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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Sunday 14 February 2016

पद्य - ‍१६‍१ - पपीहा (बाल कविता)

पपीहा (बाल कविता)



पपीहा, देखू देखि रहल अछि पपीहा ।
पपीहा, जा कऽ सभसँ कहत पपीहा ।
पपीहा, देखू  चुप नञि रहत पपीहा ।*
पपीहा, मुदा  केहेन  होइछ पपीहा ??

कू - कू - कू - कू  कोइली गाबए ।
पी - पी   पपीहा  राग  अलापए ।
किछु कोइली सनि  लागि रहल ओ,
लोल  बाज केर  भ्रम  उपजाबए ।।*

बहुत किछु कोइलीसँ मिलए पपीहा ।
लागए खन एक्के कोइली - पपीहा ।
बहुत  केओ  कह  पर्याय  पपीहा ।
मुदा छी अलगे  कोइली - पपीहा ।।*

भरण-परजीवी  कोइली सनि ओहो ।
आन  चिड़ैकेँ  धोखबै  छै   ओहो ।
अपन  ने  खोंता  बनबै  छै  आ,
अनकहि खोंता  अण्डा दैछ ओहो ।।*

बहुत  धोखेबाज  चिड़ै छै  पपीहा ।
केवल  नर  गाबए  गीत  पपीहा ।*
गीत,  धोखा  केर  गीत  पपीहा ।*
अहाँ देखितहुँ  ने चिन्हब पपीहा ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - ई तीनू पाँती एक टा पुरान हिन्दी फिल्मी गीतक मैथिली अनुवाद थिक । फिल्मक नाम छल फरियाद जे सन ‍१९६४ ई॰मे बनल छल । एहि गीतमे कहल गेल बातकेँ वास्तविकतासँ कोनहु सम्बन्ध नञि थिक । पर मोनमे एक टा जिज्ञासा अवश्य होइत अछि कि आखिर ई पपीहा नामक चिड़ै देखबामे केहेन होइत अछि ।

* - कोइली आ पपीहा एक्कहि परिवारक चिड़ै अछि । दुनुकेर आवाज मनुक्खक लेल कर्णप्रिय थिक । पपीहा केर लोल बाज नामक चिड़ै जेकाँ आगाँसँ मुड़ल होइत अछि तेँ अंग्रेजीमे एकरा HAWK CUCKOO  कहल जाइत अछि ।

* - बहुत लोक कोइली आ पपीहाकेँ एक-दोसराक पर्यायी नाँओ बुझैत छथि पर से नञि - दुहु भिन्न चिड़ै थिक ।

* - सभ प्रकारक कोइली आ पपीहा शिशु-भरण परजीवी (BROODING PARASITE) होइत अछि । ओ अपन अण्डा कौआ, करिया धनछुआ, धनछुआ या एहि तरहक आन चिड़ैसभक खोंतामे दैत अछि जे कि शिशु-भरण पोषक (BROODING HOST) केर भूमिका निमाहैत अछि । शिशु-भरण परजीवी अपन अण्डा चोड़ा-नुका कऽ शिशु-भरण पोषकक खोंतामे दऽ दैत अछि आ शिशु-भरण पोषक अपन अण्डाक संग-संग परजीवीक अण्डाकेँ सेहो सऐत अछि, अण्डासँ बच्चाकेँ निखालेत अछि आ खोअबैत-पिउपैत अछि । उड़बा जोकर भेलापर परजीवी कोइली या पपीहाहक बच्चा अपना-अपना झुण्डमे भागि जाति अछि आ ताहि बच्चाकेँ भागि गेला पर स्त्री/मादा कौआकेँ उदास होइत सेहो देखल गेल अछि ।

*- नर/पुरुष कोइली जेकाँ केवल नर/पुरुष पपीहा पी - पी केर आवाज निकालैत अछि, मादा/स्त्री पपीहा नञि ।

