  हर  विकराल  बनब ।।

मिथिला   केर   पारावार    हमर ।
मिथिला - भाषा   अधिकार   हमर ।
अछि  तुच्छ  एतए,  संसार  सगर ।
मिथिला - भाषा   सभसँ   मीठगर ।
आँखि   उठाओत   जे  एकरा  दिशि,
तकरा  लेऽ  चूल्हिक  आँच  बनब ।।



विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४७, अंक , ‍दिनांक - नवम्बर २०११, बालानां कृतेमे प्रकाशित ।





पद्य - २४ - हे चान ! अहाँ धन्य छी

चकोरक उक्ति चानक प्रति
      (कविता)







हे  चान अहाँ  धन्य  छी ।
          हमर मृत्यु पर प्रशन्न छी ।
                         अहँक हृदयहीनता सँ, हऽम अवसन्न छी ।
                                    हे  चान अहाँ  धन्य  छी ।।

जिनगी भरि रटलहुँ हम, अऽहीं केर नाम ।
मनमे  अऽहींक  छवि,  बसल  अभिराम ।
                          की हम कहू , अहाँ पाथर अनमन्न छी ।
                                    हे  चान अहाँ  धन्य  छी ।।

अहीं  हमर  इच्छा,  अहीं  हमर  काम ।
अहीं  हमर  काया,  अहीं  हमर  प्राण ।
                         हम तऽ अहाँक, छद्म रूप देखि सन्न छी ।
                                    हे  चान अहाँ  धन्य  छी ।।

अहीं केर वियोगेँ,  हम त्यागै छी प्राण ।
अहँक ठोर निष्ठुर,  छिड़ियाबै  मुस्कान ।
                         सोचि रहल छी, अपनेँ पाथर प्रणम्य छी ।
                                    हे  चान अहाँ  धन्य  छी ।।


 
विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४७, अंक , ‍दिनांक - १ नवम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।

पद्य - २३ - अहाँ सपनहि मे आबै छी, आयल करू

अहाँ सपनहि मे आबै छी, आयल करू
(गज़ल)



हम चाही ने आओर  किछु, अहँ सँ प्रिय ।
अहँ बनि कऽ गुलाब, मुस्किआयल  करू ।।




अहाँ  सपनहि मे  आबै छी,  आयल करू ।
मोन सपनहि मे  क्षणिकहु, जुड़ायल करू ।।

हम चाही ने आओर  किछु, अहँ सँ प्रिय ।
अहँ बनि कऽ गुलाब, मुस्किआयल  करू ।।

पाबि सकलहुँ ने अहँ केँ जदपि हम प्रिय ।
अहँ ओहिना,  कौमुदि केँ  लजायल करू ।।

अहँ  दूरहि  रही,  अहाँ  अनकहि  सही ।
दीप   प्रेमक   हमेशा,   जड़ायल   करू ।।

प्रेम  प्रेमहि  रहत , ओ   मेटा ने सकत ।
अहँ  चाही तऽ  सपनहु  ने  आयल करू ।।

प्रेम  मोनक  मिलन,  नहि  कामक  सदन ।
अहँ  जाहि ठाँ  छी, ओहि ठाँ फुलायल करू ।।

 विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४७, अंक , ‍दिनांक - १ नवम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।

पद्य - २२ - पूणा – प्रवास (‍२)

   पूणा प्रवास (‍२)
     (कविता)

जे देखल, से कहि ने सकै छी ।
बिनु कहने, चुप रहि ने सकै छी ।
की पूणे नगरी छी रे भैय्या,
                      दूरहि देखि कऽ कहि ने सकै छी ।
                      जे देखल,  से कहि ने  सकै छी ।।

देव मानि,  आदर्श  बुझै  छी ।
जकरा हम सब नित्य पुजै छी ।
इन्द्रक कृत्य कतोक देवमय,
                    निज जीनगी अनुसरि ने सकै छी ।
                     जे देखल,  से कहि ने  सकै छी ।।

भोरक सूर्य - शान्त ओ सुन्नर ।
दूरहि,  चान - तरेगन  सुन्नर ।
लऽग सँ कक्कर दृश्य केहेन की,
                    कोना कहू, किछु कहि ने सकै छी ।
                     जे देखल,  से कहि ने  सकै छी ।।

