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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Saturday 26 March 2016

पद्य - ‍१७६ - हरियल (बाल कविता)

हरियल (बाल कविता)



परबा गण केर, तेँ परबे सनि, *
देखबामे  ओ  लागै  छै ।
हरियर देह आ पीयर पएर छै,
बहुते  सुन्नर  लागै छै ।।*

पर परबा नञि आ ने पोरकी,
हरियल नाँओ  कहाबै छै ।
लजकोटरि ओ छै पोरकी सनि,
परबा सनि भले लागै छै ।।

ककरो - ककरो पंख आ मूरी,
हरियर रंगक नञि होइ छै ।*
ककरो - ककरो  पएर नारंगी,
लाल गाढ़, कत्थी होइ छै ।।

ककरो - ककरो वक्ष नारंगी,
पीयर   सेहो   होइ   छै ।
फेँट - फाँट या अगबे हरियर,
हरियल  सब  कहबै  छै ।।*

बऽड़ आ पीपड़ पाकड़ि गुल्लड़ि,
फऽड़केँ  ओ   ताकै   छै ।
अपना काजक फऽड़ ने जे से,
ओकरा  बड़   भावै  छै ।।*

ओहने गाछ पर खोंता लगबै,
प्रेमसँ    दुनु    परानी ।
ऊँच डाढ़ि पर बिना उछन्नर,
रहतै    दुहु    परानी ।।*

पर मनुक्ख सनि केर अगत्ती,
आन  जीव  ने होइ छै ।
मारि गुलेती खसबए हरियल,
जीह  अपन  जुड़बै छै ।।*

संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - प्राणीशास्त्रक परबा गणमे (Order Columbidae) परबाक (परेबाक) अतिरिक्त मैथिलीमे हरियल ओ पोरकी (पौड़की) नामक चिड़ैसभ सेहो समाविष्ट अछि । हरियल देखबामे परबा सनि लगैत अछि; अन्तर एतबा जरूर जे हरियलक देहक रंगमे कमोबेश हरियर वा हरियर-पीयर रंग अवश्य समाविष्ट रहैत अछि । हरियल पोरकी जेकाँ लजकोटरि होइत अछि आ प्रायः जोड़ामे देखल जाइत अछि ।

* - हरियल शब्द मैथिली, हिन्दी, मराठी, बंगाली आदि भाषामे प्रयुक्त होइत अछि − पर अर्थमे किछु अन्तर अछि -

·        हरियल (मैथिली आ बंगाली भाषामे) - समस्त GREEN PIGEON केर लेल प्रयोज्य अथवा Treron वंश (Genus) केर समस्त जातिक (Species) लेल प्रयोज्य । चाहे हरियलक पएरक रंग जे हो (पीयर, गाढ़ नारंगी वा कत्थी आदि) अथवा देहक रंगमे हरियर रंगक प्रतिशत जे हो पर ओ मैथिलीमे (आ तहिना बंगालीमे सेहो) हरियलहि कहबैत अछि ।

·        हरियल (मराठी भाषामे) - महाराष्ट्रक राजकीय चिड़ै हरियल अछि तथा ओ मात्र पीयर पएर बला हरियलकेँ (YELLOW FOOTED GREEN PIGEON) हरियलक रूपमे परिभाषित करैत अछि ।

·        हरियल (सामान्य जनक हिन्दी भाषामे) - मैथिली ओ बंगाली भाषा सदृश ।

·        हरियल (अन्तर्जाल / इण्टरनेट ओ आधिकारिक हिन्दी भाषामे) - एखनुका अन्तर्जालक (इण्टरनेट, INTERNET) अनुवाद क्षेत्र तथा प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय (NATURAL HISTORY MUSEUM) पर मराठी भाषा-भाषीक  वर्चस्वक कारण तदनुसार अनुदित हिन्दी मराठीसँ प्रभावित अछि आ हरियलकेँ मराठीअहि जेकाँ पारिभाषित करैत अछि ।

* - मैथिली भाषाक हरियलक किछु जाति केर देह वा पाँखिक रंगमे हरियर रंगक अतिरिक्त कत्थी, नारंगी या पीयर आदि चटक रंगक समावेश सेहो भेटैत अछि ।



* - बड़, पीपर, पाकड़ि, गुल्लरि आदि गाछक (FICUS TREES) फऽड़सभ हरियलकेँ बहुत पसिन्न पड़ैछ आ तेँ ओहि तरहक गाछसभ पर (प्रायः छुपुङ्गी पर बैसल) ओ आसानीसँ देखल जा सकैत अछि ।

*- बड़, पीपर, पाकड़ि, गुल्लरि आदि गाछक उपरुका डाढ़िसभ पर ओ अपन खोंता बनबैत अछि आ प्रायः जोड़ामे देखल जाइत अछि ।