*- पपीहा पी - पी केर आवाज वास्तवमे कौआ आदि केँ खौंझएबाक लेल निकालैत अछि । कौआ खौंझा कऽ अपन खोंता छोड़ि नर/पुरुष पपीहाकेँ खेहाड़ैत अछि आ ताहि बीचमे मादा/स्त्री पपीहा अपन अण्डा ओहि कौआक खोंतामे धऽ दैत अछि । कोइलीक कू - कू केर आवाज सेहो इएह तरहक आवाज अछि ।

*- कएक बेर पपीहा सामने रहितो अछि तँऽ साधारण लोक ओकरा नञि चीन्हि पाबैत अछि, ओकरा बाज बुझबाक धोखा कऽ बैसैत अछि ।
पपीहा, कोइली आ मएना भूआ खाए मे माहिर (EXPERT) होइत अछि । ओकरा बूझल रहैत छै कि भूआ (CATERPILLARS / CATERPILLAR LARVAE) केर कोन भाग विषाह छै । भूआक विषाह भागकेँ ओ अपन चाङ्गुरसँ दाबि कऽ आ गाछक ठोस डाढ़ि पर रगरि कऽ हटा दैत छै आ खा जाइत अछि ।



मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍195म अंक (‍01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक ‍154) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।


पद्य - ‍१६० - चकोर (बाल कविता)

चकोर (बाल कविता)




अहाँ  नील गगन केर  चन्दा,
हम  छी  धरतीक   चकोर ।
गाबै छथि  ई  गीत  भाइजी,
भऽ कऽ  बड़  भाव-विभोर ।।*

शायद   जिनगीमे    भैय्या,
देखल  ने  कहियो  चकोर ।
जँ देखता तँऽ  फेर ने कहता,
हम    धरतीक    चकोर ।।*

रातिमे बैसल एकटक चानकेँ,
देखल     करैछ    चकोर ।
साहित्यक छी  कोर−कल्पना,
साँच   ने  एहिमे   थोड़ ।।*

छोट लोल आ  छोटकी मूरी,
बड़की  टा  केर   पेट  छै ।
छोटकी दूटा पाँखि उड़ए नहि,
सौंसे  देह  बस  पेट  छै ।।*

तित्तिर बटेर सनि लड़ैछ ईहो,
करैछ  मनुक्खक मनोरंजन ।
इएह कारणेँ  राष्ट्र-चिड़ै कहि,
पाक  करैतछि अभिनन्दन ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

** - मैथिली सहित समस्त भारतीय साहित्यमे चान आ चकोरक उपमा-उपमेय रूपी उदाहरण प्रसिद्ध अछि । ओहने एकटा गीत केओ भाइसाहेब गाबैत छलाह आ ताहि पर आँगनक छोट मुदा नटखट भाए-बहीन सभक ई कटाक्ष भरल उक्ति अछि । ओ सभ गीतक भाव नञि बूझि शाब्दिक अर्थकेँ ध्यानमे राखि कटाक्ष कऽ रहल अछि जे चकोरक तँऽ सौंसे देहमे खाली पेटे छै तखन भाइजी ओकरा अपनासँ तुलना कोना कऽ रहल छथि; शायद भाइजी कहियो चकोर नञि देखने छथि ।

* - मैथिली सहित समस्त भारतीय साहित्यमे चान आ चकोरक जे खिस्सा-पिहानी बताओल गेल अछि से बस साहित्यिक प्रलाप थिक । ओहिमे वास्तविकता लेशमात्रो नञि अछि ।

* - बटेर आ तित्तिर जेकाँ चकोर केर लड़ाएब सेहो किछु समुदायमे प्रसिद्ध अछि । तेँ ओ मनोरंजक पक्षीक श्रेणीमे आबैत अछि । पाकिस्तानक ओ राष्ट्रिय चिड़ै अछि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍195म अंक (‍01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक ‍154) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।


पद्य - ‍१५९ - कठखोद्धी या कठखोधी (बाल कविता)

कठखोद्धी या कठखोधी (बाल कविता)




काठ  खोधै छै  अपना  लोलसँ,
कहबै   छै    तेँ    कठखोद्धी ।
जे धरती  पर  माटि  खोधै  छै,
से  ने  बुझियौ   कठखोद्धी ।।