पूणे - नगरी, विद्या केर नगरी ।
बहुत पैघ  बान्हल  तेँ  पगरी ।
नहि फूसि एकहु आखर एहि मे,
                   ओहो विद्या , जे ने वरणि सकै छी ।
                    जे देखल,  से कहि ने  सकै छी ।।

 
विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४७, अंक , ‍दिनांक - १ नवम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।

पद्य - २‍१ - पूणा – प्रवास (‍१)

  पूणा – प्रवास (‍१)
      (कविता)

मिथिलाक  माटि सँ दूर एतए,
                          यौ अहाँ पुछै छी केहेन लगैए ।
त्वरित वेग, पर एकरस जिनगी,
                         पुरिबा – पछिबा बुझि ने पड़ैए ।।

की  बसन्त – बरसात – घाम,
                       सभ एक्कहि रंग मधुमास लगैए ।
की आयल, की गेल, से नञि कहि,
                        शरद – शिशिर – हेमन्त बितैए ।।

सौ - सौ उर्वशि - रति - मेनका,
                          आँखिक  सोझाँ  सदा  रहैए ।
रुचिर प्रकृति - मनोहर - सुन्नर,
                         नन्दन - वन सन रोज हँसैए ।।

मुदा तदपि नञि जानि एतऽ किए,
                         हमर मोन, मिसियो ने लगैए ।
ओ मिथिला – भू याद  आबैतछि,
                        मिथिला – भाषा  कहाँ  भेटैए ??


 
विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४७, अंक , ‍दिनांक - १ नवम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।


Saturday 5 November 2011

सरिसो (सरिसव) तेल व स्वास्थ्य




विज्ञान विषयक लेख सभक लेल नित नऽव पारिभाषिक शब्द सभक आवश्यकता पड़ैछ । एहि प्रकारक पारिभाषिक शब्द सभ कोनहु भाषा मे ओकर मातृक मूल भाषा (Parent / Source language) सँ बनाओल जाइछ, यथा अंग्रेजी मे लैटिन सँ  मैथिली मे संस्कृत सँ 





सरिसो (सरिसव) तेल व स्वास्थ्य



             चित्र सं॰ - ‍1 – सरिसो / सरिसव केर खेत

                     सरिसो वा सरिसव – जे कि मिथिला व समस्त उत्तर भारत मे आदिकालहि सँ उपजाओल जाइत अछि – से के नञि जनैत अछि । जँ एकर सभ जाति – प्रजातिक समेकित रुप सँ विचार करी तऽ  सोयाबीन आओर पॉम केर बाद  सरिसो विश्वक तेसर सर्वाधिक उपजनिहार खाद्य तेलहनी उपज / फ़सिल (Edible oilseed crop) थिक । संगहि सोयाबीनक बाद सरिसो विश्व मे दोसर उभड़ैत प्रोटीन खाएक श्रोत (Leading source of protein meal)  बनि गेल अछि । पर आइ – काल्हि प्रचार माध्यमक प्रभावेँ या किछु आन कारणवस सरिसो वा सरिसो तेल देखि कऽ लोक (विशेषतः तथाकथित शिक्षित लोक सभ) ओहिना नाक – भौंह सिकोड़ैत छथि जेना कहियो जनकक राजदरबाड़ मे दरबाड़ी सभ अष्टावक्र केँ देखि कऽ सिकोड़ने छलाह । आइ हम एकर किछु एहेन गुणक चर्च करय जा रहल छी जे निश्चित रूपेँ अहाँ मे सँ बहुतो केँ नञि बूझल होयत । 

खाद्य तेलक सामान्य रासायनिक संगठन :-

                        हरेक खाद्य तेलक जे प्रमुख तैलीय घटक होइछ तकरा वैज्ञानिक भाषा मे “वसा अम्ल” वा “वसीय अम्ल” (Fatty acid)  कहल जाइत अछि । ई मुख्यतः दू प्रकारक होइत अछि – “संतृप्त आ असंतृप्त वसा अम्ल” (Saturated & Unsaturated fatty acids)। सामान्य भाषा मे, संतृप्त वसा घरक सामान्य तापमान व दबाव (at room temperature & pressure) पर जमि कऽ घनीभूत (solid) भऽ जाइत अछि जखन कि असंतृप्त वसा एहि दशा मे सेहो द्रव - स्वरुप  (liquid) मे रहैत अछि  जाहि तेल मे जतेक बेशी असंतृप्त वसा केर मात्रा रहैत अछि, ओ ओही अनुसारेँ कम सऽ कम तापमान धरि सेहो द्रव स्वरूपहि मे रहैत अछि एवम् तद्विपर्यय सेहो । असंतृप्त वसा अम्ल पुणः दू प्रकारक होइत अछि – एकल असंतृप्त वसा अम्ल” (Mono unsaturated fatty acids / MUFA )बहु असंतृप्त वसा अम्ल”  (Poly unsaturated fatty acids / PUFA) असंतृप्त वसा अम्ल फेर सँ दू तरहक होइछ – ओमेगा - 6 वसा अम्ल(Omega /Ω/ω -6  fatty acids) आओर ओमेगा - 3 वसा अम्ल (Omega /Ω/ω - 3 fatty acids)। 