*- मनुक्ख प्रायः गुलेतीसँ (CATAPULT / SLING) एकर शिकार करैत अछि ।

मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍197म अंक (‍01 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक ‍197) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।


पद्य - ‍१७५ - सूरा आ फाड़ा (बाल कविता)

सूरा आ फाड़ा (बाल कविता)



गहूमक संग देखू  “सूरा”  पिसाइत छै ।*
फोकला बना कऽ गहूम खा जाइत छै ।।

देखियौ,  ई जीव केहेन असञ्जाइत छै !
एकरा पानि ने  मिसियो सोहाइत छै ।।*

गहूमहि टा नञि,  आनहु जजाइत छै ।*
जेहने अन्न रूचए, तेहने  प्रजाइत छै ।।**

चाउर, मकई सभ  सेहो खा जाइत छै ।
धानक सूराकेँ  उड़बा लए  पाँइख छै ।।*

धानक सूरा - वयस्क  भऽ जाइत छै ।
पाँइख जन्मै छै  फाड़ा कहाइत छै ।।**

उपजल अन्नक करइत बड़ नाश छै ।
भेटैछ दबाइ आब तेँ किछु उसास छै ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - मैथिलीक ई एकटा पुरान कहबी थिक जाहिमे सूरा आ ओकर बासस्थानक चर्च अछि ।

* - सूरा छेँ जे पानि नञि पिबैत छेँ − मैथिलीक दोसर पुरान कहबी । वास्तवमे सूरा कहियो पानि नञि पिबैत अछि । शरीरमे भोजनक चयापचय क्रियासँ उत्पन्न पानि (METABOLIC WATER) सूराक जीवन निर्वाहक लेल पर्याप्त होइत अछि ।
* - बहुत लोकसभ लिखल वा टंकित मैथिलीक उच्चारण वा पाठ मैथिली जेकाँ नञि कऽ कऽ हिन्दी जेकाँ करैत छथि । तेँ किछु शब्द सभक मैथिली वर्तनी वा उच्चार स्वरूपकेँ उपरोक्त कवितामे स्थान देल गेल अछि । एहि शब्दसभक लिखबाक सही स्वरूप निम्न अछि - 

क्र॰सं॰
लिखबाक सही स्वरूप
मैथिली उच्चार वा वर्तनी
जजाति
जजाइत
प्रजाति
प्रजाइत
पाँखि
पाँइख

नियमानुसार उपरोक्त सब्द सभक सही स्वरूपहि लिखल जएबाक चाही आ पढ़बा काल उच्चार उपरोक्त प्रकारेँ होयबाक चाही । पर पाठक लोकनिक हिन्दीपरक उच्चार कविताक अभिप्रेत उच्चारकेँ विकृत कऽ सकैत छल तेँ एहि कवितामे सीधा अभिप्रेत उच्चारकेँ स्थान देल गेल अछि ।

* - विभिन्न प्रकारक अन्नमे सूराक विभिन्न प्रकार (प्रजाति) लागैत अछि । 

*- धानमे लागए बला सूराकेँ वयस्कावस्थामे पाँखि जनमि जाइत अछि आ तेँ ओ उड़ि सकैत अछि । एहि उड़ए बला सूराकेँ मैथिलीमे फारा (फाड़ा) कहल जाइत अछि ।
·        फारा या फाड़ा - धानमे लागए बला सूरा ।
·        फाँरा या फाँड़ा - अँचार बनएबाक लेल काटल आमक (प्रायः लम्बवत काटल गेल) टुकड़ी ।

*- उपजाक भण्डारण काल ई अन्नक बहुत नाश करैत अछि । यद्यपि एखन सूरा मारबाक बहुत रास दबाई (गोली आ पाउडर) बजारमे उपलब्ध छै जाहिसँ किछु उसास भेल छै तथापि एखनहु ओ उपजल अन्नक बहुत नाश करैत अछि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍198म अंक (‍15 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक ‍198) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।



पद्य - ‍१७४ - बगरी (बाल कविता)

बगरी (बाल कविता)



पोखरिक  भीड़  ई,  एम्हर घाट ।
ओम्हर  नञि  छी   आबरजात ।।

ओहि  भीड़  पर   जंगल - झाड़ ।
देखू ! पानिमे   लटकल   गाछ ।।*

ताहि  गाछ पर  अजगुत  खोंता ।
कोना बनओलक, होइछ छगुन्ता ।।*

खोंता  डाढ़िसँ  लटकि  रहल छै ।
बीच फूलल, मूँह गोल ओकर छै ।।

ओहिमे सँ   उड़लै   जे   चिड़ै ।
बगरा   सनि    देखबामे   छै ।।

किछु केर माथ छै सुन्नर पीयर ।
पर दोसर किछु, नञि छै पीयर ।।*

झुण्डक - झुण्ड  आबै छै,  देखू !
खेतहि - खेत  घुमै  छै,  देखू !!