काठ  खोधि   बनबइए  धोधरि,
गाछे  -  गाछे    कठखोद्धी ।
गाछे  नञि  लकड़ीक  उपस्कर,
खाम्हो   खोधैछ  कठखोद्धी ।।

माटिखोद्धी   केर  पातर  लोल,
कठखोद्धी   केर   मोट   छै ।
माटिखोद्धी केर  नमगर  लोल,
कठखोद्धीक  किछु  छोट छै ।।

माटिखोद्धी केर  माथक कलगी,
पीयर  आओर   विभक्त   छै ।
कठखोद्धी  केर  लाले   टुहटुह,
जँ  छै   तँऽ   संशक्त   छै ।।*

पीठ - पाँखि पर स्वर्णिम पीयर,
मूल   रंग   चितकाबर   छै ।
अपना  ठाँ  इएह  बेसी  भेटत,
जगक विविधता  व्यापक छै ।।*

चिड़ै छै पर गाछहु पर ओ तँऽ,
सरपट   दौड़ै - भागै    छै ।*
नाङ्गरिकेँ ओ आड़* बना कऽ,
टिका  गाछ  पर  बैसए छै ।।

लोलसँ ठक-ठक करइत गाछमे,
धोधरि   सेहो   बनाबै   छै ।
अपनहु  ओहिमे  बास  करैए,
आ   दोसरोकेँ   बसाबै  छै ।।*

काठक   अन्दरमे   जे  कीड़ा,
परजीवी   बनि   पैसल  छै ।
तकरा खा कऽ  पेट  भरए  ओ,
गाछक  जिनगी   बढ़बै  छै ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - माटिखोद्धी केर माथक कलगी नारंगी-पीयर रंगक ओ अरीय रूपसँ विभक्त होइत अछि । जखनि कि आपना दिशि सामान्य रूपसँ भेटए बला कठखोद्धीक माथक कलगी लाल रंगक होइत अछि आ माटिखोद्धीक कलगीक तुलनामे संशक्त होइत अछि । विश्वक आन भाग मे पाओल जाए बला कठखोद्धीक किछु प्रजातिमे या तऽ कलगी नञि होइत अछि या आन रंगक सेहो होइत अछि ।


* - विश्वमे कठखोद्धीक बहुत तरहक बगए-बानी अछि पर अपना दिशि बेसीतर एहने भेटैछ ।

* - चिड़ै होयबाक बावजूदो ई गाछ पर उदग्र रूपेँ (VERTICALLY) तेजीसँ दौड़ि सकैत अछि । ई एकर विशेषता अछि ।

* - आड़ = गाछ पर अपनाकेछ एक स्थान पर बेसी काल टिकएबाक लेल आ काठ खोधए काल देह हिलए-डोलए नञि ताहि हेतु कठखोद्धी अपन नाङ्गरिकेँ मजगूत आड़ जेकाँ उपयोगमे आनैत अछि ।

*- माटिखोद्धी गाछमे वा काठमे धोधरि नञि बनबैत अछि जखनि कि कठखोद्धी बनबैत अछि । ओहि धोधरिमे पहिने अपने रहैत अछि आ बादमे छोड़ि देला पर ओहि परित्यक्त धोधरिकेँ आन चिड़ै (जेना कि - सुग्गा) वा दोसर कोनहु जीव ओकरा अपन खोंता या घऽरक रूपमे प्रयोग करैछ ।

*- गाछक अन्तः परजीवीक (ENDO PARASITES) रूपमे जे कीड़ा-मकोड़ा गाछमे घुसल रहैत अछि आ गाछक लेल नोकशानदायक होइछ तकरा आ तकर अण्डा ओ बच्चाकेँ कठखोद्धी खा जाइत अछि । एहि तरहेँ कठखोद्धीक पेट भड़ैत अछि आ संगहि गाछ सभक आयुर्दा बढ़ैत अछि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍195म अंक (‍01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक ‍154) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।