 
चित्र सं॰ - ‍2 – वसा (वसीय) अम्लक सामान्य वर्गीकरण


                           लाइनोलेइक / लिनोलेइक अम्ल  (Linoleic acid)अल्फा लाइनोलेनिक / लिनोलेनिक अम्ल (α-Linolenic acid)  क्रमशः ओमेगा - 6 आ ओमेगा - 3 समूह केर प्रमुख घटक थिक तेँ कखनहु – कखनहु ओकरे नाम सँ समूह केँ सम्बोधित कयल जाइत अछि ।

आवश्यक वसा (वसीय) अम्ल :-

                       असंतृप्त वसा अम्ल केँ “आवश्यक वसा अम्ल” (Essential fatty acids / EFA) सेहो कहल जाइत अछि चाहे ओ ओमेगा – 6 हो वा ओमेगा – 3 वसा अम्ल । मनुक्खक शरीर “संतृप्त वसा”  केँ कार्बोहाइड्रेट वा अमीनो अम्ल सँ आ “एकल असंतृप्त वसा”  केँ किछु सीमा धरि संतृप्त वसा सँ संश्लेशित  (Synthesize) करबा मे सक्षम होइत अछि , तेँ भोजन मे ओकर मात्रा नहिञो भेने (वा कम भेने)  शरीर केँ ओकर अभाव नञि होइत छै ।  पर दोसर तरफ, “बहु असंतृप्त वसा” केँ मनुक्खक शरीर मिसियो भरि संश्लेशित नञि कऽ सकैत अछि आ ओकर आपुर्तिक लेल ओ पुर्णतः भोजन मे एहि वसाक मात्रा पर निर्भर रहैत अछि । एकर उचित मात्रा भोजन मे होयब आवश्यक अछि, अन्यथा शरीर केँ एकर कमी सँ होबय वाला क्षति उठाबय पड़ैत छै । भोजन मे चिरकाल तक एकर कमी रहला सँ त्वचा, मस्तिष्क आ हृदय सम्बन्धी गंभीर बिमारी भऽ सकैत अछि ।

स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रभाव / दुष्प्रभाव :-
  
                                 भोजन मे संतृप्त वसा (Saturated fats / SFA) केर मात्रा जतेक कम हो ततेक नीक कारण जे ओ रक्त मे “अल्प घनत्व लाइपोप्रोटीन” ( Low density lipoprotein / LDL )  केर मात्रा केँ बढ़ाबैत अछि ।  आ जेना कि सर्वविदित अछि कि बहुत समय धरि जँ ई LDL खून मे बढ़ल रहल तऽ रक्तवाही धमनी (Arteries / Arterioles)  केर भीतरी भाग मे जमि कऽ ओकर व्यास केँ कम कऽ दैत अछि जकरा चिकित्सकीय भाषा मे एथेरोस्क्लेरॉटिक परिवर्तन (Atherosclerotic changes)   कहल जाइत अछि । एकरा कारण हृदय, मस्तिष्क  आदि स्थान मे रक्त केर आपुर्ति कम भऽ जयबा सँ “हृद् - धमनी विकार” ( Coronary artery diseases etc.)  “मस्तिष्क – धमनी विकार” (Stroke etc.) सदृश बेमारीक संभावना बढ़ि जाइत अछि । 


चित्र सं॰ -3 हृद् – धमनी विकार केर क्रमागत विकाश प्रदर्शक रेखाचित्र

                                नीचा देल आलेख (Graph / chart)  सँ स्पष्ट होइत अछि कि नारियल तेल, वनस्पति घी (Margarines), गाय वा महीषक घी, माखन (Butter) आदि मे SFA  केर  मात्रा बहुत बेशी अछि जखन कि सरिसो तेल, तिल तेल, तीसी तेल आदि मे SFA केर मात्रा बहुत कम आछि । 

