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Saturday 26 March 2016

पद्य - ‍१७३ - टिटही (बाल कविता)

टिटही (बाल कविता)




टि - टि - टि - टि बाजए टिटही ।
एम्हर - ओम्हर  भागए  टिटही ।।

माथ - वक्ष - गर्दनि   छै  कारी ।
दुहु दिशि उज्जर  छै एक धारी ।।

टाङ्गक रंग  छै  टुहटुह  पीयर ।
नाङ्गरि  कारी,  लोलहु  पीयर ।।

शेष   शरीर   पिरौंछे  -  भूरा ।
आँखिक परितः लाल कि पिउरा ।।*

ओना तँऽ  बहुतहु  छैक  प्रकार ।
विविध रूप  ओ  रंग - आकार ।।*

अपना दिशि  जे  सुलभ भेटैछ ।
बेसीतर     एहेनहि     रहैछ ।।*

कहबी - “टिटही  टेकल  पर्वत” ।
कारण चिड़ै ई  बहुतहि  सजग ।।*

कनिञो  खतरा   भेल  आभास ।
उड़ि भागल  टिटही ओहि चास ।।

जाइत - जाइत ओ करैछ सचेत ।
टि - टि - टि  खतरा - संकेत ।।*



संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - परितः = चारू कात । आँखिक चारू कात आ गलचर्म लाल अथवा पीयर होइत अछि ।

* - टिटही शब्दसँ बहुत व्यापक चिड़ैसमूहक बोध होइत अछि । एहि शब्दसँ अंग्रेजीक LAPWING SANDPIPER समूहक चिड़ैसभक बोध होइत अछि ।

* - एहि कवितामे अपना दिशि बेसी भेटए बला टिटहीक वर्णन अछि जे कि LAPWING समूहक सदस्य अछि ।

* *- अपना दिशि कहबी छै - “टिटही टेकल पर्वत” । लोक कहैत छै जे टिटही अपन पएर उपर कऽ कऽ सुतैत अछि आ ओकरा होइत छै कि ओ अपना पएरसँ पर्वतकेँ उठओने अछि । पर ई बात बस सत्य नञि । वास्तवमे टिटही बहुत सजग चिड़ै अछि । कोनहु खतरा केर आभास भेला पर ओ तुरन्त ओहि ठामसँ उड़ि भागैत अछि आ संगहि टि-टि-टि-टि आवाज निकालि आस - पासक आनहु चिड़ैसभकेँ खतरासँ सावधान कऽ दैत अछि । सम्भवतः तेँ उपरोक्त कहबी बनल होयत ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍198म अंक (‍15 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक ‍198) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।


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