बाबा विद्यापतिक
कथन
रौ मैथिल ! मैथिली तोँ
बाज ।
केहेन चिन्ता ? कथी केर लाज ?
हमहूँ संस्कृतक पण्डित, पर मैथिली हम्मर माथक पाग ।।
मीठ गीत, बहुते तोँ सुनलह,
आइ सुनह मोर बोल कटाह ।
रोष ने करिहऽ हमरा पर, जँ
हमर बोल, लागह अधलाह ।
हमरो समय, बहुत पोंगा सभ,
बहुतहि थू – थू कएने छल ।
मिथिलाभाषा लिखय छलहुँ तेँ,
हमरा, सभ धकिअओने छल ।
मिथिलाभाषा जेँ लिखलहुँ, तेँ तोँ सभ आइ करय छह याद ।
हमहूँ संस्कृतक पण्डित, पर मैथिली हम्मर माथक पाग ।।
हे मैथिल ! किछु ज्ञान सुनह,
हमर बात, किछु कान धरह ।
अनका सञो हमरा नञि द्वेष,
पर निज भाषा किए कलेश ।
पढ़ह – लिखह, जे मोन होअह,
पर निज भाषा जुनि बिसरह ।
अनका लग भले किछु डाकह,
अपना मे मैथिली बाजह ।
धिया – पुता केँ हीन ग्रस्त भऽ, वा मद मे जुनि देखबह लाथ ।
हमहूँ संस्कृतक पण्डित, पर मैथिली हम्मर माथक पाग ।।
बाजह सदिखन, सुनह मैथिली,
गुनह मैथिली, रटह मैथिली ।
रचह मैथिली, लीखह मैथिली,
कीनि कऽ पोथी पढ़ह मैथिली ।
सृजन मैथिली, च्यवन मैथिली,
नाचह मैथिली, गाबह मैथिली ।
बाट मैथिली, घाट मैथिली,
घर- बाहर, सभ ठाम मैथिली ।
तजि निज भाषा, कुकुरक गति हो, नञि घर केर, नञि धोबी घाट ।
हमहूँ संस्कृतक पण्डित, पर मैथिली
हम्मर माथक पाग ।।
"विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ५ , मास – ४९, अंक – ९८, स्तम्भ – ३॰७, दिनांक – १५।०१।२०१२ मे प्रकाशित ।
मैथिलि भाषा क समृद्धि क लेल अहाँक प्रयास प्रशंशनीय अछि
ReplyDeleteनीक कविता ।नीक बात ।बधाई ।
ReplyDeleteश्री कर्णजी आ श्री पाठकजी अपने दुहु गोटे केँ सादर धन्यवाद ।
ReplyDeleteहर गोटे जे मैथिली केँ अप्पन भाषा बुझैत छथि - चाहे ओ हम होइ, चाहे हो अपने लोकनि होइ वा चाहे ओ केओ आओर होथि - मैथिली केर समृद्धि केर लेल प्रयासत छथि । आ जे नञि छथि हुनिका होइबाक चाहिअन्हि । जय मिथिला, जय मैथिली ।