चित्र सं॰ - ‍4 – विभिन्न खाद्य तेल व समकक्ष पदार्थक वसीय तत्त्वक तुलनात्मक आलेख


                                                               एकल असंतृप्त वसा (Mono unsaturated fats / MUFA ) मनुक्खक रक्त मे बहु घनत्व लाइपोप्रोटीन (High density lipoprotein / HDL) केँ बढ़ाबैत अछि, जे कि हृदय केर स्वास्थ्यक लेल लाभदायक अछि । HDL केर मात्रा एथेरोस्क्लेरॉटिक परिवर्तन (Atherosclerotic changes)  केर प्रतिकार करैत अछि ।

                                            “ओमेगा – 6 असंतृप्त वसा” (Omega /Ω/ω - 6 fatty acids) आवश्यक वसा समूह थिक, जकरा कमी सँ विचर्चिका (Eczema), त्वक् रुक्षता, केश झड़ब, अकारण गर्भपात, बन्ध्यत्व, हृद्रोग आदि बेमारीक संभावना बढ़ि जाइत अछि ।

                      आइ – काल्हि बहुत खाद्य वा पेय पदार्थ पर लिखल रहैत अछि “DHEA युक्त  वा “ EPEA युक्त – आखिर ई दुहु की थिक ? ई दुहु थिक “बहु असंतृप्त वसा” (Poly unsaturated fatty acids / PUFA) अर्थात् “आवश्यक वसा” (Essential fats / EFA) आ बेसी युक्तिसंगत कही तऽ “ओमेगा - 3 असंतृप्त वसा” (Omega /Ω/ω - 3 fatty acids) समूहक सदस्य । ईकोजापेण्टेनोइक अम्ल अर्थात् EPEA ( Eicosa-penta-enoic acid; C-20 ) हृदय आ मस्तिष्क सहित सम्पुर्ण शरीर केँ ऑक्सीकरणजन्य क्षति (Oxidative damage) सँ बचबैत अछि । भोजन मे एकर चिरकालिक कमी अवसाद (Depression) , आत्मघाती प्रवृत्ति  (Suicidal behavior), खण्डित वयक्तित्व (Schizophrenia) आदि केँ उत्पन्न करैछ ।

                                                मानव मस्तिष्क केर ग्रे – मैटर (Grey matter) केर 65% भाग वसा सँ निर्मित अछि जकर मुख्य घटक डोकोजाहेक्जेनोइक अम्ल अर्थात् DHEA (Docosa-hexa-enoic acid;  C-22) थिक । DHEA मनुक्खक अन्तर्गर्भिक विकास व परिवर्धन ( Intrauterine development & growth ) , जन्मानन्तर वृद्धि व विकाश (Post-natal growth & development)  व तत्पश्चात मस्तिष्कक नीक क्रिया – कलापक लेल  अत्यन्त आवश्यक अछि ।  DHEA या तऽ सीधे भोजन सँ प्राप्त होइछ या फेर प्रचूर मात्रा मे भोजन मे EPEA उपलब्ध रहला पर EPEA सँ शरीर द्वारा संश्लेषित कयल जाइछ । एकर कमी भेला सँ बाल्यावस्था मे चित्त - चाञ्चल्य (Attention Deficit Hyperactivity Disorder /ADHD ), बाधित ज्ञान ग्रहण (Dyslexia, Dyspraxia etc.) तथा युवा आ वृद्धावस्था मे स्मृति भ्रंश (Alzheimer's disease, Dementia etc.) केर सम्भावना बढ़ि जाइत अछि । एकर कमी कर्क रोगक (Cancer) उत्पत्ति मे सेहो योगदानकारक पाओल गेल अछि । 