जखनि झुण्ड  बड़ पैघ  रहै छै ।
फसिलक बड़ नोकशान करै छै ।।*

चिड़ै-बझौआ जाल बिछओलक ।
पकड़ल बगरी पिञ्जरा धएलक ।।*

संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - एहन स्थान जाहि ठाम मनुक्खक पहुँच सुलभ नञि हो (प्रायः कोनहु जलाशयक परित्यक्त भीड़ परक कोनहु पैघ गाछ पर) ई चिड़ै अपन खोंता लगबैत अछि ।

* - एकर खोंता विशिष्ट प्रकारक होइत अछि । खोंताक उपरुका शिर्ष गाछक कोनहु डाढ़िसँ बान्हल रहैत अछि आ निचलुका भाग हावामे झुलैत रहैत अछि । खोंताक बीचक भाग फुलल रहैत अछि जाहिमे चिड़ै केर अएबा - जएबा लेल गोलाकार मूँह बनल रहैछ । प्रायः एक गाछ पर कतेकहु एहि तरहक खोंता रहैत अछि ।




* - बगरी देखबामे बहुत किछु बगरा सनि लागैत अछि । बरखाक समयमे पुरुष बगरीक माथक रंग टुहटुह पीयर भऽ जाइत अछि जखनि कि स्त्री बगरीमे से नञि होइत अछि ।

* - ई चिड़ै खेतमे अन्नक दाना चुनि कऽ अपन पेट भरैत अछि । तेँ बहुत अधिक संख्यामे भेला पर खेतक जजातिकेँ नोकशान सेहो पहुँचबैत अछि ।

*- चिड़ै बझओनिहार लोकनि एकरा जालमे बझाए बजारमे बेचैत छथि । किछु लोक पिञ्जरामे पोषबाक लेल तँऽ किछु लोक एकर मांसु खएबाक लेल एहि चिड़ैकेँ किनैत छथि ।



मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍198म अंक (‍15 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक ‍198) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।


पद्य - ‍१७३ - टिटही (बाल कविता)

टिटही (बाल कविता)




टि - टि - टि - टि बाजए टिटही ।
एम्हर - ओम्हर  भागए  टिटही ।।

माथ - वक्ष - गर्दनि   छै  कारी ।
दुहु दिशि उज्जर  छै एक धारी ।।

टाङ्गक रंग  छै  टुहटुह  पीयर ।
नाङ्गरि  कारी,  लोलहु  पीयर ।।

शेष   शरीर   पिरौंछे  -  भूरा ।
आँखिक परितः लाल कि पिउरा ।।*

ओना तँऽ  बहुतहु  छैक  प्रकार ।
विविध रूप  ओ  रंग - आकार ।।*

अपना दिशि  जे  सुलभ भेटैछ ।
बेसीतर     एहेनहि     रहैछ ।।*

कहबी - “टिटही  टेकल  पर्वत” ।
कारण चिड़ै ई  बहुतहि  सजग ।।*

कनिञो  खतरा   भेल  आभास ।
उड़ि भागल  टिटही ओहि चास ।।

जाइत - जाइत ओ करैछ सचेत ।
टि - टि - टि  खतरा - संकेत ।।*



संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - परितः = चारू कात । आँखिक चारू कात आ गलचर्म लाल अथवा पीयर होइत अछि ।

* - टिटही शब्दसँ बहुत व्यापक चिड़ैसमूहक बोध होइत अछि । एहि शब्दसँ अंग्रेजीक LAPWING SANDPIPER समूहक चिड़ैसभक बोध होइत अछि ।

* - एहि कवितामे अपना दिशि बेसी भेटए बला टिटहीक वर्णन अछि जे कि LAPWING समूहक सदस्य अछि ।

* *- अपना दिशि कहबी छै - “टिटही टेकल पर्वत” । लोक कहैत छै जे टिटही अपन पएर उपर कऽ कऽ सुतैत अछि आ ओकरा होइत छै कि ओ अपना पएरसँ पर्वतकेँ उठओने अछि । पर ई बात बस सत्य नञि । वास्तवमे टिटही बहुत सजग चिड़ै अछि । कोनहु खतरा केर आभास भेला पर ओ तुरन्त ओहि ठामसँ उड़ि भागैत अछि आ संगहि टि-टि-टि-टि आवाज निकालि आस - पासक आनहु चिड़ैसभकेँ खतरासँ सावधान कऽ दैत अछि । सम्भवतः तेँ उपरोक्त कहबी बनल होयत ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍198म अंक (‍15 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक ‍198) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।