                      एतबहि नहि, भोजन / खाद्य तेल मे ओमेगा - 6 तथा ओमेगा 3 वसा केर उचित मात्रा केर संग – संग उचित अनुपात सेहो आवश्यक अछि । ओना तऽ ई अनुपात 10:1 सँ कम होयबाक चाही, पर 5: 1 सँ कम होयब विशेष लाभप्रद अछि । ओमेगा - 6 केर अनुपात बढ़ला सँ ओ ओमेगा - 3 केर कार्यकलाप मे बाधक होइत अछि आ स्वास्थ्यकर होयबाक जगह हानिकर भऽ जाइछ । तेँ कोनो खाद्य तेलक विचार करबाक समय केवल PUFA केर प्रतिशते टा नहि अपितु ओमेगा - 6 आओर ओमेगा - 3 केर उचित मात्रा व उचित अनुपात दिशि सेहो ध्यान देबाक चाही ।


आन तेलक अपेक्षा सरिसो तेलक वैशिष्ट्य :-

संक्षेप मे कही तऽ कोनो स्वास्थ्यवर्धक खाद्य तेल मे अधोलिखित गुण सभ होयबाक चाही :-

  •   SFA केर मात्रा 33 प्रतिशत सँ कम होयबाक चाही  ( जतेक कम हो ततेक नीक )
  •    MUFA केर मात्रा 33 प्रतिशत सँ बेशी होयबाक चाही ।
  •    PUFA केर मात्रा लगभग 33 प्रतिशत केर बराबर होयबाक चाही ( जँ बेशी हो तऽ आओरो नीक ) ।
  •     PUFA केर मात्रा उपरोक्त प्रमाणेँ होयबाक बादो, ओहि मे ओमेगा - 6 आ ओमेगा - 3 केर अनुपात 10 : 1 सँ कम होयबाक चाही ( जँ 5 :1 वा ताहू सँ कम होअय तऽ सर्वोत्तम् ) ।
·      
उ       उपरलिखित गुण केर बाद अपेक्षाकृत कम दामक होअय तऽ आओरो नीक ।



चित्र सं॰ - ‍5 – सरिसो तेल आ जैतून तेल (ऑलिव ऑयल) केर वसा तत्त्वक तुलनात्मक आलेख


                                                     सरिसो तेल (Rapeseed / Mustard oil)  मे  SFA  केर मात्रा बहुत कम अछि, पाश्चात्य जगत् केर बहुचर्चित व बहुप्रशिद्ध जैतून तेल (Olive oil) मे SFA केर मात्रा सँ सेहो मात्र आधा । कैनोला  (Canola) सेहो एक प्रकारक सरिसो तेल अछि जे कनाडा मे भेटैत अछि पर भारत मे नञि । एहि मे एरूसिक अम्ल (Erucic acid) केर मात्रा थोड़ेक कम होइत अछि  (एरूसिक अम्ल / Erucic acid एक समय मे विवादित रसायन मानल जाइत छल पर आब नहि) । सरिसो केर अतिरिक्त करीब़ दर्जनि भरि आओरो तेल सभ एहि कसौटी पर समकक्ष अछि । सरिसो तेल मे  MUFA  केर मात्रा 60 सँ 65 प्रतिशत धरि रहैत अछि ।

                                              PUFA / EFA  केर कुल मात्रा सरिसो तेल मे लगभग 3032 प्रतिशत रहैत अछि तथा  ओमेगा - 6 ओमेगा - 3 केर अनुपात 2 : 1  वा ताहू सँ कम रहैछ । उपरोक्त गुण सभक संग इएह विशिष्ट अनुपात सरिसो तेल केँ विशेष बनबैत अछि । सूर्यमुखी (Sunflower), कसुम या कुसुम्भ (Safflower), तिल (Sesame), चिनियाबदाम (Ground nut / Peanut) आदिक तेल मे ओमेगा - 6 तथा ओमेगा - 3 केर अनुपात बहुत बेशी अछि । वस्तुतः चिनियाबदाम, सुर्यमुखी, कुसुम (सैप्फ्लॉवर), मकई (कॉर्न) आ तिल तेल सभ मे ओमेगा – 3  वसा अम्ल होइतहि नञि अछि , PUFA  केर नाम पर केवल ओमेगा – 6 वसा टा होइत अछि । तेँ  PUFA / EFA  केर प्रतिशत  मात्रा बेशी रहलाक बावजूदो ओ स्वास्थ्य हेतु लाभप्रद नञि । उनटे ओ शरीर मे “स्वतन्त्र मूलक” (Free radical) उत्पन्न करैत अछि आ शरीर केँ नोकशान पहुँचाबैत अछि । ई फ्री – रेडिकल धमनी (विशेषतः हृदय, मस्तिष्क, वृक्क आदि स्थानक पातड़ – पातड़ धमनी) सभ मे खूनक थक्का जमा कऽ ओकरा आंशिक रूप सँ वा पुर्ण रूपेण बन्न कऽ दैत अछि, जाहि सँ हृदय मे “हृद् - धमनी विकार” ( Coronary artery diseases etc.)  आ मस्तिष्क मे “मस्तिष्क – धमनी विकार” (Stroke etc.) सन गम्भीर समस्या उत्पन्न भऽ जाइत अछि । ठीक ओहिना जेना SFA केर अधिकता सँ होइत अछि ( पर  SFA जेना ओमेगा - 6 वसा केँ भोजन मे बहुत बेशी कम नञि करबाक चाही कारण कि ओ आवश्यक वसा केर श्रेणी मे आबैत अछि ) ।

                                                   ई फ्री – रेडिकल सभ उपरोक्त बेमारीक संगहि संग त्वचा आ अन्य शारीरिक अवयव सभ केँ सेहो क्षतिग्रस्त करैछ, जाहि सँ समय सँ पहिने बुढ़ारीक लक्षण (यथा – केश पाकब, केश झड़ब, आँखिक नीचा झुर्री आयब, चमरी केर डगडगी कम होयब, समय सँ पहिने मोतियाबिन्दु होयब आदि) सभ उत्पन्न होमय लगैछ ।





चित्र सं॰ - ‍6 – बेशी PUFA / EFA प्रतिशत वाला (अपवाद – नारिकेर तेल आ वनस्पति घी) खाद्य तेल सभक ओमेगा - 6 आ ओमेगा – 3 केर अनुपातक सापेक्षिक आलेख


                               दोसर दिशि नारिकेर तेल ( Coconut oil ), वनस्पति घी (Traditional margerines) आदि मे ओमेगा वसा केर अनुपात तऽ ठीक – ठाक अछि पर ओकर प्रतिशत मात्रा ततेक ने कम अछि कि कोनो व्यक्ति लेल प्रतिदिन आवश्यक PUFA / EFA  केर मात्रा केँ ओ पूरा नहि कऽ सकैछ संगहि हानिकारक  SFA केर मात्रा सेहो बहुत बेशी अछि । जैतून तेल (Olive oil),  व्हीट ज़र्म ऑयल (Wheat germ oil) राइस ब्रॉन ऑयल (Rice brane oil) मे अनुपात आ मात्रा दुहु मोटा – मोटी ठीक अछि पर दाम अपेक्षाकृत बेशी अछि । 


चित्र सं॰ - ‍7 बेशी PUFA / EFA प्रतिशत वाला (अपवाद – नारिकेर तेल आ वनस्पति घी) विभिन्न खाद्य तेल सभक ओमेगा – ६ आ ओमेगा – ३ वसा बोधक आलेख


                                                                                                                तीसी तेल (Linseed / Flax seed oil) आ माछ  (Fish / Fish oil / Cod liver oil) मे ओमेगा – ३ वसा केर मात्रा बहुत बेशी अछि आ अनुपातो सही अछि । पर कॉड लिवर ऑयल बहुत महग अछि आ ओहि मे विटामन – A” केर बहुत बेशी मात्रा होइत छै – एतेक बेशी कि थोड़ेक बेशी खएला सँ विषाक्तता केर कारण प्राण तक जा सकैत अछि, ताहि द्वारे ओ खाद्य तेलक रूप मे प्रतिदिन प्रयोज्य नञि । संगहि माछ केवल मांसाहरी लोकनि खा सकैत छथि । फेर शाकाहारी लोकनि की करताह ? हुनिका लऽग मे दू टा विकल्प छन्हि – तीसी तेल आ सरिसो तेल । तीसी तेल जँ ताज़ा पेड़ायल होअए तऽ बहुत नीक पर संग्रह कऽ कऽ  रखला पर ओकर ऑकसीकरण द्वारा विघटन (Oxidative decomposition) प्रारम्भ भऽ जाइत अछि, ओहि मे सँ दुर्गन्धि आबय लगैत अछि आ एहि कारण सँ ओ खएबाक योग्य नहि रहि जाइत अछि ।

                                                            ओना तऽ कोनहु तेल केँ एक बेर गरम कएलाक बाद पुनः प्रयोग नहि करबाक चाही पर विशेषतः तीसी आ सोयाबीन तेल मे ई सर्वथा वर्ज्य अछि । एहि तेल सभ केँ एक बेर गर्म कएलाक बाद ठण्ढा भेला पर ओकर घटक द्रव्य सभ बहुलकीकरण (Polymerization) प्रक्रिया द्वारा परस्पर संयुक्त होमय लागैत अछि आ तेँ पुनः उपयोग कयला पर पचबा मे कठिन होइत अछि । सरिसो तेल मे ई अवगुण नञि थिक । ओहि मे गंधक केर यौगिकक कारण एकटा विशिष्ट उग्र – तिक्ष्ण गंध जरूर रहैत अछि पर ओ ओकर नैसर्गिक वा प्राकृत गंध थिक , वैकृत नञि । सरिसो तेल केर विशिष्ट गन्ध ओकरा संगे शुरु सँ अन्त धरि रहैत छै जखन कि तीसी तेल मे ई गन्ध बाद मे ऑकसीकरण द्वारा विघटन या रैनसिडीफिकेशन ( Rancidification ) केर फलसवरूप आबैत अछि ।

                                                                अन्तिम बात ई जे सरिसो अपना ओहि ठाम उपजाओल जाइत अछि, सर्व – सुलभ अछि आ तेँ किछु सस्ता सेहो । एकर उपयोग सँ लाभप्रद प्रभाव अपना उपर तऽ होयबे करत संगहि एहि फसिल सँ अपना ओतुक्का कृषक लोकनि केँ सेहो सहायता होयतन्हि कारण ई एकटा नग़दी फसिल छी । 

सरिसो तेल सम्बन्धी भ्रान्ति व दुष्प्रचार :-

               बहुत बेर सुनबा मे अबैछ जे सरिसो तेल केर एक गोट घटक द्रव्य एरूसिक अम्ल (Erucic acid) स्वास्थ्य केर लेल हानिकारक अछि – पर ई धारना सर्वथा गलत अछि । ई गलत धारणा मूस (Rats) पर कयल गेल एकटा प्रयोग सँ उत्त्पन्न भेल छल, पर बाद मे पाओल गेल जे मूस कोनहु प्रकारक वानस्पतिक वसा (Vegetable fats)  केँ उपापचय (Metabolism) करबा मे असमर्थ अछि - चाहे ओहि मे एरूसिक अम्ल हो अथवा नञि हो । कोनहु प्रकारक वानस्पतिक वसा बेशी मात्रा मे खएबा सँ ओकर दुष्परिणाम मूसक हृदय पर होइत छैक पर मनुक्खक हृदय पर नहि ।


चित्र सं॰ - ‍8  स्वर्णक्षीरी / सत्यानाशी  (Argemone mexicana)

                   दोसर गप्प ई जे बेर - बेर सरिसो तेल केँ एपिडेमिक ड्रॉप्सी (Epidemic dropsy) केर लेल आरोपी बनाओल जाइछ , पर ईहो आरोप सर्वथा निराधार - सरिसो तेल सँ एपिडेमिक ड्रॉप्सी नञि होइत अछि । एपिडेमिक ड्रॉप्सी वस्तुतः स्वर्णक्षीरी / सत्यानाशी (Argemone mexicana) केर बीयाक तेल मिश्रित सरिसो तेल केर सेवन सँ होइत छै । ई स्वर्णक्षीरी / सत्यानाशी प्रायः खेतक आढ़ि-धूर पर अनेरुआ जन्मैत अछि, जे दुर्घटनावस सरिसो संगे मिलि जाइत अछि (Accidental mixing), पर एकर मात्रा एपिडेमिक ड्रॉप्सी उत्पन्न करबाक आवश्यक प्रभावी मात्रा (Required Effective Dose) सँ बहुत – बहुत कम होइत अछि, ताहि द्वारे ओ मनुक्ख पर कोनो दुष्परिणाम नञि देखबैछ आ नहिञे एपिडेमिक ड्रॉप्सी उत्पन्न करबाक सामर्थ्य रखैछ । एपिडेमिक ड्रॉप्सी प्रायः हमेशा व्यापारिक प्रतिद्वन्दिता (Market rivalry) केर कारण  सरिसो तेल मे स्वर्णक्षीरी / सत्यानाशी केर तेल केर उचित मात्रा ( Effective concentration) मे ज़बड़न मिलावटक (Deliberate mixing)  परिणामस्वरूप होइत अछि ।

भारत सरकारक निर्देश :-

                                                                  भारत सरकार केर निर्देशानुसार कोनहु दू टा अलग अलग तरह केर खाद्य तेल केँ एकान्तर क्रम सँ बेरा – बेरी प्रयोग करबाक चाही । परञ्च दू तरहक तेल केँ एक संगे मिला कऽ उपयोग नहि करबाक चाही – कारण विभिन्न तेल सभ केर भौतिक आ रासायनिक गुण – धर्म अलग – अलग होइत अछि जे एक दोसरा सँ विरोधी भऽ सकैत अछि ।

चलैत चलैत :-

                                     आइ बहुतो प्रकारक खाद्य तेल सभ बज़ार मे उपलब्ध अछि, आ रोजे दूरदर्शन आ आकाशवानी सँ प्रशारित प्रचार देखैत वा सुनैत होयब – फलनायुक्त तेल, चिलनायुक्त तेल, स्वास्थ्यवर्धक तेल आ पता नञि की की !!!  अन्ततः कहए चाहब जे अपनेक स्वास्थ्य थिक, अपनहि केर पसिन्न, अपनहि केर रुपैय्या आ तेँ निर्णय सेहो अहीं करू – पर निर्णय लैत काल अप्पन आँखि कान फुजल राखू । अपना लऽगक सोन केँ दोसराक कहला पर ताम बूझि फेकि कऽ आन्हर जेकाँ दोसराक ताम केँ सोनक भावेँ कीनब कतऽ धरि उचित थिक ? ई प्रश्न मात्र सरिसोक संदर्भ मे नञि अपितु आन बहुतो सन्दर्भ मे प्रासंगिक व समीचीन थिक । अस्तु, हमरा लऽग जे जानकारी छल से अपनेक समक्ष रखबाक प्रयास कयल । जानकारी केँ यथासम्भव त्रुटिरहित रखबाक प्रयास कयल अछि, तथापि कोनहु प्रकारक त्रुटि हेतु क्षमाप्रार्थी छी ।

टिप्पणी :-
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  • एहि लेख मे प्रयुक्त मान (data / values / figures) प्रायः औसत  मान (average data / values / figures ) थिक , कारण उपरोक्त मान सभ मे जलवायु (climatic variations), गाछ वा फसिल आदिक प्रजाति (species / variety / cultivar etc.) , पेषण व रख रखाव केर तरीका (mode of extraction & packaging) केर अनुसार थोड़ेक कम बेशी भऽ सकैत अछि ।
  •  उपरोक्त वर्णित कोनहु व्याधि अवस्था वा व्याधिप्र तिकारक लेल आन बहुत रास बात सेहो विचारनिय होइत अछि , एतय ओहि आन घटक तत्त्व (Other risk factors) सभ केर विचार नहि कयल गेल अछि ।
  •  उपरोक्त वर्णन केवल तद्सम्बन्धित तेल पर लागू अछि, ओहि सँ बनाओल रिफाइन तेल (Refined oils)  मे ओ गुण नञि रहैत अछि ।





हमर ई लेख कलकत्ता सँ प्रकाशित "मिथिला दर्शन" केर वर्ष-५९, अंक-६, नवम्बर - दिसम्बर  २०‍१‍१, मे प्रकाशित भेल अछि । प्रकाशनार्थ मिथिला दर्शनक प्रधान सम्पादक महोदय श्री नचिकेताजी, कार्यकारी सम्पादक श्री रामलोचन ठाकुर जी आ समस्त मिथिला दर्शनक यूनिट केर हम हृदयशः आभारी छी । धन्यवाद ।








यद्यपि ई लेख मिथिला दर्शन मे प्रकाशित भेल अछि , पर सम्पादकीय कैंची द्वारा सभ टा आलेख (GRAPHS / BAR DIAGRAMES  / PIE CHARTS) कतरि देल गेल अछि - सम्भवतः जगहक अभाव एकर कारण भऽ सकैत अछि । 




सारणी (TABLES) केर जगह  आलेख (GRAPHS / BAR DIAGRAMES  / PIE CHARTS) प्रयोग कयल गेल अछि, जे सामान्य लोक सेहो बूझि सकैत अछि आ मात्र किछुए समय मे, पूरा लेख केँ बिना पढ़नहु वस्तुस्थिति केँ समझि सकैत अछि ।